शतपथ ब्राह्मण में कथा आती है कि महाराजा मनु सुबह अर्घ्य दे रहे थे तो एक छोटी मछली उनके हाथ में आ गई, उसे उन्होंने एक घड़े में रख दिया। वह बढ़ने लगी, फिर उसे उन्होंने तालाब में डाल दिया, वह फिर बढ़ने लगी, उसके लिए नदी भी छोटी पड़ने लगी तब उसने राजा से कहा कि उसे समुद्र में डाल दो क्योंकि आज से कुछ दिन बाद जलप्रलय होगी, उस समय के लिए तुम नाव बना लेना मैं तुम्हारी प्रलय से रक्षा करूंगी।
यह वैवस्वत मनु थे, जब प्रलय आई तो उन्होंने विशाल नौका ऋषियों और महत्वपूर्ण बीजों को लेकर बैठ गए। वह मत्स्य आया और अपनी सींग में रस्सी फंसा कर नाव खेने लगा। नौका को खेते हुए वह हिमालय की तरफ ले चला।
अथर्ववेद में भी इस प्रलय कथा का वर्णन है, जहां नाव उतरी वह हिमालय का उच्च शिखर है( यत्र नाव प्रमांशन यात्र हिमवत शिर:)। उस स्थान का पता इसलिए भी ठीक से लग पाया क्योंकि कुछ विशेष वनस्पति और एक विशेष मछली का उल्लेख किया गया जिसे पहचान कर उस जगह को जाना गया। शतपथ ब्राह्मण में उस स्थान को मनोरवर्षपणम के नाम से संबोधित किया गया है।
कालान्तर में इसे मनुआलय कहा गया जो धीरे धीरे मनाली के नाम से विख्यात हुआ। मनाली से पुनः जीवन का सर्जन शुरू हुआ। यहीं पर महाराजा मनु का एक मंदिर है। जलप्रलय की घटना 3100 ईसा पूर्व के आस पास की मानी जाती है। यही कथा सुमेर सभ्यता में जाकर नूह की किश्ती में बदल जाती है।
मनाली की कहानी जीवन के पल्लवित होने की कहानी है। भारत से लेकर मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के बीच यह एक संयोजी कड़ी है। यहां की घाटियों, शिखरों, बर्फ और बारिश की बूंदों में सभ्यता की गाथाएं हैं, मनुष्यता के बीज छिपे हैं।
पहले ही भारत में सभ्यता के जनक महाराज मनु को लेकर एक विशेष वर्ग का विष वमन समाप्त नहीं होता, अब मनाली विरूपित हो रही है। यह समूचे सिविलाइजेशन का विद्रूप होना है।
चित्र: मनाली का मनु मंदिर
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