दुनियाभर मे सिंतबर 2001 के बाद 13000 हजार से अधिक आंतकवादी हमले हो चुके हैं इन हमलों मे हजारों निर्दोष नागरिक लहूलुहान हो गए हैं और जाने कितनो की जान चली गई है कत्लेआम करने कोई दैत्य नहीं थे बल्कि मुसलमान थे वो मुसलमान जो अपने मजहब के पक्के थे और ईमान का पालन करने के लिए सामूहिक नरसंहार जैसी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं इन पक्के मुसलमानों की तरह सोच रखने वाले दुनिया मे अभी भी करोड़ों और मजहब के नाम पर ऐसा ही नरसंहार करने के लिए तैयार है
मुसलमान असहिष्णु श्रेष्ठतावादी स्वेच्छाचारी अराजक हिंसक होते है वे उद्दंड होते है और यदि कोई उनकी बात बात काट को काट या उनको प्रमुखता व सम्मान देकर व्यवहार न करे तो वो फट पड़ते हैं जबकि वे खुद को दुसरो को अपशब्द कहते रहते हैं और दूसरे धर्मावलंबियों संप्रदायो या पंथों के लोगों के अधिकारो का हनन करते हैं !
इस्लाम एक बुरी आस्था है इस बुराई का स्रोत इस्लाम पवित्र ग्रंथों के अशुद्ध अर्थो मे नही मिलता हैं बल्कि शुद्ध अर्थो मे मिलता है
दुनिया मे इस्लाम के आलवा किसी कारण से इतना रक्त नही बहाया गया है कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अकेले भारत मे ही इस्लाम की तलवार से 10 करोड़ हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया फारस मिस्र और सभी देश जहां लूटेरे मुसलमानो का आक्रमण हुआ लाखों लोगो काट डाला गया गैर मुसलमानों के सामूहिक कत्ल सिलसिला उस वक्त से तो चला हैं ही जब ये लूटेरे हमला कर रहे थे इसके बाद भी सदियों तक यही जारी रहा है ये रक्तपात सिलसिला आज भी जारी है
(1 )इस्लाम का मूल तत्व क्या है दुनिया भर मे जितने शोध हुए उससे पता चलता है कि इस्लाम के मूल मे झूठ छल प्रपंच मक्कारी और काम वासना हैं और इस्लाम समेत जितने अब्राहिमक मजहब हैं सबका मूल उनका काल बोध हैं
(2)आसमानी किताब की 26 खूनी आयतें
1-V.erse 9 Surah 5 فَاِذَاانْسَلَخَالۡاَشۡهُرُالۡحُـرُمُفَاقۡتُلُواالۡمُشۡرِكِيۡنَحَيۡثُوَجَدْتُّمُوۡهُمۡوَخُذُوۡهُمۡوَاحۡصُرُوۡهُمۡوَاقۡعُدُوۡالَهُمۡكُلَّمَرۡصَدٍ ۚفَاِنۡتَابُوۡاوَاَقَامُواالصَّلٰوةَوَاٰتَوُاالزَّكٰوةَفَخَلُّوۡاسَبِيۡلَهُمۡ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ
अर्थ फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको‘ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो. फिर यदि वे ‘तौबा‘ कर लें ‘नमाज‘ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो. निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है.” (पा0 10, सूरा. 9, आयत 5,2ख पृ. 368)
2-Verse 9 Surah 28 يٰۤاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡۤااِنَّمَاالۡمُشۡرِكُوۡنَنَجَسٌفَلَايَقۡرَبُواالۡمَسۡجِدَالۡحَـرَامَبَعۡدَعَامِهِمۡهٰذَا ۚوَاِنۡخِفۡتُمۡعَيۡلَةًفَسَوۡفَيُغۡنِيۡكُمُاللّٰهُمِنۡفَضۡلِهٖۤاِنۡشَآءَ ؕاِنَّاللّٰهَعَلِيۡمٌحَكِيۡمٌ
अर्थ ”हे ‘ईमान‘ लाने वालो! ‘मुश्रिक‘ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं.” (10.9.28 पृ. 371)
3- Verse 4 Surah 101 وَاِذَاضَرَبۡتُمۡفِىالۡاَرۡضِفَلَيۡسَعَلَيۡكُمۡجُنَاحٌاَنۡتَقۡصُرُوۡامِنَالصَّلٰوةِ ۖاِنۡخِفۡتُمۡاَنۡيَّفۡتِنَكُمُالَّذِيۡنَكَفَرُوۡا ؕاِنَّالۡـكٰفِرِيۡنَكَانُوۡالَـكُمۡعَدُوًّامُّبِيۡنًا
अर्थ
निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं.” (5.4.101. पृ. 239)
4- Verse 9 Surah 123 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡاقَاتِلُواالَّذِيۡنَيَلُوۡنَكُمۡمِّنَالۡكُفَّارِوَلۡيَجِدُوۡافِيۡكُمۡغِلۡظَةً ؕوَاعۡلَمُوۡاۤاَنَّاللّٰهَمَعَالۡمُتَّقِيۡنَ
अर्थ
हे ‘ईमान‘ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों‘ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें.” (11.9.123 पृ. 391)
5- Verse 4 Surah 56 اِنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاٰيٰتِنَاسَوۡفَنُصۡلِيۡهِمۡنَارًاؕكُلَّمَانَضِجَتۡجُلُوۡدُهُمۡبَدَّلۡنٰهُمۡجُلُوۡدًاغَيۡرَهَالِيَذُوۡقُواالۡعَذَابَ ؕاِنَّاللّٰهَكَانَعَزِيۡزًاحَكِيۡمًا
