तारों को नापते-नापते हम भूल गए कि असली ब्रह्माण्ड हमारी आत्मा में सांस ले रहा है

तैयार हो जाइए… ब्रह्माण्ड ने सारे नियम तोड़ डाले हैं!

ब्रह्माण्ड ने एक बार फिर हमें चौंका दिया है। हमारी सारी गणनाएँ, सारे सूत्र और सारे नियम उसके सामने बौने पड़ गए हैं। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप और हबल की ताज़ा खोजों ने एक ऐसी पहेली प्रस्तुत की है जिसने भौतिकी के मजबूत स्तंभों को हिला डाला है। ब्रह्माण्ड का फैलाव वैसा नहीं है जैसा हमारे सबसे प्रामाणिक सिद्धांतों ने भविष्यवाणी की थी। और यह कोई माप की साधारण चूक नहीं है… यह ब्रह्माण्ड का सीधा संदेश है कि हम उसे अब तक समझ ही नहीं पाए।

वैज्ञानिक इसे “हबल टेंशन” कहते हैं। उन्होंने दो मार्गों से ब्रह्माण्ड की गति नापी—पहला, बिग बैंग के तुरंत बाद निकली प्राचीनतम रोशनी से, जिसने कहा कि ब्रह्माण्ड धीरे-धीरे फैल रहा है। दूसरा, दूरस्थ आकाशगंगाओं और सिफ़ाइड तारों को देखकर, जिसने घोषणा की कि यह फैलाव हमारी कल्पना से कहीं तेज़ है। हज़ारों सटीक गणनाओं के बाद भी यह विरोधाभास जस का तस खड़ा है। मानो कोई अदृश्य शक्ति हमारी समझ को चुनौती दे रही हो।

पर क्या यह पहली बार है जब मनुष्य ब्रह्माण्ड के रहस्य के आगे असहाय हुआ है? सहस्रों वर्ष पूर्व हमारे ऋषियों ने उद्घोष किया था— “यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे”। जो इस शरीर में है वही ब्रह्माण्ड में है, और जो ब्रह्माण्ड में है वही हमारे भीतर समाया हुआ है। तब से लेकर आज तक हम बाहर की ओर देखते रहे, तारों को गिनते रहे, ग्रहों की चाल मापते रहे, पर अपने भीतर झाँकने का साहस न कर सके। शायद हबल टेंशन केवल भौतिकी की समस्या नहीं, यह हमारी चेतना को जगाने वाला संकेत है।

विज्ञान कहता है ब्रह्माण्ड का सत्तर प्रतिशत हिस्सा डार्क एनर्जी है—एक ऐसी शक्ति जो उसे निरंतर विस्तारित कर रही है, पर जिसका स्वरूप अब तक अज्ञात है। शायद यह वही अदृश्य सूत्र है जिसे ऋषियों ने “प्राण” कहा, वह शक्ति जो हर जीव और हर तारे में समान रूप से धड़क रही है। कुछ वैज्ञानिक मल्टीवर्स की बात करते हैं—संभव है हमारा ब्रह्माण्ड अकेला नहीं, अनंत ब्रह्माण्डों का एक कण मात्र हो, और हर ब्रह्माण्ड के अपने नियम हों। तब क्या हमारे सारे समीकरण उसी सीमा में बंधे हैं जो हमारी आँखें देख सकती हैं?

शायद ब्रह्माण्ड का असली रहस्य संख्याओं में नहीं, बल्कि चेतना में छिपा है। शास्त्र कहते हैं यह सृष्टि कोई ठंडी मशीन नहीं, यह ईश्वर का विराट स्वप्न है, उसकी लीला है। जो नियम आज हमें टूटते दिखते हैं, वे शायद कल किसी और सत्य में ढलते नज़र आएँ। क्योंकि यह खेल भौतिकी का नहीं, ब्रह्म का है।

और ब्रह्माण्ड जैसे कह रहा हो—
"तुमने मेरी गति नापी, मेरा आकार मापा, पर मेरा सत्य अब तक छुआ तक नहीं। तुमने आकाश में झाँका, पर अपने भीतर उतरने का साहस न किया।"

शायद हबल टेंशन हमें याद दिलाने आया है कि ब्रह्माण्ड का रहस्य बाहर नहीं, हमारे अंतर में है। जो उत्तर हम आकाशगंगाओं में खोज रहे हैं, वे हमारी आत्मा के शांत सागर में पहले से मौजूद हैं। विज्ञान अपनी सीमाओं तक पहुँच चुका है; अब समय है कि वह आध्यात्मिक दृष्टि से हाथ मिलाए। तभी हम जान पाएँगे कि ब्रह्माण्ड क्यों फैल रहा है, कहाँ जा रहा है, और उस अनंत चेतना का रहस्य क्या है जिसने इसे जन्म दिया।

क्योंकि अंततः, ब्रह्माण्ड हमसे कह रहा है—
"तुम अब तक मेरा ‘ब’ तक नहीं जानते।"

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