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मनुष्य की असली परीक्षा कठिनाइयों और छोटे अवसरों में होती है। जो छोटी छोटी गलतियाँ नहीं करते, सावधानी रखते हैं। वो बड़ी गलती करने का स्वभाव पैदा नहीं कर सकते। बेईमानी का आकर्षण हमेशा पहले छोटे रूप में आता है। जो मनोवैज्ञानिक संघर्ष के बाद भी सत्य को चुन ले, वही बड़े उत्तरदायित्व का अधिकारी होता है।
़़़़़़ 🌹 विश्वास का बोझ 🌹 ़़़़़
एक नगर में एक धनी व्यापारी था – सेठ हरिदत्त। उसका सपना था कि अपने जीवन के बाद अपनी विशाल संपत्ति किसी योग्य उत्तराधिकारी को सौंपे। लेकिन उसकी अपनी संतान न थी। नगर के कई लोग उसकी सेवा में रहते थे, जिनमें से एक था—अर्जुन।
अर्जुन अनाथ था, पर बहुत मेहनती और बुद्धिमान माना जाता था। व्यापारी ने सोचा—“अगर यह सच्चा और ईमानदार निकला तो इसे मैं अपना वारिस बना दूँ। इसको मैं ‘समंदर’ सौंप सकता हूँ।”
लेकिन व्यापारी जानता था कि केवल बुद्धिमानी पर्याप्त नहीं है। असली परीक्षा तो लोभ और मनोबल की होती है।
💥 परीक्षा की शुरुआत 💥
एक दिन उसने अर्जुन को बुलाकर कहा—
“बेटा, मेरे पास एक तालाब है। इस तालाब में नगर के लोग स्नान करते हैं, खेतों की सिंचाई होती है। यह नगर का आधार है। मैं चाहता हूँ कि अगले एक महीने तक इसकी देखभाल तुम करो। मैं तुम्हें वेतन भी दूँगा। याद रहे—अगर इसमें ईमानदारी रही तो आगे तुम्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी।”
अर्जुन बहुत प्रसन्न हुआ। वह सोचने लगा—“सेठ मुझ पर भरोसा करता है। यह सिर्फ शुरुआत है। इसके बाद वह मुझे बड़ी संपत्ति भी देगा।”
👉💥 लालच की छाया 💥
तालाब की देखरेख शुरू होते ही अर्जुन को कठिनाइयाँ आईं।
• नगर के कुछ अमीर किसान उसके पास आए और बोले—“अगर तुम हमारे खेतों को ज्यादा पानी दोगे तो हम तुम्हें गुप्त धन देंगे।”
• कुछ लोग उससे बोले—“तालाब के किनारे की मिट्टी बहुत उपजाऊ है। हमें दे दो, हम बदले में चाँदी देंगे।”
• कुछ नगरवासी आए और बोले—“तालाब का हिस्सा काटकर हमें घर बनाने दो, तुम्हें इनाम मिलेगा।”
पहले दिन अर्जुन ने सबको मना कर दिया। लेकिन तीसरे-चौथे दिन मन में द्वंद्व शुरू हुआ। उसने सोचा—“छोटा-सा तालाब ही तो है। इसमें थोड़ी हेराफेरी करने से क्या फर्क पड़ेगा? इससे मुझे भी लाभ होगा और दूसरों को भी। फिर जब समंदर मिलेगा, तब मैं सब ईमानदारी से करूँगा।”
अपराधबोध और मनोवैज्ञानिक संघर्ष
रात को अर्जुन सो नहीं सका। उसके मन में दो आवाज़ें चल रही थीं।
• एक कहती थी—“थोड़ा-सा लाभ ले लो, यही मौका है।”
• दूसरी कहती थी—“आज छोटी बेईमानी की तो कल बड़े अवसर पर भी बेईमान हो जाओगे।”
यह संघर्ष उसे बेचैन करता रहा। मनोविज्ञान कहता है—जब कोई व्यक्ति नीति और लाभ के बीच फँसता है तो वह अपनी गलतियों को तर्कों से जायज़ ठहराने की कोशिश करता है। अर्जुन भी यही कर रहा था—“समंदर आने पर मैं सुधर जाऊँगा।”
💥 निर्णायक क्षण 💥
एक रात, अचानक भयंकर बारिश हुई। तालाब की दीवारें टूटीं और पानी बाहर निकलने लगा। पूरा नगर संकट में पड़ गया। लोग अर्जुन को पुकारने लगे।
अब अर्जुन के सामने दो रास्ते थे—
• या तो वह रिश्वत के लालच में दीवार की मरम्मत टालता रहे,
• या फिर सारा धन, श्रम और नींद भूलकर रात भर तालाब बचाने में लग जाए।
उसने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनी। सारी ताक़त और लगन से उसने गाँववालों को जुटाया, खुद भी मिट्टी-पत्थर ढोए और रातभर मेहनत की। सुबह तक तालाब बच गया।
💥व्यापारी का निर्णय💥
अगले दिन व्यापारी आया। उसने नगरवासियों से सुना कि अर्जुन ने तालाब बचाने में अपनी जान तक दाँव पर लगा दी।
सेठ मुस्कराया और बोला—
“बेटा, मैं तुम्हें परख रहा था। जिनके मन छोटे लाभ में ही डगमगा जाते हैं, वे कभी ‘समंदर’ के योग्य नहीं होते। तुमने पहले संघर्ष किया, गलती के विचार भी आए, लेकिन अंत में अंतरात्मा की आवाज़ सुनी। यही तुम्हें बड़ा बनाता है। आज से मेरी सारी संपत्ति तुम्हारी है।” #kailash_chandra Kailash Chandra
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