अर्थ जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे. जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें. निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (5.4.56 पृ. 231)
6-Verse 9 Surah 23 يٰۤاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَتَّخِذُوۡۤااٰبَآءَكُمۡوَاِخۡوَانَـكُمۡاَوۡلِيَآءَاِنِاسۡتَحَبُّواالۡـكُفۡرَعَلَىالۡاِيۡمَانِ ؕوَمَنۡيَّتَوَلَّهُمۡمِّنۡكُمۡفَاُولٰۤـئِكَهُمُالظّٰلِمُوۡنَ
अर्थ हे ‘ईमान‘ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र‘ को पसन्द करें. और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे” (10.9.23 पृ. 370)
7- Verse 9 Surah 37 اِنَّمَاالنَّسِىۡٓءُزِيَادَةٌفِىالۡكُفۡرِ يُضَلُّبِهِالَّذِيۡنَكَفَرُوۡايُحِلُّوۡنَهٗعَامًاوَّيُحَرِّمُوۡنَهٗعَامًالِّيُوَاطِـُٔـوۡاعِدَّةَمَاحَرَّمَاللّٰهُفَيُحِلُّوۡامَاحَرَّمَاللّٰهُ ؕزُيِّنَلَهُمۡسُوۡۤءُاَعۡمَالِهِمۡ ؕوَاللّٰهُلَايَهۡدِىالۡقَوۡمَالۡـكٰفِرِيۡنَ
अर्थ अल्लाह ‘काफिर‘ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता” (10.9.37 पृ. 374)
8-Verse 5 Surah 57 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَـتَّخِذُواالَّذِيۡنَاتَّخَذُوۡادِيۡنَكُمۡهُزُوًاوَّلَعِبًامِّنَالَّذِيۡنَاُوۡتُواالۡكِتٰبَمِنۡقَبۡلِكُمۡوَالۡـكُفَّارَاَوۡلِيَآءَ ۚوَاتَّقُوااللّٰهَاِنۡكُنۡتُمۡمُّؤۡمِنِيۡ
अर्थ हे ‘ईमान‘ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ. अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान‘ वाले हो.” (6.5.57 पृ. 268
9-Verse 33 Surah 61 مَّلۡـعُوۡنِيۡنَ ۛۚاَيۡنَمَاثُقِفُوۡۤااُخِذُوۡاوَقُتِّلُوۡاتَقۡتِيۡلً
अर्थ फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे.” (22.33.61 पृ. 759)
10- Verse 21 Surah 98 اِنَّكُمۡوَمَاتَعۡبُدُوۡنَمِنۡدُوۡنِاللّٰهِحَصَبُجَهَـنَّمَؕاَنۡـتُمۡلَهَاوَارِدُوۡنَ
अर्थ कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम‘ का ईधन हो. तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे.”
11-Verse 32 Surah 22 وَمَنۡاَظۡلَمُمِمَّنۡذُكِّرَبِاٰيٰتِرَبِّهٖثُمَّاَعۡرَضَعَنۡهَاؕاِنَّامِنَالۡمُجۡرِمِيۡنَمُنۡتَقِمُوۡنَ
और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब‘ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले. निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है.” (21.32.22 पृ. 736)
12-Verse 48 Surah 20 وَعَدَكُمُاللّٰهُمَغَانِمَكَثِيۡرَةًتَاۡخُذُوۡنَهَافَعَجَّلَلَكُمۡهٰذِهٖوَكَفَّاَيۡدِىَالنَّاسِعَنۡكُمۡۚوَلِتَكُوۡنَاٰيَةًلِّلۡمُؤۡمِنِيۡنَوَيَهۡدِيَكُمۡصِرَاطًامُّسۡتَقِيۡمًاۙ
अर्थ अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों‘ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (26.48.20 पृ. 943)
13 -Verse 8 Surah 69 فَكُلُوۡامِمَّاغَنِمۡتُمۡحَلٰلاًطَيِّبًاۖوَّاتَّقُوااللّٰهَ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ
अर्थ तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (10.8.69. पृ. 359)
14-Verse 66 Surah 9يٰۤاَيُّهَاالنَّبِىُّجَاهِدِالۡكُفَّارَوَالۡمُنٰفِقِيۡنَوَاغۡلُظۡعَلَيۡهِمۡؕوَمَاۡوٰٮهُمۡجَهَنَّمُؕوَبِئۡسَالۡمَصِيۡرُ
अर्थ
हे नबी! ‘काफिरों‘ और ‘मुनाफिकों‘ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम‘ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (28.66.9. पृ. 1055)
15-Verse 41 Surah 27 فَلَـنُذِيۡقَنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡاعَذَابًاشَدِيۡدًاۙوَّلَنَجۡزِيَنَّهُمۡاَسۡوَاَالَّذِىۡكَانُوۡايَعۡمَلُوۡنَ
अर्थ तो अवश्य हम ‘कुफ्र‘ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे.” (24.41.27 पृ. 865)
