Islamic Jihad : इस्लामिक जिहाद के क्या कारण है ? इस्लामिक जिहाद की समास्या का समाधान कैसे हो सकता है ?

दुनियाभर मे सिंतबर 2001 के बाद 13000 हजार से अधिक आंतकवादी हमले हो चुके हैं इन हमलों मे हजारों निर्दोष नागरिक लहूलुहान हो गए हैं और जाने कितनो की जान चली गई है कत्लेआम करने कोई दैत्य नहीं थे बल्कि मुसलमान थे वो मुसलमान जो अपने मजहब के पक्के थे और ईमान का पालन करने के लिए सामूहिक नरसंहार जैसी वारदातों को अंजाम दे रहे हैं इन पक्के मुसलमानों की तरह सोच रखने वाले दुनिया मे अभी भी करोड़ों और मजहब के नाम पर ऐसा ही नरसंहार करने के लिए तैयार है 
मुसलमान असहिष्णु श्रेष्ठतावादी स्वेच्छाचारी अराजक हिंसक होते है वे उद्दंड होते है और यदि कोई उनकी बात बात काट को काट या उनको प्रमुखता व सम्मान देकर व्यवहार न करे तो वो फट पड़ते हैं जबकि वे खुद को दुसरो को अपशब्द कहते रहते हैं और दूसरे धर्मावलंबियों संप्रदायो या पंथों के लोगों के अधिकारो का हनन करते हैं ! 
इस्लाम एक बुरी आस्था है इस बुराई का स्रोत इस्लाम पवित्र ग्रंथों के अशुद्ध अर्थो मे नही मिलता हैं बल्कि शुद्ध अर्थो मे मिलता है  
दुनिया मे इस्लाम के आलवा किसी कारण से इतना रक्त नही बहाया गया है कुछ इतिहासकारों के मुताबिक अकेले भारत मे ही इस्लाम की तलवार से 10 करोड़ हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया फारस मिस्र और सभी देश जहां लूटेरे मुसलमानो का आक्रमण हुआ लाखों लोगो काट डाला गया गैर मुसलमानों के सामूहिक कत्ल सिलसिला उस वक्त से तो चला हैं ही जब ये लूटेरे हमला कर रहे थे इसके बाद भी सदियों तक यही जारी रहा है ये रक्तपात सिलसिला आज भी जारी है  
(1 )इस्लाम का मूल तत्व क्या है दुनिया भर मे जितने शोध हुए उससे पता चलता है कि इस्लाम के मूल मे झूठ छल प्रपंच मक्कारी और काम वासना हैं और इस्लाम समेत जितने अब्राहिमक मजहब हैं सबका मूल उनका काल बोध हैं   
(2)आसमानी किताब की 26 खूनी आयतें 
1-V.erse 9 Surah 5 فَاِذَاانْسَلَخَالۡاَشۡهُرُالۡحُـرُمُفَاقۡتُلُواالۡمُشۡرِكِيۡنَحَيۡثُوَجَدْتُّمُوۡهُمۡوَخُذُوۡهُمۡوَاحۡصُرُوۡهُمۡوَاقۡعُدُوۡالَهُمۡكُلَّمَرۡصَدٍ ۚفَاِنۡتَابُوۡاوَاَقَامُواالصَّلٰوةَوَاٰتَوُاالزَّكٰوةَفَخَلُّوۡاسَبِيۡلَهُمۡ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ 
अर्थ फिर, जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो ‘मुश्रिको‘ को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो. फिर यदि वे ‘तौबा‘ कर लें ‘नमाज‘ कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो. निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है.” (पा0 10, सूरा. 9, आयत 5,2ख पृ. 368) 
2-Verse 9 Surah 28 يٰۤاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡۤااِنَّمَاالۡمُشۡرِكُوۡنَنَجَسٌفَلَايَقۡرَبُواالۡمَسۡجِدَالۡحَـرَامَبَعۡدَعَامِهِمۡهٰذَا ۚوَاِنۡخِفۡتُمۡعَيۡلَةًفَسَوۡفَيُغۡنِيۡكُمُاللّٰهُمِنۡفَضۡلِهٖۤاِنۡشَآءَ ؕاِنَّاللّٰهَعَلِيۡمٌحَكِيۡمٌ

