पंजाब की अस्मिता पर धर्मांतरण का संकट:-रोटी, कपड़ा और छलावे से छीना जा रहा धर्म

“पंजाब की अस्मिता पर धर्मांतरण का संकट”
“रोटी, कपड़ा और छलावे से छीना जा रहा धर्म”

पंजाब में धर्मांतरण की समस्या केवल धार्मिक परिवर्तन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और राष्ट्र की आत्मा को प्रभावित करने वाली चुनौती है। यह विषय समझने के लिए सबसे पहले यह देखना होगा कि ईसाई मिशनरी किस प्रकार काम करते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य है कि अधिक से अधिक लोग अपने परंपरागत धर्म से हटकर ईसाई मत को अपनाएँ। इसके लिए वे समाज की कमजोर कड़ियों को निशाना बनाते हैं। गरीब, दलित, प्रवासी मजदूर और शहरी झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोग उनके सबसे आसान लक्ष्य होते हैं। इन्हें मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, राशन, छात्रवृत्ति, नौकरी का वादा और अन्य सुविधाओं के लालच के माध्यम से प्रभावित किया जाता है।

मिशनरी कार्य करने का तरीका योजनाबद्ध होता है। पहले वे सेवा और सहयोग के नाम पर संपर्क बनाते हैं, उसके बाद प्रभु की भक्ति और कथित चमत्कार दिखाकर विश्वास जमाते हैं। बीमारियों को ठीक करने, कष्ट दूर करने या जीवन में सुख-समृद्धि लाने के वादे किए जाते हैं। कई बार छोटी-छोटी सभाओं, घरों में चलने वाले हाउस चर्च और सोशल मीडिया प्रचार के जरिये लोगों तक संदेश पहुँचाया जाता है। धीरे-धीरे लोग मानसिक रूप से प्रभावित होते हैं और अंततः धर्म परिवर्तन के लिए तैयार हो जाते हैं।

इस पूरी प्रक्रिया के पीछे विदेशी फंडिंग की बड़ी भूमिका है। अनेक चर्च और अंतरराष्ट्रीय ईसाई संगठन भारत में पैसे भेजते हैं। यह धन एक ओर सामाजिक सेवा पर खर्च किया जाता है, लेकिन उसके साथ ही धर्म प्रचार और धर्मांतरण की गतिविधियों में भी लगाया जाता है। सरकार ने समय-समय पर विदेशी फंडिंग की जाँच की है और कई बार गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त संस्थाओं पर कार्रवाई भी की है। यह बताता है कि यह केवल धार्मिक सेवा का प्रश्न नहीं बल्कि विदेशी रणनीति का हिस्सा है।

पंजाब में धर्मांतरण का प्रभाव उन वर्गों पर सबसे अधिक दिखता है जो पहले से ही समाज में उपेक्षित और शोषित रहे हैं। दलित और गरीब वर्ग अक्सर बराबरी और सम्मान की तलाश में रहते हैं। जब उन्हें यह संदेश दिया जाता है कि ईसाई धर्म अपनाने पर उन्हें नया सम्मान मिलेगा, तो वे प्रभावित होते हैं। इस प्रक्रिया में उनकी सांस्कृतिक जड़ों से दूरी बढ़ती है और समाज में विभाजन गहराता है।

यह स्थिति केवल धार्मिक दृष्टिकोण से खतरनाक नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी गंभीर है। धर्मांतरण का परिणाम यह होता है कि स्थानीय समाज अपनी परंपराओं और जड़ों से कटने लगता है और विदेशी विचारधारा का प्रभाव बढ़ता है। यह प्रभाव लंबे समय में सांस्कृतिक अस्मिता और राष्ट्रीय एकता के लिए नुकसानदेह है।

धर्मांतरण रोकने का समाधान केवल कानूनी उपायों में नहीं है। कानून आवश्यक है ताकि प्रलोभन और जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगे, लेकिन असली समाधान समाज की कमज़ोरियों को दूर करना है। जब गरीब को समय पर भोजन मिलेगा, जब दलित को सम्मान और बराबरी मिलेगी, जब प्रवासी मजदूर को स्थिर सहारा मिलेगा और जब समाज के धार्मिक केंद्र सेवा और सहयोग के केंद्र बनेंगे, तभी बाहरी लालच विफल होगा।

समाज को यह समझना होगा कि केवल विरोध से कुछ नहीं होगा। यदि हर व्यक्ति अपने आसपास के वंचित और ज़रूरतमंदों की मदद करेगा तो कोई मिशनरी उन्हें प्रभावित नहीं कर पाएगा। संगठनों को गाँव-गाँव में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की योजनाएँ चलानी होंगी। समाज को जागरूक करना होगा कि धर्म परिवर्तन समस्या का समाधान नहीं है बल्कि जड़ों से कटने की शुरुआत है।

निष्कर्ष स्पष्ट है कि पंजाब में धर्मांतरण की चुनौती सामाजिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है। इसे रोकने के लिए सेवा और विकास को ही हथियार बनाना होगा। जब समाज अपने ही वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा, तब किसी भी विदेशी शक्ति की रणनीति सफल नहीं होगी। यही वह राह है जिससे आने वाली पीढ़ियों की सांस्कृतिक अस्मिता को सुरक्षित रखा जा सकता है।
लेखक
महेन्द्र सिंह भदौरिया 
विश्व हिन्दू परिषद गुजरात

टिप्पणियाँ