16- Verse 41 Surah 28 ذٰلِكَجَزَآءُاَعۡدَآءِاللّٰهِالنَّارُ ۚلَهُمۡفِيۡهَادَارُالۡخُـلۡدِ ؕجَزَآءًۢبِمَاكَانُوۡابِاٰيٰتِنَايَجۡحَدُوۡنَ
अर्थ
यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम‘ की) आग. इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों‘ का इन्कार करते थे.” (24.41.28 पृ. 865)
17- Verse 9 Surah 111 اِنَّاللّٰهَاشۡتَرٰىمِنَالۡمُؤۡمِنِيۡنَاَنۡفُسَهُمۡوَاَمۡوَالَهُمۡبِاَنَّلَهُمُالۡجَـنَّةَ ؕيُقَاتِلُوۡنَفِىۡسَبِيۡلِاللّٰهِفَيَقۡتُلُوۡنَوَيُقۡتَلُوۡنَوَعۡدًاعَلَيۡهِحَقًّافِىالتَّوۡرٰٮةِوَالۡاِنۡجِيۡلِوَالۡقُرۡاٰنِ ؕوَمَنۡاَوۡفٰىبِعَهۡدِهٖمِنَاللّٰهِفَاسۡتَـبۡشِرُوۡابِبَيۡعِكُمُالَّذِىۡبَايَعۡتُمۡبِهٖؕوَذٰلِكَهُوَالۡفَوۡزُالۡعَظِيۡمُ
अर्थ निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों‘ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत‘ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं.” (11.9.111 पृ. 388)
18 -Verse 9 Surah 58 وَمِنۡهُمۡمَّنۡيَّلۡمِزُكَفِىالصَّدَقٰتِ ۚفَاِنۡاُعۡطُوۡامِنۡهَارَضُوۡاوَاِنۡلَّمۡيُعۡطَوۡامِنۡهَاۤاِذَاهُمۡيَسۡخَطُوۡنَ
अर्थ
अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक‘ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम‘ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे. यही उन्हें बस है. अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है.” (10.9.68 पृ. 379)
19 -Verse 8 Surah 65 يٰۤـاَيُّهَاالنَّبِىُّحَرِّضِالۡمُؤۡمِنِيۡنَعَلَىالۡقِتَالِ ؕاِنۡيَّكُنۡمِّنۡكُمۡعِشۡرُوۡنَصَابِرُوۡنَيَغۡلِبُوۡامِائَتَيۡنِ ۚ وَاِنۡيَّكُنۡمِّنۡكُمۡمِّائَةٌيَّغۡلِبُوۡۤااَلۡفًامِّنَالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاَنَّهُمۡقَوۡمٌلَّايَفۡقَهُوۡنَ
अर्थ
हे नबी! ‘ईमान वालों‘ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो. यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते.” (10.8.65 पृ. 358)
20-Verse 5 Surah 51 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَتَّخِذُواالۡيَهُوۡدَوَالنَّصٰرٰۤىاَوۡلِيَآءَ ۘبَعۡضُهُمۡاَوۡلِيَآءُبَعۡضٍؕوَمَنۡيَّتَوَلَّهُمۡمِّنۡكُمۡفَاِنَّهٗمِنۡهُمۡؕاِنَّاللّٰهَلَايَهۡدِىالۡقَوۡمَالظّٰلِمِيۡنَ
अर्थ हे ‘ईमान‘ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ. ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं. और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा. निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता.” (6.5.51 पृ. 267)
21-Verse 9 Surah 29 قَاتِلُواالَّذِيۡنَلَايُؤۡمِنُوۡنَبِاللّٰهِوَلَابِالۡيَوۡمِالۡاٰخِرِوَلَايُحَرِّمُوۡنَمَاحَرَّمَاللّٰهُوَرَسُوۡلُهٗوَلَايَدِيۡنُوۡنَدِيۡنَالۡحَـقِّمِنَالَّذِيۡنَاُوۡتُواالۡـكِتٰبَحَتّٰىيُعۡطُواالۡجِزۡيَةَعَنۡيَّدٍوَّهُمۡصٰغِرُوۡنَ
अर्थ किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम‘ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन‘ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया‘ देने लगे.” (10.9.29. पृ. 372
22-Verse 5 Surah 14 وَمِنَالَّذِيۡنَقَالُوۡۤااِنَّانَصٰرٰٓىاَخَذۡنَامِيۡثَاقَهُمۡفَنَسُوۡاحَظًّامِّمَّاذُكِّرُوۡابِهٖفَاَغۡرَيۡنَابَيۡنَهُمُالۡعَدَاوَةَوَالۡبَغۡضَآءَاِلٰىيَوۡمِالۡقِيٰمَةِ ؕوَسَوۡفَيُنَبِّئُهُمُاللّٰهُبِمَاكَانُوۡايَصۡنَعُوۡنَ
अर्थ 22 ”…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं. (6.5.14 पृ. 260)
23-Verse 4 Surah 89 وَدُّوۡالَوۡتَكۡفُرُوۡنَكَمَاكَفَرُوۡافَتَكُوۡنُوۡنَسَوَآءً فَلَاتَتَّخِذُوۡامِنۡهُمۡاَوۡلِيَآءَحَتّٰىيُهَاجِرُوۡافِىۡسَبِيۡلِاللّٰهِ ؕفَاِنۡتَوَلَّوۡافَخُذُوۡهُمۡوَاقۡتُلُوۡهُمۡحَيۡثُوَجَدتُّمُوۡهُمۡوَلَاتَتَّخِذُوۡامِنۡهُمۡوَلِيًّاوَّلَانَصِيۡرًا
अर्थ वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर‘ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो. और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना.” (5.4.89 पृ. 237)