अर्थ ”हे ‘ईमान‘ लाने वालो! ‘मुश्रिक‘ (मूर्तिपूजक) नापाक हैं.” (10.9.28 पृ. 371) 
3- Verse 4 Surah 101 وَاِذَاضَرَبۡتُمۡفِىالۡاَرۡضِفَلَيۡسَعَلَيۡكُمۡجُنَاحٌاَنۡتَقۡصُرُوۡامِنَالصَّلٰوةِ ۖاِنۡخِفۡتُمۡاَنۡيَّفۡتِنَكُمُالَّذِيۡنَكَفَرُوۡا ؕاِنَّالۡـكٰفِرِيۡنَكَانُوۡالَـكُمۡعَدُوًّامُّبِيۡنًا‏
अर्थ
निःसंदेह ‘काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं.” (5.4.101. पृ. 239) 
4- Verse 9 Surah 123 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡاقَاتِلُواالَّذِيۡنَيَلُوۡنَكُمۡمِّنَالۡكُفَّارِوَلۡيَجِدُوۡافِيۡكُمۡغِلۡظَةً ؕوَاعۡلَمُوۡاۤاَنَّاللّٰهَمَعَالۡمُتَّقِيۡنَ 
अर्थ
हे ‘ईमान‘ लाने वालों! (मुसलमानों) उन ‘काफिरों‘ से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें.” (11.9.123 पृ. 391)
5- Verse 4 Surah 56 اِنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاٰيٰتِنَاسَوۡفَنُصۡلِيۡهِمۡنَارًاؕكُلَّمَانَضِجَتۡجُلُوۡدُهُمۡبَدَّلۡنٰهُمۡجُلُوۡدًاغَيۡرَهَالِيَذُوۡقُواالۡعَذَابَ ؕاِنَّاللّٰهَكَانَعَزِيۡزًاحَكِيۡمًا‏ 
अर्थ जिन लोगों ने हमारी ”आयतों” का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे. जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें. निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं” (5.4.56 पृ. 231) 
6-Verse 9 Surah 23 يٰۤاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَتَّخِذُوۡۤااٰبَآءَكُمۡوَاِخۡوَانَـكُمۡاَوۡلِيَآءَاِنِاسۡتَحَبُّواالۡـكُفۡرَعَلَىالۡاِيۡمَانِ ؕوَمَنۡيَّتَوَلَّهُمۡمِّنۡكُمۡفَاُولٰۤـئِكَهُمُالظّٰلِمُوۡنَ‏ 
अर्थ हे ‘ईमान‘ लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा ‘कुफ्र‘ को पसन्द करें. और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे” (10.9.23 पृ. 370) 
7- Verse 9 Surah 37 اِنَّمَاالنَّسِىۡٓءُزِيَادَةٌفِىالۡكُفۡرِ يُضَلُّبِهِالَّذِيۡنَكَفَرُوۡايُحِلُّوۡنَهٗعَامًاوَّيُحَرِّمُوۡنَهٗعَامًالِّيُوَاطِـُٔـوۡاعِدَّةَمَاحَرَّمَاللّٰهُفَيُحِلُّوۡامَاحَرَّمَاللّٰهُ ؕزُيِّنَلَهُمۡسُوۡۤءُاَعۡمَالِهِمۡ ؕوَاللّٰهُلَايَهۡدِىالۡقَوۡمَالۡـكٰفِرِيۡنَ 
अर्थ अल्लाह ‘काफिर‘ लोगों को मार्ग नहीं दिखाता” (10.9.37 पृ. 374) 
8-Verse 5 Surah 57 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَـتَّخِذُواالَّذِيۡنَاتَّخَذُوۡادِيۡنَكُمۡهُزُوًاوَّلَعِبًامِّنَالَّذِيۡنَاُوۡتُواالۡكِتٰبَمِنۡقَبۡلِكُمۡوَالۡـكُفَّارَاَوۡلِيَآءَ ۚوَاتَّقُوااللّٰهَاِنۡكُنۡتُمۡمُّؤۡمِنِيۡ 
अर्थ हे ‘ईमान‘ लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को अपना मित्र बनाओ. अल्ला से डरते रहो यदि तुम ‘ईमान‘ वाले हो.” (6.5.57 पृ. 268 
9-Verse 33 Surah 61 مَّلۡـعُوۡنِيۡنَ ۛۚاَيۡنَمَاثُقِفُوۡۤااُخِذُوۡاوَقُتِّلُوۡاتَقۡتِيۡلً 
अर्थ फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे.” (22.33.61 पृ. 759) 
10- Verse 21 Surah 98 اِنَّكُمۡوَمَاتَعۡبُدُوۡنَمِنۡدُوۡنِاللّٰهِحَصَبُجَهَـنَّمَؕاَنۡـتُمۡلَهَاوَارِدُوۡنَ 
अर्थ कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे ‘जहन्नम‘ का ईधन हो. तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे.” 
11-Verse 32 Surah 22 وَمَنۡاَظۡلَمُمِمَّنۡذُكِّرَبِاٰيٰتِرَبِّهٖثُمَّاَعۡرَضَعَنۡهَاؕاِنَّامِنَالۡمُجۡرِمِيۡنَمُنۡتَقِمُوۡنَ 
और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके ‘रब‘ की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले. निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है.” (21.32.22 पृ. 736) 

12-Verse 48 Surah 20 وَعَدَكُمُاللّٰهُمَغَانِمَكَثِيۡرَةًتَاۡخُذُوۡنَهَافَعَجَّلَلَكُمۡهٰذِهٖوَكَفَّاَيۡدِىَالنَّاسِعَنۡكُمۡۚوَلِتَكُوۡنَاٰيَةًلِّلۡمُؤۡمِنِيۡنَوَيَهۡدِيَكُمۡصِرَاطًامُّسۡتَقِيۡمًاۙ

अर्थ अल्लाह ने तुमसे बहुत सी ‘गनीमतों‘ का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,” (26.48.20 पृ. 943) 
13 -Verse 8 Surah 69 فَكُلُوۡامِمَّاغَنِمۡتُمۡحَلٰلاًطَيِّبًاۖوَّاتَّقُوااللّٰهَ ؕاِنَّاللّٰهَغَفُوۡرٌرَّحِيۡمٌ  
अर्थ तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ” (10.8.69. पृ. 359) 
14-Verse 66 Surah 9يٰۤاَيُّهَاالنَّبِىُّجَاهِدِالۡكُفَّارَوَالۡمُنٰفِقِيۡنَوَاغۡلُظۡعَلَيۡهِمۡؕوَمَاۡوٰٮهُمۡجَهَنَّمُؕوَبِئۡسَالۡمَصِيۡرُ ‏ 
अर्थ
हे नबी! ‘काफिरों‘ और ‘मुनाफिकों‘ के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना ‘जहन्नम‘ है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे” (28.66.9. पृ. 1055) 
15-Verse 41 Surah 27 فَلَـنُذِيۡقَنَّالَّذِيۡنَكَفَرُوۡاعَذَابًاشَدِيۡدًاۙوَّلَنَجۡزِيَنَّهُمۡاَسۡوَاَالَّذِىۡكَانُوۡايَعۡمَلُوۡنَ‏ 
अर्थ तो अवश्य हम ‘कुफ्र‘ करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे.” (24.41.27 पृ. 865) 
16- Verse 41 Surah 28 ذٰلِكَجَزَآءُاَعۡدَآءِاللّٰهِالنَّارُ ۚلَهُمۡفِيۡهَادَارُالۡخُـلۡدِ ؕجَزَآءًۢبِمَاكَانُوۡابِاٰيٰتِنَايَجۡحَدُوۡنَ‏  
अर्थ 
यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का (‘जहन्नम‘ की) आग. इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी ‘आयतों‘ का इन्कार करते थे.” (24.41.28 पृ. 865) 

