सनातन वैदिक परंपरा में देवी शक्ति का स्वरूप अनेक रूपों में प्रकट हुआ। हर रूप का उद्देश्य स्पष्ट होता है—जब धरती पर अधर्म और अत्याचार अपने चरम पर पहुँचते हैं, तब देवी अपने भीतर की दिव्य शक्ति प्रकट कर संसार को संतुलन और न्याय की ओर ले जाती हैं। ऐसे ही समय में मां पार्वती ने रक्तदंतिका
रूप धारण किया।
वैप्रचिति नामक दानव और उसके पुत्र अत्याचारी और दुष्ट प्रवृत्ति के थे। वे मानव जीवन और धर्म की नींव को ही नष्ट करने पर तुले हुए थे। उनके अत्याचार इतने गंभीर थे कि साधारण रूप में देवी का प्रभाव पर्याप्त नहीं था। तब मां ने अपनी शक्ति का प्रचंड रूप धारण किया। उनका शरीर रक्तवर्णी हुआ, और उनके दांत अनार की कली की तरह लाल हो गए। इसी कारण उन्हें रक्तदंतिका कहा गया।
इस समय मां लाल वस्त्रों में सुसज्जित थीं। उनके हाथों में खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र थे, जो अधर्मी और अत्याचारी शक्तियों के विनाश के लिए तैयार थे। उनके नेत्र प्रज्वलित ज्वालाओं जैसे तेजस्वी थे, और उनका रूप भयभीत करने वाला, किंतु करुणामय था। उनके प्रकट होने से समाज में न केवल डर, बल्कि श्रद्धा, साहस और धर्म की भावना जागृत हुई।
दुर्गासप्तशती के ‘मुर्ति रहस्य’ में मां के इस रूप का विस्तृत वर्णन मिलता है। चतुर्भुजी रूप में, उन्होंने अपने चार हाथों में भिन्न-भिन्न अस्त्र धारण किए हुए थे। यह स्वरूप केवल युद्ध और क्रोध का प्रतीक नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना और अधर्मी शक्तियों के नाश का प्रत्यक्ष माध्यम था।
ग्यारहवें अध्याय में कहा गया है कि वैवस्वत मन्वंतर के अट्ठाईसवें युग में शुम्भ और निशुम्भ नामक महादानव उत्पन्न होंगे। उनके उत्पन्न होने के समय, देवी ने नंद के घर में यशोदा के गर्भ से जन्म लेकर इन महादानवों का नाश किया। तत्पश्चात, पृथ्वी पर अवतार लेकर उन्होंने वैप्रचिति दानव और उसके पुत्रों का संहार किया। इस संघर्ष के दौरान देवी के दांत लाल हो गए, और इसी लाल दंत स्वरूप के कारण उन्हें रक्तदंतिका कहा गया।
मां रक्तदंतिका का यह रूप केवल भयंकर नहीं, बल्कि अपने भक्तों के लिए अत्यंत सुखद और सुरक्षित है। उनके प्रकट होने से वे अपने भक्तों में साहस और विश्वास जगाती हैं। उनके अस्त्र-शस्त्र अधर्म का नाश करते हैं, पर भक्तों के हृदय में करुणा और भक्ति की भावना प्रवाहित करते हैं। यही कारण है कि उनके हर स्वरूप में आनंद और सुरक्षा का अनुभव मिलता है।
देवी का यह अवतार यह भी याद दिलाता है कि शक्ति का उद्देश्य केवल भय पैदा करना या विनाश करना नहीं है। शक्ति तब सर्वोत्तम होती है जब उसका प्रयोग धर्म की रक्षा, न्याय की स्थापना और मानव जीवन की सुरक्षा के लिए किया जाए। उनके लाल दांत और प्रचंड स्वरूप केवल प्रतीकात्मक नहीं हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि अधर्म के सामने साहस, न्याय और करुणा की भावना का होना आवश्यक है।
मां रक्तदंतिका के प्रकट होने की कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में जब भी अत्याचार और अन्याय अपने चरम पर पहुँचें, तब साहस, धर्मपरायणता और न्याय के लिए उठ खड़े होना आवश्यक है। उनका आदर्श यह भी बताता है कि शक्ति और करुणा, क्रोध और मातृत्व, भय और श्रद्धा—ये सभी गुण एक साथ संतुलित रहकर ही समाज और मानव जीवन में स्थायी प्रभाव डाल सकते हैं।
वास्तव में, मां रक्तदंतिका का स्वरूप मानव जीवन में यह संदेश छोड़ जाता है कि सच्ची शक्ति वही है, जो अधर्म का नाश करे, धर्म और न्याय की स्थापना करे और अपने भक्तों को सुरक्षा और साहस प्रदान करे। उनके अवतार में वही शक्ति, करुणा और मातृत्व सम्मिलित है जो हर समय मानव चेतना को जागृत करती है।
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