24-Verse 9 Surah 14قَاتِلُوۡهُمۡيُعَذِّبۡهُمُاللّٰهُبِاَيۡدِيۡكُمۡوَيُخۡزِهِمۡوَيَنۡصُرۡكُمۡعَلَيۡهِمۡوَيَشۡفِصُدُوۡرَقَوۡمٍمُّؤۡمِنِيۡنَۙ
अर्थ
उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान‘ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (10.9.14. पृ. 369)
25- Verse 3 Surah 151 سَنُلۡقِىۡفِىۡقُلُوۡبِالَّذِيۡنَكَفَرُواالرُّعۡبَبِمَاۤاَشۡرَكُوۡابِاللّٰهِمَالَمۡيُنَزِّلۡبِهٖسُلۡطٰنًا ۚوَمَاۡوٰٮهُمُالنَّارُؕوَبِئۡسَمَثۡوَىالظّٰلِمِيۡنَ
मतलब: हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ों को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनके साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है. और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है.
26- Verse 2 Surah 191 وَاقۡتُلُوۡهُمۡحَيۡثُثَقِفۡتُمُوۡهُمۡوَاَخۡرِجُوۡهُمۡمِّنۡحَيۡثُاَخۡرَجُوۡكُمۡ وَالۡفِتۡنَةُاَشَدُّمِنَالۡقَتۡلِۚوَلَاتُقٰتِلُوۡهُمۡعِنۡدَالۡمَسۡجِدِالۡحَـرَامِحَتّٰىيُقٰتِلُوۡكُمۡفِيۡهِۚفَاِنۡقٰتَلُوۡكُمۡفَاقۡتُلُوۡهُمۡؕكَذٰلِكَجَزَآءُالۡكٰفِرِيۡنَ
मतलब: और जहां कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है. लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहां युद्ध न करें. अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है.
उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं. इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते है !
3- दारुल अमन : دارالامن House of Safety: बचाव का घर यह उस भूभाग को कहा जाता है, जहाँ अधिकांश गैर मुस्लिम रहते हों , लेकिन मुसलमानों को भी कोई न कोई अधिकार दिया गया हो या जहाँ पर इस्लाम को खतरा होने का भय नहीं लगे। इस्लाम इस वर्गीकरण के अनुसार भारत भी एक "दारुल अमन है। क्योंकि यहाँ मुसलमानों को हिन्दुओं से अधिक अधिकार प्राप्त हैं !
4- दारुल हरब : دارالحرب House of War: युद्ध का घर ,यह उस भूभाग को कहा जाता है जहाँ गैर मुस्लिमों की संख्या अधित हो या गैर मुस्लिम सरकारे हों, या जहाँ पर प्रजातंत्र (Democracy) चलती हो या जिनका मुस्लिम देशों से विवाद हो और यदि दारुल हरब के लोग दारुल इस्लाम में जाएँ तो उनको निम्न दर्जे का व्यक्ति या दिम्मी Dimmi मानकर जजिया लिया जाये.. या कोई अधिकार नहीं दिया जाए.
5- दारूल इस्लाम Peace: इसको दारुल तौहीद دارُالتوحيد भी कहा जाता है, यह उस भूभाग को कहा जाता है जहाँ पर इस्लामी हुकूमत होती हो, और जहाँ पर मुसलमान निडर होकर अपनी गतिविधियाँ चला सकें. दारुल इस्लाम मुसलमानों गढ़ होता है. अबू हनीफा ने यह नाम कुरान की इन आयतों से लिया था। "अल्लाह तुम्हें सलामती के घर (दारुल इस्लाम ) की ओर बुलाता रहता है, ताकि तुम सीधे रास्ते पर चलो " सूरा -यूसुफ 10 :25
(इसी आयत की तफ़सीर में लिखा है "जहाँ पर मुसलमानों की हर प्रकार की सुरक्षा हो और जहाँ से वह जिहाद करें तो उन पर कोई आपत्ति नहीं आये, इसी तरह लिखा है "और अल्लाह मुसलमानों के लिए ऐसा सलामती का घर (दारुल इस्लाम) चाहता है जहाँ पर उनके मित्र और संरक्षक मौजूद हों -- "सूरा-अल अनआम 6 :128 इसी दारुल इस्लाम का सपना दिखा कर जिन्ना ने मुसलमानों को पाकिस्तान बनवाने के लिए प्रेरित किया था। क्योंकि जिन्ना की नजर में भारत ناپاك नापाक (अपवित्र) देश था और जिन्ना पाक پاك (पवित्र) देश پاكِستان बनाना चाहता था. (ये बात और है कि खुद जिन्ना हिन्दू रक्त का वंशज था और न केवल सिगरेट पीता था, बल्कि लन्दन में पोर्क (सूअर का माँस) भी खाता था)
6- दारुल हुंदा :دارالهنُنده House of Calm : विराम का घर, यह उस क्षेत्र को या उस देश को कहा जाता है, जिसका किसी मुस्लिम देश से युद्ध या झगडा होता रहता हो. लेकिन किसी कारण से लड़ाई बंद हो गयी हो और भविष्य में या तो समझौते की गुंजायश हो या फिर युद्ध की संभावना हो .और यह एक प्रकार की Wait and Watch की स्थिति होती है !