17- Verse 9 Surah 111 اِنَّاللّٰهَاشۡتَرٰىمِنَالۡمُؤۡمِنِيۡنَاَنۡفُسَهُمۡوَاَمۡوَالَهُمۡبِاَنَّلَهُمُالۡجَـنَّةَ ؕيُقَاتِلُوۡنَفِىۡسَبِيۡلِاللّٰهِفَيَقۡتُلُوۡنَوَيُقۡتَلُوۡنَوَعۡدًاعَلَيۡهِحَقًّافِىالتَّوۡرٰٮةِوَالۡاِنۡجِيۡلِوَالۡقُرۡاٰنِ ؕوَمَنۡاَوۡفٰىبِعَهۡدِهٖمِنَاللّٰهِفَاسۡتَـبۡشِرُوۡابِبَيۡعِكُمُالَّذِىۡبَايَعۡتُمۡبِهٖؕوَذٰلِكَهُوَالۡفَوۡزُالۡعَظِيۡمُ
अर्थ निःसंदेह अल्लाह ने ‘ईमानवालों‘ (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए ‘जन्नत‘ हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं.” (11.9.111 पृ. 388) 
18 -Verse 9 Surah 58 وَمِنۡهُمۡمَّنۡيَّلۡمِزُكَفِىالصَّدَقٰتِ ۚفَاِنۡاُعۡطُوۡامِنۡهَارَضُوۡاوَاِنۡلَّمۡيُعۡطَوۡامِنۡهَاۤاِذَاهُمۡيَسۡخَطُوۡنَ‏
अर्थ 
अल्लाह ने इन ‘मुनाफिक‘ (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से ‘जहन्नम‘ की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे. यही उन्हें बस है. अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है.” (10.9.68 पृ. 379) 
19 -Verse 8 Surah 65 يٰۤـاَيُّهَاالنَّبِىُّحَرِّضِالۡمُؤۡمِنِيۡنَعَلَىالۡقِتَالِ ؕاِنۡيَّكُنۡمِّنۡكُمۡعِشۡرُوۡنَصَابِرُوۡنَيَغۡلِبُوۡامِائَتَيۡنِ ۚ وَاِنۡيَّكُنۡمِّنۡكُمۡمِّائَةٌيَّغۡلِبُوۡۤااَلۡفًامِّنَالَّذِيۡنَكَفَرُوۡابِاَنَّهُمۡقَوۡمٌلَّايَفۡقَهُوۡنَ 
अर्थ 
हे नबी! ‘ईमान वालों‘ (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो. यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते.” (10.8.65 पृ. 358)   
20-Verse 5 Surah 51 يٰۤـاَيُّهَاالَّذِيۡنَاٰمَنُوۡالَاتَتَّخِذُواالۡيَهُوۡدَوَالنَّصٰرٰۤىاَوۡلِيَآءَ ۘبَعۡضُهُمۡاَوۡلِيَآءُبَعۡضٍؕوَمَنۡيَّتَوَلَّهُمۡمِّنۡكُمۡفَاِنَّهٗمِنۡهُمۡؕاِنَّاللّٰهَلَايَهۡدِىالۡقَوۡمَالظّٰلِمِيۡنَ

अर्थ हे ‘ईमान‘ लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ. ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं. और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा. निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता.” (6.5.51 पृ. 267) 
21-Verse 9 Surah 29 قَاتِلُواالَّذِيۡنَلَايُؤۡمِنُوۡنَبِاللّٰهِوَلَابِالۡيَوۡمِالۡاٰخِرِوَلَايُحَرِّمُوۡنَمَاحَرَّمَاللّٰهُوَرَسُوۡلُهٗوَلَايَدِيۡنُوۡنَدِيۡنَالۡحَـقِّمِنَالَّذِيۡنَاُوۡتُواالۡـكِتٰبَحَتّٰىيُعۡطُواالۡجِزۡيَةَعَنۡيَّدٍوَّهُمۡصٰغِرُوۡنَ 

अर्थ किताब वाले” जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे ‘हराम‘ करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना ‘दीन‘ बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से ‘जिजया‘ देने लगे.” (10.9.29. पृ. 372 
22-Verse 5 Surah 14 وَمِنَالَّذِيۡنَقَالُوۡۤااِنَّانَصٰرٰٓىاَخَذۡنَامِيۡثَاقَهُمۡفَنَسُوۡاحَظًّامِّمَّاذُكِّرُوۡابِهٖفَاَغۡرَيۡنَابَيۡنَهُمُالۡعَدَاوَةَوَالۡبَغۡضَآءَاِلٰىيَوۡمِالۡقِيٰمَةِ ؕوَسَوۡفَيُنَبِّئُهُمُاللّٰهُبِمَاكَانُوۡايَصۡنَعُوۡنَ‏
अर्थ 22 ”…….फिर हमने उनके बीच कियामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं. (6.5.14 पृ. 260) 
23-Verse 4 Surah 89 وَدُّوۡالَوۡتَكۡفُرُوۡنَكَمَاكَفَرُوۡافَتَكُوۡنُوۡنَسَوَآءً فَلَاتَتَّخِذُوۡامِنۡهُمۡاَوۡلِيَآءَحَتّٰىيُهَاجِرُوۡافِىۡسَبِيۡلِاللّٰهِ ؕفَاِنۡتَوَلَّوۡافَخُذُوۡهُمۡوَاقۡتُلُوۡهُمۡحَيۡثُوَجَدتُّمُوۡهُمۡوَلَاتَتَّخِذُوۡامِنۡهُمۡوَلِيًّاوَّلَانَصِيۡرًا 
अर्थ वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी ‘काफिर‘ हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो. और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना.” (5.4.89 पृ. 237) 
24-Verse 9 Surah 14قَاتِلُوۡهُمۡيُعَذِّبۡهُمُاللّٰهُبِاَيۡدِيۡكُمۡوَيُخۡزِهِمۡوَيَنۡصُرۡكُمۡعَلَيۡهِمۡوَيَشۡفِصُدُوۡرَقَوۡمٍمُّؤۡمِنِيۡنَۙ ‏ 
अर्थ
उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और ‘ईमान‘ वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा” (10.9.14. पृ. 369) 
25- Verse 3 Surah 151 سَنُلۡقِىۡفِىۡقُلُوۡبِالَّذِيۡنَكَفَرُواالرُّعۡبَبِمَاۤاَشۡرَكُوۡابِاللّٰهِمَالَمۡيُنَزِّلۡبِهٖسُلۡطٰنًا ۚوَمَاۡوٰٮهُمُالنَّارُؕوَبِئۡسَمَثۡوَىالظّٰلِمِيۡنَ

मतलब: हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ों को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनके साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है. और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है.

26- Verse 2 Surah 191 وَاقۡتُلُوۡهُمۡحَيۡثُثَقِفۡتُمُوۡهُمۡوَاَخۡرِجُوۡهُمۡمِّنۡحَيۡثُاَخۡرَجُوۡكُمۡ وَالۡفِتۡنَةُاَشَدُّمِنَالۡقَتۡلِۚوَلَاتُقٰتِلُوۡهُمۡعِنۡدَالۡمَسۡجِدِالۡحَـرَامِحَتّٰىيُقٰتِلُوۡكُمۡفِيۡهِۚفَاِنۡقٰتَلُوۡكُمۡفَاقۡتُلُوۡهُمۡؕكَذٰلِكَجَزَآءُالۡكٰفِرِيۡنَ

मतलब: और जहां कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहां से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उपद्रव) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है. लेकिन मस्जिदे-हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहां युद्ध न करें. अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है. 

उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं. इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते है !

