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सनातन विचार ही वह प्रकाश है, जहाँ से जीवन, धर्म और कर्तव्य—तीनों का सत्य प्रकट होता है।
प्रस्तुतकर्ता
Deepak Kumar Dwivedi
को
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भारत भाषाओं का देश है- सैकड़ों भाषाएँ, हजारों बोलियाँ, और उन सबके बीच एक जोड़ने वाला सांस्कृतिक सूत्र: हिन्दी। हिन्दी किसी क्षेत्र विशेष की भाषा नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों की संपर्क-भाषा है। लेकिन जब किसी युवक को केवल हिन्दी बोलने की वजह से प्रताड़ित किया जाए, अपमानित किया जाए, और वह जीवन ही खो दे - तो यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि सामाजिक चेतावनी है कि विभाजन की आग भाषा के नाम पर भी भड़क सकती है।
महाराष्ट्र के एक युवा ने रेल में सहज-स्वभाव से हिन्दी में बात की। कुछ लोगों को यह नागवार गुज़रा - वे उसे भाषा-प्रधानता, क्षेत्रवाद, और असहिष्णुता के नाम पर ताने मारते रहे, धकियाते रहे। अपमान इतना बढ़ा कि वह मानसिक रूप से टूट गया और अंततः उसकी मृत्यु हो गई। यह घटना सवाल उठाती है: क्या भारत में हिन्दी बोलना अपराध है?
असली संकट हिन्दी बनाम मराठी नहीं है। असली संकट उन मानसिकताओं का है जो भाषा को पहचान का हथियार बनाकर समाज में विभाजन की रेखाएँ खींचती हैं। यह वही पुराना खेल है पहले धर्म के नाम पर, फिर जाति के नाम पर, अब भाषा के नाम पर—हिन्दुओं को एक-दूसरे से अलग करने का प्रयास। यह किसी एक राज्य या समुदाय की समस्या नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के सामने खड़ी चुनौती है।
सच यह है कि भाषा कभी संघर्ष का नहीं, संवाद का माध्यम है। हिन्दू सभ्यता ने हमेशा विविधता को अपनाया, संघर्ष नहीं किया। संस्कृत, प्राकृत, अवधी, ब्रज, मराठी, तमिल, कन्नड़—हमारी सभ्यता की जड़ें बहुभाषी रही हैं। लेकिन जब राजनीतिक या वैचारिक स्वार्थ इन भाषाओं को “पहचान की खाई” में बदल देता है, तब इंसान इंसान से दूर हो जाता है।
आज आवश्यकता है कि हर भारतीय यह समझे कि हिन्दी बोलने वाला दुश्मन नहीं, अपना है उसी तरह जैसे मराठी, तमिल, बंगाली, पंजाबी, मलयाली बोलने वाले अपने हैं। भाषा का सम्मान तब पूर्ण होता है जब हम दूसरी भाषा का भी सम्मान करें।
इस एक युवक की मौत केवल एक परिवार का दुःख नहीं, भारत के हृदय पर घाव है। यह चेतावनी है कि अगर भाषा की राजनीति बढ़ती रही, तो हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटता जाएगा।
आज हमें मिलकर कहना होगा—
हिन्दी बोलना गलत नहीं। किसी भी भाषा में बोलना गलत नहीं।
गलत वह मानसिकता है जो भाषा के आधार पर नफरत फैलाती है।
हमें जागना होगा, सामने आना होगा - क्योंकि यदि अब नहीं जागे, तो विभाजन की ये लपटें आने वाली पीढ़ियों को झुलसा देंगी। 🌹🙏 #Kailadh_Chandra Kailash Chandra
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लेखक परिचय — दीपक कुमार द्विवेदी निवासी : ग्राम चचाई, जिला रीवा (मध्यप्रदेश) पद : प्रधान संपादक – www.jaisanatanbharat.com | संस्थापक – जय सनातन भारत समूह | संस्थापक-सदस्य – भारतीय मेधा परिषद टोली दीपक कुमार द्विवेदी समकालीन भारतीय वैचारिक विमर्श के एक प्रखर लेखक हैं, जो सनातन संस्कृति, राष्ट्रीय अस्मिता एवं आधुनिक वैचारिक चुनौतियों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। आप जय सनातन भारत समूह तथा भारतीय मेधा परिषद टोली के माध्यम से वैचारिक जागरण और सांस्कृतिक पुनरुत्थान के विविध अभियानों का नेतृत्व कर रहे हैं। वर्तमान में आप TRS कॉलेज, रीवा से MBA (HR) का अध्ययन कर रहे हैं तथा वैचारिक लेखन और अध्ययन-साधना में निरंतर सक्रिय हैं। प्रकाशित पुस्तकें (Amazon) 1. सनातन का नवोदय : वर्तमान वैचारिक संघर्ष और हमारी दिशा 🔗 https://amzn.in/d/1ujqzeE 2. सनातन आर्थिक मॉडल : धर्मधारित विकास की दिशा 🔗 https://amzn.in/d/60hEjhG
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