7- दारुल अहद :دارُالعهد House of Truce: युद्ध विराम का घर..:- इसे दारुल सुलह دارالسُلح या House of Treaty भी कहा जाता है यह उन देशो को कहा जाता है, जिन्होंने मुस्लिम देशो से किसी प्रकार की कोई संधि या समझौता कर लिया हो और जिसे दोनो देशों के आलावा दुसरे मुस्लिम देशो ने स्वीकार कर लिया हो
8- दारुल दावा دارُالدعوة House of Invitation: आह्वान का घर... यह उन देशों या उन क्षेत्रों या उन इलाकों को कहा जाता है जहाँ गैर-मुस्लिम हों और जिनको मुसलमान बनाने के लिए कोशिश करना जरुरी हो. यहाँ के लोग इस्लाम के बारे में अधिक नहीं जानते हो. (ऐसे भूभाग को दारुल जहलिया دارالجاهلِية या House of ingorant भी कहा जाता है) और फिर किसी भी उपाय से उस भूभाग को दारुल इस्लाम में लेन की योजनाएं बनाई जाती है या फिर उस क्षेत्र को कहा जाता है जहाँ के मुसलमान कट्टर नहीं होते हैं और उनको कट्टर बनाने की जरूरत हो, ताकि उनको जिहादी कामों में लगाया जा सके, और इस काम के लिए उस क्षेत्रों में जमातें भेजी जाती है.
तात्पर्य यह है कि मुसलमानों ने विश्व के देशो या किसी देश के भूभाग या किसी क्षेत्र को जो अलग अलग दार या Houses में बाँट कर विभाजित किया है. वह राजनीतिक, या भौगोलिक सीमाओं के आधार पर नहीं है .इस्लामी परिभाषा में "दार "कोई देश, प्रान्त, जिला या उसका कोई हिस्सा भी हो सकता है, और इन्हीं दार के house के हालात देख कर मुसलमान अपनी रणनीतियाँ तय करते है... जैसे कहीं तो शांत हो जाते हैं और कही आतंकवाद को तेज कर देते हैं. इस्लाम का एकमात्र उद्देश्य और लक्ष्य इन सब "दार "को दारुल इस्लाम के दायरे में लाने का है, ताकि दुनिया में "विश्व में इस्लाम राज्य Pan Islamic State" की स्थापना हो सके. मुसलमानों की तरह Catholic Church ने भी देशों को बाँट रखा है. आज इस बात की आवश्यकता है कि हम इस्लाम की कुटिल नीतियों और नापाक मंसूबों विफल करने का यत्न करते रहें, और देश को "दारुल इस्लाम" बनाने से रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दें, और इस पवित्र कार्य में लोगों को उत्साहित करें और हरेक साधनों का उपयोग करें... तभी देश और धर्म बच सकेगा !