3- दारुल अमन : دارالامن House of Safety: बचाव का घर यह उस भूभाग को कहा जाता है, जहाँ अधिकांश गैर मुस्लिम रहते हों , लेकिन मुसलमानों को भी कोई न कोई अधिकार दिया गया हो या जहाँ पर इस्लाम को खतरा होने का भय नहीं लगे। इस्लाम इस वर्गीकरण के अनुसार भारत भी एक "दारुल अमन है। क्योंकि यहाँ मुसलमानों को हिन्दुओं से अधिक अधिकार प्राप्त हैं !
4- दारुल हरब : دارالحرب House of War: युद्ध का घर ,यह उस भूभाग को कहा जाता है जहाँ गैर मुस्लिमों की संख्या अधित हो या गैर मुस्लिम सरकारे हों, या जहाँ पर प्रजातंत्र (Democracy) चलती हो या जिनका मुस्लिम देशों से विवाद हो और यदि दारुल हरब के लोग दारुल इस्लाम में जाएँ तो उनको निम्न दर्जे का व्यक्ति या दिम्मी Dimmi मानकर जजिया लिया जाये.. या कोई अधिकार नहीं दिया जाए.

5- दारूल इस्लाम Peace: इसको दारुल तौहीद دارُالتوحيد भी कहा जाता है, यह उस भूभाग को कहा जाता है जहाँ पर इस्लामी हुकूमत होती हो, और जहाँ पर मुसलमान निडर होकर अपनी गतिविधियाँ चला सकें. दारुल इस्लाम मुसलमानों गढ़ होता है. अबू हनीफा ने यह नाम कुरान की इन आयतों से लिया था। "अल्लाह तुम्हें सलामती के घर (दारुल इस्लाम ) की ओर बुलाता रहता है, ताकि तुम सीधे रास्ते पर चलो " सूरा -यूसुफ 10 :25
(इसी आयत की तफ़सीर में लिखा है "जहाँ पर मुसलमानों की हर प्रकार की सुरक्षा हो और जहाँ से वह जिहाद करें तो उन पर कोई आपत्ति नहीं आये, इसी तरह लिखा है "और अल्लाह मुसलमानों के लिए ऐसा सलामती का घर (दारुल इस्लाम) चाहता है जहाँ पर उनके मित्र और संरक्षक मौजूद हों -- "सूरा-अल अनआम 6 :128 इसी दारुल इस्लाम का सपना दिखा कर जिन्ना ने मुसलमानों को पाकिस्तान बनवाने के लिए प्रेरित किया था। क्योंकि जिन्ना की नजर में भारत ناپاك नापाक (अपवित्र) देश था और जिन्ना पाक پاك (पवित्र) देश پاكِستان बनाना चाहता था. (ये बात और है कि खुद जिन्ना हिन्दू रक्त का वंशज था और न केवल सिगरेट पीता था, बल्कि लन्दन में पोर्क (सूअर का माँस) भी खाता था)
6- दारुल हुंदा :دارالهنُنده House of Calm : विराम का घर, यह उस क्षेत्र को या उस देश को कहा जाता है, जिसका किसी मुस्लिम देश से युद्ध या झगडा होता रहता हो. लेकिन किसी कारण से लड़ाई बंद हो गयी हो और भविष्य में या तो समझौते की गुंजायश हो या फिर युद्ध की संभावना हो .और यह एक प्रकार की Wait and Watch की स्थिति होती है !

7- दारुल अहद :دارُالعهد House of Truce: युद्ध विराम का घर..:- इसे दारुल सुलह دارالسُلح या House of Treaty भी कहा जाता है यह उन देशो को कहा जाता है, जिन्होंने मुस्लिम देशो से किसी प्रकार की कोई संधि या समझौता कर लिया हो और जिसे दोनो देशों के आलावा दुसरे मुस्लिम देशो ने स्वीकार कर लिया हो 

8- दारुल दावा دارُالدعوة House of Invitation: आह्वान का घर... यह उन देशों या उन क्षेत्रों या उन इलाकों को कहा जाता है जहाँ गैर-मुस्लिम हों और जिनको मुसलमान बनाने के लिए कोशिश करना जरुरी हो. यहाँ के लोग इस्लाम के बारे में अधिक नहीं जानते हो. (ऐसे भूभाग को दारुल जहलिया دارالجاهلِية या House of ingorant भी कहा जाता है) और फिर किसी भी उपाय से उस भूभाग को दारुल इस्लाम में लेन की योजनाएं बनाई जाती है या फिर उस क्षेत्र को कहा जाता है जहाँ के मुसलमान कट्टर नहीं होते हैं और उनको कट्टर बनाने की जरूरत हो, ताकि उनको जिहादी कामों में लगाया जा सके, और इस काम के लिए उस क्षेत्रों में जमातें भेजी जाती है. 

तात्पर्य यह है कि मुसलमानों ने विश्व के देशो या किसी देश के भूभाग या किसी क्षेत्र को जो अलग अलग दार या Houses में बाँट कर विभाजित किया है. वह राजनीतिक, या भौगोलिक सीमाओं के आधार पर नहीं है .इस्लामी परिभाषा में "दार "कोई देश, प्रान्त, जिला या उसका कोई हिस्सा भी हो सकता है, और इन्हीं दार के house के हालात देख कर मुसलमान अपनी रणनीतियाँ तय करते है... जैसे कहीं तो शांत हो जाते हैं और कही आतंकवाद को तेज कर देते हैं. इस्लाम का एकमात्र उद्देश्य और लक्ष्य इन सब "दार "को दारुल इस्लाम के दायरे में लाने का है, ताकि दुनिया में "विश्व में इस्लाम राज्य Pan Islamic State" की स्थापना हो सके. मुसलमानों की तरह Catholic Church ने भी देशों को बाँट रखा है. आज इस बात की आवश्यकता है कि हम इस्लाम की कुटिल नीतियों और नापाक मंसूबों विफल करने का यत्न करते रहें, और देश को "दारुल इस्लाम" बनाने से रोकने के लिए पूरी ताकत लगा दें, और इस पवित्र कार्य में लोगों को उत्साहित करें और हरेक साधनों का उपयोग करें... तभी देश और धर्म बच सकेगा !