(4)इस्लामिक अलतकिया क्या है
__________________
मुसलमानों का सबसे ताकतवर हथियार है ‘अल-तकिया’। इसे पढ़कर आप भी मानेंगे कि किसी भी मुल्ले की बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए।
अल तकिया ने इस्लाम के प्रचार प्रसार में जितना योगदान दिया है, उतना इनकी सैंकड़ों हजारों कायरों की सेनायें नहीं कर पायीं ।
अल-तकिया के अनुसार यदि इस्लाम के प्रचार - प्रसार अथवा बचाव के लिए किसी भी प्रकार का झूठ, धोखा करना पड़े, या माफी मांगनी पड़े – सब धर्म स्वीकृत है। यह सब धर्म स्वीकृत तब भी है जब यह सब माफी मांगना काफिरों से भी किया जाए।
मुसलमानों के विश्वासघात के अन्य उदाहरण, जो कि अल तकिया का प्रयोग कर के हुआ है।
1. मुहम्मद गौरी ने 17 बार क़ुरान की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा, लेकिन हमला किया ।
2. अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया ।
3. औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया ।
4. औरंगजेब ने क़ुरान की कसम खाकर श्री गोविन्द सिंह को आनंदपुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था। फिर हमला किया था।
5. अफजल खान ने दोस्ती के बहाने शिवाजी की हत्या का प्रयत्न किया था।
6. मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था ।
ये ऐसी स्थिति है जिसको मुसलमान खुद समझ नहीं पा रहे हैं कि इतनी जल्दी उनकी पोल कैसे खुल गई। सिर्फ भारत की बात नहीं दुनिया के हर कोने में मुसलमानों को शक की नज़र से देखा जा रहा है। आखिर वैश्विक आतंकवाद की उत्पत्ति भी तो इस्लाम और आसमानी किताब क़ुरान से ही हुई है। मुसलमान झूठ बोलेगा क्योंकि क़ुरान के 3:28 में लिखा है कि सिर्फ अपने फायदे के लिए, और जान बचाने के लिए गैर मुसलमानों से दोस्त होने का ढोंग करो दिल से कुछ मत करो। क़ुरान में 16:102, 66:2, 40:28, 2:225, 3:54; सहिह बुखारी के 84:64-65 में इन्हीं सरी बातों को कहा गया है। क़ुरान में कहा गया है कि अल्लाह ने झूठ और मक्कारी का मनाही नहीं किया हुआ है। क़ुरान कहता है कि काफिरों से झूठ बोलो, धोखा दो, काफिरों का धोखे से खून भी कर दो, यह सब कुरान में माफ है - और पाक (अल्लाह का काम, नेक काम, पुण्य कर्म) काम है।
(5)इस्लामिक जेहाद के प्रकार
1 सेक्स जेहाद (लव जिहाद ) 2राजनैतिक जेहाद 3 लैंड जेहाद 4 रोजगार जिहाद 5 घुसपैठ 6 जिहाद रेप जिहाद 7 जनसंख्या जिहाद 8 बुद्धिजीवि जिहाद
जिहाद इस्लाम में जो आवस्यक है जिससे इस्लाम को जाना जाता है यानी प्रत्येक मोमिन को करणीय है नमाज, जकात, हज, रोजा और इन सबके लिए जिहाद--- जिहाद का वास्तविक अर्थ है संघर्ष करना, युध्द जिहाद यांनी पवित्र युद्ध है जिहाद, "इस्लामिक सत्ता" की विस्तार के लिए जिहाद, जिहाद के बारे बड़ा ही भ्रम है सबसे पहले "बुद्धिजीवी जिहाद" को हमे समझना होगा प्रत्येक "इस्लामिक स्कालर" अपने पन्थ के मदरसों के अनुसार परिभाषित करता है कुछ स्कालर जिहाद का अर्थ करते हैं कि दीन दुखियों की मदद करना, महिलाओं की सुरक्षा करना, बुराई के खिलाफ संघर्ष, अपने अन्दर की बुराई के खिलाफ संघर्ष जबकि जो पूरे विश्व में जो इस्लामिक व्यवहार दिखाई दे रहा है वह इसके बिल्कुल अलग विपरीत इसलिए आज सम्पूर्ण विश्व में हिंसा, हत्या का पर्याय ही 'इस्लाम' हो गया है लेकिन 'इस्लामिक स्कालर' बुद्धिजीवी जिहाद द्वारा गलत को सही परिभाषित करते नहीं थक रहे, भारत में इस्लामिक शासन जिहाद का ही एक हिस्सा था सूडान में जिहाद द्वारा 40 लाख लोगों को अमानवीयता यातना देकर बेघर कर दिया गया लेकिन इस्लामिक विद्वान जैसे मौलाना बदरुद्दीन, अभिनेता आमिर खान, नसरुद्दीन साह, शाहरुख खान, संगीतकार जावेद अख्तर, राजनेता अकबरुद्दीन ओवैसी, गुलाम नबी आजाद, आज़म खान, फारुख अब्दुल्ला इत्यादि विश्व के मानव समाज को अंधेरे में रखने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन बहुत सारे 'मुस्लिम स्कालर' इसके अतिरिक्त विचार हीनहीं रखते बल्कि उनके पक्ष में संघर्ष करते भी दिखाई देते हैं, लेकिन जो बुद्धिजीवी स्कालर इस्लामिक (आतंकी जिहाद) का विरोध करते दिखते हैं जैसे तारिक फतेह, सलमान रुश्दी, तस्लीमा नसरीन, सलाम आजाद (ठीक है) ये सब लोग इस्लामी आतंकियो के हमेसा निशाने पर रहते हैं बहुतों को अपना जीवन बचाने के लिए अपने घर व देश की तिलांजलि देनी पड़ी ।
जिहाद के प्रकार
इस्लामी जगत में कुरान के बाद सर्बाधिक महत्व हदीश को दिया जाता है कभी कभी तो हदीश को ही प्रमुखता दी जाती है क्योंकि मुहम्मद साहब ने अपने जीवन में जो जो किया वही हदीश है यानी मुहम्मद की जीवनी इस प्रकार जो मुहम्मद साहब ने किया उसे किसी प्रकार करना उस उद्देश्यों को प्राप्त करना उसके लिए जो भी रास्ता हो नैतिक अथवा अनैतिक उन सभी रास्तों को जेहाद कहा जाता है, इसके दो प्रकार है 1- 'अल अकबर जिहाद' जो बड़े उद्देश्यों के लिए किया जाता है काफ़िरों से युद्ध उनके देश पर हमला इत्यादि 2- 'जेहाद अल असगर' इसे छोटा मोटा काम के लिए किये जाते हैं, आज जो इस्लाम धर्म को जानने वाले हैं वे हदीश के अनुसार जिहाद कर रहे हैं वह जिहाद इस प्रकार है अविस्वासी के खिलाफ संघर्ष, लव जिहाद, लैंड जिहाद, जनसंख्या जिहाद, रेप जिहाद, बुद्धिजीवी जिहाद, हत्या हिँसा जिहाद, लूट जिहाद, सेक्स असली मुहम्मद का अनुयायी कौन ? युध्द जिहाद के लिए
अलीसिना ने सरिया के कुछ उद्धरण दिये हैं!
1-जिहाद, "गैर मुस्लिमों के विरुद्ध मजहब को स्थापित करने हेतु युध्द करना"।
2- एक खलीफा बल पूर्बक सत्ता छीनकर शासन कर सकता है।
3- गैर मुस्लिम मुसलमान का उत्तराधिकारी नहीं वन सकता।
सम्पूर्ण विश्व को इस्लाम ने दो भागों में बाट दिया है मोमिन और गैर मोमिन फिर मोमिनों में 72 फिरके यह सब फिरकों के खलीफा अपने को असली मुहम्मद साहब के बाद असली खलीफा मानते हैं उसी के लिए युद्ध जारी है कुछ इस्लामिक विद्वान इस्लाम को प्रेम मुहब्बत का बताते नहीं थकते लेकिन इस शान्ति धर्म के बीच जो युद्ध का आंकड़ा है वह चौकाने वाला है 20 वर्षों में एक दूसरे पर हमला हिंसा और आतंकवाद द्वारा "एक करोड़ पच्चीस लाख" मुसलमान मारे गए हैं और जो गैर मुस्लिमों का आंकड़ा है इन चौदह सौ वर्षों में "एक अरब" से अधिक मानव समाज की हत्या की है इसी को जिहाद कहा जाता है और उसके इस प्रकार के परिणाम हैं !
इस्लामी जिहादी मानसिकता को रोकने हेतु सरकार एवं समाज द्वारा किए जाने योग्य उपाय
भारतवर्ष की सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय अखंडता पर इस समय जो सबसे बड़ा संकट मंडरा रहा है, वह केवल सीमाओं के पार से नहीं, भीतर से उत्पन्न हुआ वैचारिक उग्रवाद है—जिसे सामान्यतः ‘इस्लामी जिहादी मानसिकता’ कहा जाता है। यह संकट केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित राजनीतिक, जनसंख्या-आधारित, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रणनीति के रूप में उभर रहा है, जिसे समझना और तदनुसार नीति निर्धारण करना समय की अनिवार्यता बन चुका है।
❖ इस्लामी विशेषाधिकारों का उन्मूलन
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में किसी एक समुदाय को विशेषाधिकार देना संविधान की मूल भावना के प्रतिकूल है। हज सब्सिडी, वक्फ बोर्डों को दी जाने वाली अरबों की सहायता, विशेष आरक्षण और कानूनों से ऊपर रखने वाली शर्तें—इन सबने इस मानसिकता को संरक्षण ही प्रदान किया है।
समाधान: सभी मजहबी अनुदानों को समाप्त कर केवल सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए नीति बनानी चाहिए। किसी भी धार्मिक संस्था को सरकार का पोषण नहीं मिलना चाहिए।
❖ अल्पसंख्यक दर्जे की पुनः समीक्षा
जब मुस्लिम जनसंख्या कई राज्यों में बहुसंख्यक हो चुकी है, तो ‘अल्पसंख्यक’ का दर्जा मात्र एक राजनीतिक छल है। यह विशेषाधिकार उन्हें वोट बैंक के रूप में सहेजने हेतु बना रखा गया है।
समाधान: समान नागरिक संहिता लागू की जाए, जिससे बहुपत्नी प्रथा, तीन तलाक, हलाला जैसे अमानवीय चलन समाप्त हों।
❖ मजहबी शिक्षा पर नियंत्रण
मदरसे, जहाँ कट्टरपंथी विचारधाराएँ जन्म लेती हैं, राष्ट्र के लिए सुरक्षा खतरा बन चुके हैं। इन संस्थाओं को यदि निगरानी में न लाया गया तो वे जिहादी सोच की फैक्ट्रियाँ बनी रहेंगी।
समाधान: समस्त मदरसों को पंजीकृत कर पाठ्यक्रम की समीक्षा हो। राष्ट्रवादी, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाए।
❖ जिहादी वित्त पोषण पर नियंत्रण
विदेशी अनुदान, खाड़ी देशों से आने वाली संदिग्ध फंडिंग, और इस्लामिक बैंकिंग—इन सबका उपयोग धर्मांतरण, कट्टरता और हिंसा को पोषित करने हेतु किया जाता है।
समाधान: सभी धार्मिक संस्थाओं की आय-व्यय पर निगरानी हो, विदेशी फंडिंग पर कठोर नियंत्रण लगाया जाए।
❖ जनसंख्या संतुलन: भारत की सुरक्षा की आधारशिला
भारत में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या वृद्धि महज़ सामाजिक विषय नहीं, बल्कि एक रणनीतिक हथियार है। हिंदुओं की घटती प्रजनन दर और मुस्लिमों की योजनाबद्ध बढ़ती संख्या लोकतंत्र को मजहबी रंग देने की ओर ले जा रही है।