(4)इस्लामिक अलतकिया क्या है
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मुसलमानों का सबसे ताकतवर हथियार है ‘अल-तकिया’। इसे पढ़कर आप भी मानेंगे कि किसी भी मुल्ले की बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए।

अल तकिया ने इस्लाम के प्रचार प्रसार में जितना योगदान दिया है, उतना इनकी सैंकड़ों हजारों कायरों की सेनायें नहीं कर पायीं ।

अल-तकिया के अनुसार यदि इस्लाम के प्रचार - प्रसार अथवा बचाव के लिए किसी भी प्रकार का झूठ, धोखा करना पड़े, या माफी मांगनी पड़े – सब धर्म स्वीकृत है। यह सब धर्म स्वीकृत तब भी है जब यह सब माफी मांगना काफिरों से भी किया जाए।

मुसलमानों के विश्वासघात के अन्य उदाहरण, जो कि अल तकिया का प्रयोग कर के हुआ है।

1. मुहम्मद गौरी ने 17 बार क़ुरान की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा, लेकिन हमला किया ।

2. अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया ।

3. औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया ।

4. औरंगजेब ने क़ुरान की कसम खाकर श्री गोविन्द सिंह को आनंदपुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था। फिर हमला किया था।

5. अफजल खान ने दोस्ती के बहाने शिवाजी की हत्या का प्रयत्न किया था।

6. मित्रता की बातें कहकर पाकिस्तान ने कारगिल पर हमला किया था ।

ये ऐसी स्थिति है जिसको मुसलमान खुद समझ नहीं पा रहे हैं कि इतनी जल्दी उनकी पोल कैसे खुल गई। सिर्फ भारत की बात नहीं दुनिया के हर कोने में मुसलमानों को शक की नज़र से देखा जा रहा है। आखिर वैश्विक आतंकवाद की उत्पत्ति भी तो इस्लाम और आसमानी किताब क़ुरान से ही हुई है। मुसलमान झूठ बोलेगा क्योंकि क़ुरान के 3:28 में लिखा है कि सिर्फ अपने फायदे के लिए, और जान बचाने के लिए गैर मुसलमानों से दोस्त होने का ढोंग करो दिल से कुछ मत करो। क़ुरान में 16:102, 66:2, 40:28, 2:225, 3:54; सहिह बुखारी के 84:64-65 में इन्हीं सरी बातों को कहा गया है। क़ुरान में कहा गया है कि अल्लाह ने झूठ और मक्कारी का मनाही नहीं किया हुआ है। क़ुरान कहता है कि काफिरों से झूठ बोलो, धोखा दो, काफिरों का धोखे से खून भी कर दो, यह सब कुरान में माफ है - और पाक (अल्लाह का काम, नेक काम, पुण्य कर्म) काम है। 

(5)इस्लामिक जेहाद के प्रकार 
1 सेक्स जेहाद (लव जिहाद ) 2राजनैतिक जेहाद 3 लैंड जेहाद 4 रोजगार जिहाद 5 घुसपैठ 6 जिहाद रेप जिहाद 7 जनसंख्या जिहाद 8 बुद्धिजीवि जिहाद 
जिहाद इस्लाम में जो आवस्यक है जिससे इस्लाम को जाना जाता है यानी प्रत्येक मोमिन को करणीय है नमाज, जकात, हज, रोजा और इन सबके लिए जिहाद--- जिहाद का वास्तविक अर्थ है संघर्ष करना, युध्द जिहाद यांनी पवित्र युद्ध है जिहाद, "इस्लामिक सत्ता" की विस्तार के लिए जिहाद, जिहाद के बारे बड़ा ही भ्रम है सबसे पहले "बुद्धिजीवी जिहाद" को हमे समझना होगा प्रत्येक "इस्लामिक स्कालर" अपने पन्थ के मदरसों के अनुसार परिभाषित करता है कुछ स्कालर जिहाद का अर्थ करते हैं कि दीन दुखियों की मदद करना, महिलाओं की सुरक्षा करना, बुराई के खिलाफ संघर्ष, अपने अन्दर की बुराई के खिलाफ संघर्ष जबकि जो पूरे विश्व में जो इस्लामिक व्यवहार दिखाई दे रहा है वह इसके बिल्कुल अलग विपरीत इसलिए आज सम्पूर्ण विश्व में हिंसा, हत्या का पर्याय ही 'इस्लाम' हो गया है लेकिन 'इस्लामिक स्कालर' बुद्धिजीवी जिहाद द्वारा गलत को सही परिभाषित करते नहीं थक रहे, भारत में इस्लामिक शासन जिहाद का ही एक हिस्सा था सूडान में जिहाद द्वारा 40 लाख लोगों को अमानवीयता यातना देकर बेघर कर दिया गया लेकिन इस्लामिक विद्वान जैसे मौलाना बदरुद्दीन, अभिनेता आमिर खान, नसरुद्दीन साह, शाहरुख खान, संगीतकार जावेद अख्तर, राजनेता अकबरुद्दीन ओवैसी, गुलाम नबी आजाद, आज़म खान, फारुख अब्दुल्ला इत्यादि विश्व के मानव समाज को अंधेरे में रखने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन बहुत सारे 'मुस्लिम स्कालर' इसके अतिरिक्त विचार हीनहीं रखते बल्कि उनके पक्ष में संघर्ष करते भी दिखाई देते हैं, लेकिन जो बुद्धिजीवी स्कालर इस्लामिक (आतंकी जिहाद) का विरोध करते दिखते हैं जैसे तारिक फतेह, सलमान रुश्दी, तस्लीमा नसरीन, सलाम आजाद (ठीक है) ये सब लोग इस्लामी आतंकियो के हमेसा निशाने पर रहते हैं बहुतों को अपना जीवन बचाने के लिए अपने घर व देश की तिलांजलि देनी पड़ी । 

जिहाद के प्रकार

इस्लामी जगत में कुरान के बाद सर्बाधिक महत्व हदीश को दिया जाता है कभी कभी तो हदीश को ही प्रमुखता दी जाती है क्योंकि मुहम्मद साहब ने अपने जीवन में जो जो किया वही हदीश है यानी मुहम्मद की जीवनी इस प्रकार जो मुहम्मद साहब ने किया उसे किसी प्रकार करना उस उद्देश्यों को प्राप्त करना उसके लिए जो भी रास्ता हो नैतिक अथवा अनैतिक उन सभी रास्तों को जेहाद कहा जाता है, इसके दो प्रकार है 1- 'अल अकबर जिहाद' जो बड़े उद्देश्यों के लिए किया जाता है काफ़िरों से युद्ध उनके देश पर हमला इत्यादि 2- 'जेहाद अल असगर' इसे छोटा मोटा काम के लिए किये जाते हैं, आज जो इस्लाम धर्म को जानने वाले हैं वे हदीश के अनुसार जिहाद कर रहे हैं वह जिहाद इस प्रकार है अविस्वासी के खिलाफ संघर्ष, लव जिहाद, लैंड जिहाद, जनसंख्या जिहाद, रेप जिहाद, बुद्धिजीवी जिहाद, हत्या हिँसा जिहाद, लूट जिहाद, सेक्स असली मुहम्मद का अनुयायी कौन ? युध्द जिहाद के लिए
अलीसिना ने सरिया के कुछ उद्धरण दिये हैं! 
1-जिहाद, "गैर मुस्लिमों के विरुद्ध मजहब को स्थापित करने हेतु युध्द करना"। 
2- एक खलीफा बल पूर्बक सत्ता छीनकर शासन कर सकता है। 
3- गैर मुस्लिम मुसलमान का उत्तराधिकारी नहीं वन सकता। 
सम्पूर्ण विश्व को इस्लाम ने दो भागों में बाट दिया है मोमिन और गैर मोमिन फिर मोमिनों में 72 फिरके यह सब फिरकों के खलीफा अपने को असली मुहम्मद साहब के बाद असली खलीफा मानते हैं उसी के लिए युद्ध जारी है कुछ इस्लामिक विद्वान इस्लाम को प्रेम मुहब्बत का बताते नहीं थकते लेकिन इस शान्ति धर्म के बीच जो युद्ध का आंकड़ा है वह चौकाने वाला है 20 वर्षों में एक दूसरे पर हमला हिंसा और आतंकवाद द्वारा "एक करोड़ पच्चीस लाख" मुसलमान मारे गए हैं और जो गैर मुस्लिमों का आंकड़ा है इन चौदह सौ वर्षों में "एक अरब" से अधिक मानव समाज की हत्या की है इसी को जिहाद कहा जाता है और उसके इस प्रकार के परिणाम हैं ! 