समाधान:
केवल "2 बच्चों की नीति" पर्याप्त नहीं।
धार्मिक आधार पर संतुलन सुनिश्चित किया जाए।
जिन समुदायों में जन्मदर अधिक है, उनके लिए विशेष नियंत्रण नीति हो।
अवैध घुसपैठियों के विरुद्ध NRC लागू कर उन्हें निष्कासित किया जाए।
हिंदू समुदाय को प्रोत्साहन देकर प्रजनन दर संतुलित बनाई जाए।
हिंदू समाज में प्रजनन दर (TFR) को पुनः 2.1 से ऊपर लाने हेतु प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की जाएँ।
तीसरी संतान के लिए हिंदू परिवारों को विशेष वित्तीय सहायता दी जाए।
जिन जिलों में हिंदू जनसंख्या 50% से कम हो रही है, वहाँ हिंदू पुनर्वास कार्यक्रम लागू किया जाए।
❖ हिंदू आत्मरक्षा नीति
हिंदू समाज को केवल सांस्कृतिक नहीं, भौतिक रूप से भी संगठित और प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, ताकि किसी भी आपदा या आक्रमण के समय वह स्वयं की रक्षा कर सके।
समाधान:
युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाए।
प्रत्येक क्षेत्र में "हिंदू सुरक्षा समिति" का गठन हो।
आत्मगौरव और स्वाभिमान की पुनर्स्थापना हो।
❖ आतंकवाद एवं कट्टरपंथ पर कठोर नीति
देश में जिहादी आतंकी घटनाओं का लंबा इतिहास है। इनकी जड़ें धार्मिक शिक्षा, अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और स्थानीय संरक्षण में हैं।
समाधान:
PFI, SIMI, Tablighi Jamaat जैसे संगठनों पर स्थायी प्रतिबंध लगे।
लव जिहाद, धर्मांतरण व हिंसात्मक मजहबी गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों को कठोरतम दंड मिले।
❖ हिंदू आर्थिक तंत्र का पुनर्निर्माण
हलाल सर्टिफिकेशन, इस्लामी बैंकिंग और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मजहबी दबाव से हिंदू व्यापारिक वर्ग का उत्पीड़न हो रहा है।
समाधान:
हलाल अर्थव्यवस्था का बहिष्कार किया जाए।
स्वदेशी, हिंदू व्यापार तंत्र को प्रोत्साहित कर आत्मनिर्भर आर्थिक ढांचा तैयार किया जाए।
❖ इस्लामी अंतर्विरोधों का सामाजिक उद्घाटन
इस्लाम में मौजूद 72 फिरकों के भीतर मौजूद कटुता और संघर्ष इस्लामी समाज के अंतर्विरोध को दर्शाता है। 'अशराफ-अजलाफ' या 'शिया-सुन्नी' के अंतर्विरोधों को उजागर कर कट्टरता के भीतर के विरोधाभास को स्पष्ट किया जाना चाहिए।
समाधान:
भारतीय संस्कृति से जुड़े मुसलमानों को अलग पहचान देकर कट्टरता से अलग किया जाए।
संवाद और सामाजिक समरसता के माध्यम से स्वदेशी मुसलमानों को मुख्यधारा में लाया जाए।
❖ सद्गुण विकृति का परित्याग
कृत्रिम सहिष्णुता और 'सब ठीक हो जाएगा' जैसी मानसिकता अब आत्मघाती बन चुकी है। इस्लामी कट्टरपंथियों को उसी भाषा में उत्तर देना आवश्यक है।
समाधान:
सहिष्णुता वहाँ तक ही जहाँ तक राष्ट्र की अखंडता न टूटे।
शत्रु को "सत्य" और "न्याय" के आधार पर प्रत्युत्तर देना ही धर्म है।
2000 साल पहले एक यहूदी बढ़ई ने कहा था सत्य आपको मुक्ति दिलाएगा यह स्वयंसिद्ध सत्य है आज से अधिक प्रासंगिक कभी नहीं रहा है आईए हम इस्लाम की गंदी सच्चाई लोगों बताए आईए हम सत्य को एक अवसर दे
आज समय आ गया है जब राष्ट्र, शासन और समाज मिलकर इस वैचारिक महामारी का सामना करें। यदि अभी नहीं चेते, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें क्षमा नहीं करेंगी।
Deepak Kuamr Dwivedi
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है, संग्रह करने योग्य, तथ्य सभी प्राथमिक स्रोतों से ही लिये होंगे।
जवाब देंहटाएंजी भाईसाहब तथ्य प्रथामिक सोर्स लिए है
हटाएं