इस्लामी जिहादी मानसिकता को रोकने हेतु सरकार एवं समाज द्वारा किए जाने योग्य उपाय

1. विशेषाधिकारों की समाप्ति – शासन द्वारा मुस्लिम समुदाय को प्रदत्त समस्त विशेषाधिकारों का उन्मूलन किया जाना चाहिए, जिससे भारत में मुस्लिम होना किसी प्रकार से लाभप्रद न रहे। जब मुस्लिम होने का लाभ समाप्त हो जाएगा, तो लगभग 90% मुस्लिम पुनः हिंदू धर्म में घर-वापसी आरंभ कर देंगे। इतिहास साक्षी है कि जब इस्लाम का प्रसार हुआ, तब अनेक हिंदू या तो इसके लाभकारी प्रलोभनों के कारण अथवा तलवार के बल पर धर्मांतरित किए गए। यदि शासन इस्लामी आक्रांताओं द्वारा रोपे गए भय का उन्मूलन कर देता है और हिंदू होने को अधिक सुरक्षित तथा सम्मानजनक स्थिति में लाता है, तो स्वतः ही इस्लामी मतांतरण की प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी। यह सर्वविदित तथ्य है कि संप्रदाय शासन के संरक्षण में ही फलते-फूलते हैं, अतः जैसे ही शासन का संरक्षण समाप्त होगा, वैसे ही इनकी शक्ति क्षीण हो जाएगी।


2. अल्पसंख्यक दर्जे की समाप्ति – मुसलमानों को "अल्पसंख्यक" का विशेषाधिकार न प्रदान कर उन्हें अन्य भारतीय नागरिकों के समान अधिकार एवं सुविधाएँ दी जानी चाहिए।


3. समान नागरिक संहिता – समस्त नागरिकों हेतु एक समान कानून लागू किया जाना चाहिए, जिससे संप्रदाय-विशेष को विशेषाधिकार प्राप्त न हो।


4. मजहबी शिक्षा पर प्रतिबंध – धार्मिक शिक्षा पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया जाए तथा शिक्षा प्रणाली को राष्ट्रवादी, वैज्ञानिक एवं भारतीय संस्कृति आधारित बनाया जाए।


5. जनसंख्या नीति – विश्व जनांकिकी (डेमोग्राफी) के गहन शोध के आधार पर ऐसी जनसंख्या नीति बनाई जाए जिससे लालच अथवा बलपूर्वक मतांतरण एवं लक्षित जनसंख्या-वृद्धि की प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाया जा सके।


6. हिंदू प्रतिकार नीति – जिन क्षेत्रों में मुस्लिम जनसंख्या असंतुलन उत्पन्न कर रही है, वहाँ योद्धा हिंदू जातियों को आर्थिक एवं सामाजिक संरक्षण प्रदान कर उन्हें पुनः बसाया जाए। इससे वे इस जनसंख्या असंतुलन का प्रभावी प्रतिकार कर सकेंगे। साथ ही, समस्त हिंदू संगठनों को सशक्त बनाया जाए ताकि हिंदू समाज किसी भी संघर्ष के लिए सदैव तैयार रहे।


7. हिंदू इको-सिस्टम का निर्माण – हिंदू समाज को अपने अस्तित्व एवं अधिकारों की रक्षा हेतु आत्मनिर्भर तथा शक्तिशाली इको-सिस्टम विकसित करना चाहिए, जिससे उन्हें किसी अन्य समुदाय या शासन पर निर्भर न रहना पड़े।


8. मुस्लिम समाज के अंतर्विरोधों का उद्घाटन – इस्लामी समाज में विद्यमान 72 फिरकों के आपसी विवादों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मुस्लिम समाज में "अशराफ" वर्ग का प्रभुत्व समाप्त कर उन मुसलमानों को मुख्यधारा में लाया जाए, जो भारतीय संस्कृति में आस्था रखते हैं। देश में उपस्थित विदेशी मानसिकता वाले मुस्लिमों का प्रतिकार बिना "देशी मुसलमानों" को संगठित किए संभव नहीं होगा।


9. सद्गुण विकृति का त्याग – सरकार एवं समाज को इस्लामी जिहादियों के प्रति अनावश्यक दया एवं सहिष्णुता का परित्याग करना होगा। जो जिस भाषा को समझता है, उसे उसी भाषा में प्रत्युत्तर दिया जाना चाहिए। हमारी सरकारों को इस्लामी कट्टरपंथियों को अराजकता फैलाने की खुली छूट देना बंद कर, इनके विरुद्ध कठोर दंडात्मक नीति अपनानी चाहिए।


10. इस्लाम के मूल स्वरूप को समझना एवं उसे चुनौती देना – इस्लामी सिद्धांतों एवं उसके मूल स्वभाव को गहराई से समझकर, उन बिंदुओं पर प्रहार किया जाना चाहिए जिससे यह समस्या जड़ से समाप्त हो सके।
इस्लामी जिहादी मानसिकता के उन्मूलन हेतु शासन एवं समाज द्वारा किए जाने योग्य ठोस उपाय

भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक अखंडता एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु इस्लामी जिहादी मानसिकता का उन्मूलन अत्यंत आवश्यक है। यह समस्या केवल धार्मिक नहीं, अपितु एक राजनीतिक, जनसंख्या-संबंधी, आर्थिक एवं वैचारिक षड्यंत्र का परिणाम है। अतः शासन एवं समाज को निम्नलिखित ठोस एवं व्यवस्थित उपाय अपनाने होंगे।


1. इस्लामी विशेषाधिकारों की समाप्ति

संविधान के समानता के सिद्धांत के अनुरूप किसी भी मजहब को विशेषाधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। मुस्लिम समुदाय को दी जाने वाली हज सब्सिडी, धार्मिक अनुदान, विशेष आरक्षण, एवं अन्य लाभों को समाप्त करना आवश्यक है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

भारत में मुस्लिम समुदाय को प्रतिवर्ष अरबों रुपये की अनुदान सहायता मिलती है, जबकि हिंदू समाज को अपने धार्मिक स्थलों एवं गतिविधियों के लिए कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता।

हज सब्सिडी समाप्त करने के बाद भी सरकार वक्फ बोर्डों को भारी वित्तीय सहायता देती है।

भारत में 5 लाख से अधिक वक्फ संपत्तियाँ हैं, जिनका मूल्य 15 लाख करोड़ से अधिक है, फिर भी सरकारी धन पर निर्भरता क्यों?
✅ समाधान:

मुस्लिम धार्मिक संस्थानों को मिलने वाली सरकारी सहायता को पूर्णतः समाप्त किया जाए।

सरकारी सहायता का उपयोग केवल आदिवासियों, निर्धनों एवं पिछड़े वर्गों के लिए किया जाए, न कि किसी विशेष मजहब के लिए।




2. अल्पसंख्यक दर्जे की समाप्ति एवं समान नागरिक संहिता

भारत में मुस्लिम जनसंख्या 1947 में 9.8% थी, जो अब 17% से अधिक हो चुकी है, फिर भी उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा प्राप्त है।
✅ समाधान:

मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का विशेषाधिकार समाप्त कर समान नागरिक बनाया जाए।

समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू कर बहुपत्नी प्रथा, तीन तलाक, हलाला, शरिया कानून एवं अन्य असमान प्रथाओं को समाप्त किया जाए।


3. मजहबी शिक्षा पर प्रतिबंध एवं आधुनिक शिक्षा प्रणाली

भारत में 1.5 लाख से अधिक मदरसे संचालित हैं, जिनमें से अधिकांश सरकारी निगरानी से मुक्त हैं एवं जिहादी मानसिकता को बढ़ावा देते हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य:

पाकिस्तान के 70% आतंकवादी मदरसों से जुड़े होते हैं।

भारत में 2001 से 2022 तक आतंकवाद से जुड़े 95% अभियुक्त किसी न किसी मदरसे से संबद्ध रहे हैं।
✅ समाधान:

सभी मदरसों को सरकारी निगरानी में लाया जाए एवं इनका वित्तीय एवं पाठ्यक्रम अंकेक्षण (Audit) अनिवार्य किया जाए।

मदरसा शिक्षा के स्थान पर आधुनिक, वैज्ञानिक एवं राष्ट्रवादी शिक्षा लागू की जाए।

अरबी, उर्दू एवं इस्लामी कट्टरपंथी साहित्य पर प्रतिबंध लगे।

4. जिहादी वित्तीय तंत्र पर कठोर नियंत्रण

भारत में हर वर्ष अरबों रुपये की इस्लामी फंडिंग खाड़ी देशों से आती है, जिसका उपयोग धर्मांतरण एवं जिहादी गतिविधियों के लिए किया जाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य:

2017 से 2023 के बीच 5000 करोड़ रुपये की संदिग्ध फंडिंग पकड़ी गई।

PFI, SIMI, Tablighi Jamaat जैसी संस्थाओं को खाड़ी देशों एवं पाकिस्तान से वित्तीय सहयोग प्राप्त होता है।
✅ समाधान:

सभी इस्लामी संस्थाओं एवं मस्जिदों की आय-व्यय का अनिवार्य अंकेक्षण (Audit) किया जाए।

विदेशों से आने वाले इस्लामी अनुदानों पर कठोर प्रतिबंध लगाया जाए।

इस्लामिक बैंकिंग एवं हलाल इकोनॉमी की जाँच की जाए।

5. जनसंख्या नीति: भारत में बढ़ते जनसंख्या असंतुलन का समाधान

जनसंख्या नीति: भारत में बढ़ते जनसंख्या असंतुलन का समाधान

भारत में जनसंख्या वृद्धि मात्र एक सामाजिक या आर्थिक विषय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ गंभीर विषय है। विशेष रूप से हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या असंतुलन देश की लोकतांत्रिक संरचना, सांस्कृतिक स्थायित्व और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है।


(क) ऐतिहासिक एवं वर्तमान आँकड़े

भारत में जनसंख्या असंतुलन बीते सात दशकों में निरंतर बढ़ता गया है।

(*अनुमानित आँकड़े)

➤ कुछ राज्यों में मुस्लिम जनसंख्या इतनी बढ़ चुकी है कि वहाँ हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं।
➤ बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की बढ़ती संख्या जनसंख्या असंतुलन को और अधिक भयावह बना रही है।

(ख) हिंदू-मुस्लिम प्रजनन दर में अंतर

➤ हिंदू समुदाय की प्रजनन दर 2.1 से नीचे गिर चुकी है, जो जनसंख्या स्थिरता के लिए आवश्यक न्यूनतम स्तर से भी कम है।
➤ मुस्लिम समुदाय में अधिक जन्मदर के कारण जनसंख्या असंतुलन और अधिक बढ़ता जा रहा है।

(ग) मुस्लिम बहुल होते जिले एवं राजनीतिक प्रभाव

पश्चिम बंगाल, केरल, असम, उत्तर प्रदेश एवं बिहार के कई जिलों में मुस्लिम बहुसंख्यक हो चुके हैं।

लोकतंत्र में वोट बैंक की राजनीति इस असंतुलन को और अधिक बढ़ावा दे रही है।

मुस्लिम बहुल होते क्षेत्रों में शरिया कानून, मजहबी कट्टरता एवं हिंदू पलायन की घटनाएँ बढ़ी हैं।



2. ✅ समाधान: भारत के लिए ठोस जनसंख्या नीति

(क) धार्मिक आधार पर संतुलित जनसंख्या नीति

✅ "2 संतान नीति" समाधान नहीं है, क्योंकि इससे केवल हिंदू समुदाय की जनसंख्या घटेगी, मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
✅ जनसंख्या नीति ऐसी होनी चाहिए कि हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या संतुलन बना रहे।

(ख) समान प्रजनन दर (Equal Fertility Rate) नीति

✅ सभी मजहबों के लिए प्रजनन दर 2.1 के भीतर सीमित हो।
✅ तीसरी संतान पर सरकारी सुविधाएँ समाप्त कर दी जाएँ।
✅ अल्पसंख्यक दर्जे एवं आरक्षण का लाभ केवल उन्हीं को मिले, जो जनसंख्या नियंत्रण नियमों का पालन करें।

(ग) अवैध घुसपैठियों का निष्कासन एवं NRC (National Register of Citizens) लागू करना

✅ पूरे भारत में NRC लागू किया जाए, जिससे अवैध घुसपैठियों को मतदाता सूची से हटाया जा सके।
✅ बांग्लादेशी व रोहिंग्या घुसपैठियों को देश से निष्कासित किया जाए।

(घ) “तीसरी संतान कर” एवं सरकारी सुविधाओं में कटौती

✅ मुस्लिम समाज में तीसरी संतान होने पर सरकारी सुविधाएँ (राशन, सब्सिडी, आरक्षण आदि) समाप्त की जाएँ।
✅ तीसरी संतान पर विशेष जनसंख्या कर (Population Tax) लागू किया जाए।
✅ सरकारी नौकरी एवं चुनाव लड़ने की पात्रता केवल उन्हीं को मिले, जो जनसंख्या नियंत्रण नीति का पालन करें।

(ङ) बहु-पत्नी प्रथा और मजहबी जनसंख्या वृद्धि रणनीति पर रोक

✅ बहु-पत्नी प्रथा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
✅ इस्लामी मजहबी जनसंख्या वृद्धि योजनाओं पर अंकुश लगाया जाए।
✅ लव जिहाद और मतांतरण के माध्यम से जनसंख्या बढ़ाने के षड्यंत्रों को रोका जाए।

(च) हिंदू समुदाय के लिए जनसंख्या प्रोत्साहन योजना

✅ हिंदू समाज में प्रजनन दर (TFR) को पुनः 2.1 से ऊपर लाने हेतु प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की जाएँ।
✅ तीसरी संतान के लिए हिंदू परिवारों को विशेष वित्तीय सहायता दी जाए।
✅ जिन जिलों में हिंदू जनसंख्या 50% से कम हो रही है, वहाँ हिंदू पुनर्वास कार्यक्रम लागू किया जाए।


3. निष्कर्ष: जनसंख्या संतुलन, राष्ट्रीय सुरक्षा का आधार

✅ दो-संतान नीति समाधान नहीं है, क्योंकि यह केवल हिंदुओं की जनसंख्या को नियंत्रित करेगी, जबकि मुस्लिमों पर किसी प्रकार का जनसंख्या नियंत्रण कानून लागू कर पाना असंभव है, क्योंकि उन्हें शासकीय सेवाओं की आवश्यकता नहीं होती। जनसंख्या संतुलन बनाए रखना राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक समरसता एवं लोकतांत्रिक स्थिरता के लिए परम आवश्यक है।

✅ हमें ऐसी नीति अपनानी होगी, जो मजहबी असंतुलन को रोके और हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या संतुलन को सुनिश्चित करे।
✅ जनसंख्या संतुलन को बनाए रखना राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक समरसता एवं लोकतांत्रिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।

यदि अब भी हम नहीं चेते, तो आने वाले दशकों में भारत की सांस्कृतिक, राजनीतिक और राष्ट्रीय अखंडता खतरे में पड़ सकती है। अतः हमें अब ही कठोर और न्यायसंगत जनसंख्या नीति को लागू करना होगा।

6. हिंदू आत्मरक्षा नीति एवं शस्त्र प्रशिक्षण

हिंदू समाज को संगठित कर आत्मरक्षा हेतु प्रशिक्षित करना आवश्यक है।
✅ समाधान:

हिंदू युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाए।

हिंदू बस्तियों में "सुरक्षा समिति" बनाई जाए, जो किसी भी आपातकालीन स्थिति में आत्मरक्षा कर सके।

हिंदू समाज को अपने हितों की रक्षा हेतु संगठित किया जाए।

7. आतंकवाद एवं इस्लामी कट्टरता पर कठोर दंड नीति

भारत में 1990 के बाद 35,000 से अधिक आतंकवादी घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनमें 50,000 से अधिक नागरिक मारे गए।
✅ समाधान:

आतंकवाद, लव जिहाद, धर्मांतरण एवं जिहादी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने पर कठोर दंड दिया जाए।

PFI, SIMI, Tablighi Jamaat जैसी इस्लामी संगठनों को पूर्णतः प्रतिबंधित किया जाए।

कट्टरपंथी मौलवियों एवं धर्मगुरुओं की गतिविधियों पर सतत निगरानी रखी जाए।


8. हिंदू आर्थिक तंत्र (Hindu Economic System) का निर्माण

हलाल अर्थव्यवस्था एवं इस्लामी बैंकिंग हिंदू व्यापारियों के आर्थिक शोषण का माध्यम बन चुके हैं।
✅ समाधान:

हिंदू व्यापारियों को "हलाल इकोनॉमी" के बहिष्कार हेतु जागरूक किया जाए।

स्वदेशी एवं हिंदू उद्यमों को बढ़ावा देने हेतु संगठित आर्थिक प्रणाली विकसित की जाए।


9. मुस्लिम समाज के अंतर्विरोधों का उद्घाटन

इस्लाम में 72 फिरके हैं, जिनमें आपसी संघर्ष व्याप्त है।
✅ समाधान:

अशराफ बनाम अजलाफ, शिया बनाम सुन्नी संघर्षों को उजागर कर कट्टरता को कमजोर किया जाए।

मूल भारतीय मुसलमानों को भारतीय संस्कृति से पुनः जोड़ने हेतु जागरूकता अभियान चलाए जाएँ।


10. "सद्गुण विकृति" का त्याग एवं कठोर राष्ट्रवादी दृष्टिकोण

✅ समाधान:

सरकार को इस्लामी कट्टरपंथियों के विरुद्ध कठोरतम दंड नीति अपनानी चाहिए।

हिंदू समाज को आत्मरक्षा हेतु सशक्त एवं संगठित होने की प्रेरणा दी जानी चाहिए।
निष्कर्ष - 2000 साल पहले एक यहूदी बढ़ई ने कहा था सत्य आपको मुक्ति दिलाएगा यह स्वयंसिद्ध सत्य है आज से अधिक प्रासंगिक कभी नहीं रहा है आईए हम इस्लाम की गंदी सच्चाई लोगों बताए आईए हम सत्य को एक अवसर दे

✍️ Deepak Kumar Dwivedi 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है, संग्रह करने योग्य, तथ्य सभी प्राथमिक स्रोतों से ही लिये होंगे।

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