रक्षाबंधन: राष्ट्र- धर्म की रक्षा का पर्व



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डॉ. नितिन सहारिया, महाकौशल 


                        भारतवर्ष त्योहार, उत्सवों का देश है। भारतवर्ष में 365 दिन कोई न कोई त्यौहार ,उत्सव ,पर्व मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति ने विविधता ,समरसता, एकता ,समता, सुचिता ,आध्यात्मिकता, 'वसुधैव कुटुंबकम ' , "सर्वे भवंतु सुखिन: " , कृन्वंतो विस्वामार्यम, माता भूमि: पुत्रोस्यम्ं पृथिव्या " का संदेश भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व को दिया है। भारतीय संस्कृति संपूर्ण विश्व को अपना परिवार मानती है, इसीलिए विश्व -बंधुत्व का व्यवहार करती है। भारतीय दृष्टि संपूर्ण सृष्टि के चराचर में एक ही तत्व परमात्मा- दिव्य चेतना Divine energy अद्वैत का दर्शन करती है।
               भारतवर्ष के त्यौहार अपने इतिहास को दोहराने के लिए प्रत्येक वर्ष चले आते हैं, जो हमें नई ऊर्जा और उल्लास से भर देते हैं । प्रत्येक त्यौहार का अपना इतिहास और महत्व है। इन त्योहारों का अपना गौरवशाली अतीत है जो देश- रक्षा और परिवार के प्रति दायित्व का बोध कराते हैं । उनमें एक त्यौहार राखी- रक्षाबंधन है। जब आतंकी असुरों ने देवों की अमरावती पर कहर ढ़ाया था, तब देवों की ओर से इंद्र ने उनसे मोर्चा लिया था । बृहस्पति ने मंत्र शक्ति से इंद्र की कलाई में रक्षा सूत्र बांधा था, जिससे असुरों का आतंक सदा के लिए मिट गया। इस समय से रक्षाबंधन का त्यौहार उमंग के साथ बनाए जाने लगा था। 'राखी' शब्द 'रक्षा' का अपभ्रंश शब्द है, जिसका अर्थ है राष्ट्र और समाज की रक्षा करना । धीरे-धीरे यह सांस्कृतिक त्यौहार ऐतिहासिक और राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा है। 

येन बद्वौ बलि राजा,दन्वेंद्रो महाबल:तेन त्वाम् प्रतिबद्वनामि ,रक्षे माचल माचल:।।

          रक्षाबंधन के त्यौहार के पीछे अनेकों कथानक- प्रसंग जुड़े हुए हैं। पुराणों में ऐसा वर्णन आता है कि एक बार विष्णु भगवान को राजा बलि ने पाताल लोक में ले जाकर अपने यहां रख लिया। तब विष्णु लोक में माता लक्ष्मी अकेली रह गई और परेशान होने लगी, तब विष्णु भगवान को पाताल लोक से वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बनाया एवं दक्षिणा में अपने पति देव भगवान विष्णु को वापस मांग लिया।
              राजपूत शासन के पतन के बाद देश में तुर्कों के आतंक और आक्रमण का दौर चला। देश की आन की रक्षा के लिए राजपूत युवाओं ने हुंकार भरी देश -धर्म की बेदी पर निछावर होते गए । दिनों -दिन राजपूत वीरों की संख्या घटती गई, देश की स्वतंत्रता और अस्मिता खतरे में थी ऐसी संकट बेला में राजपूतानी बलाओं ने एक नया अभियान चलाया । "राखी बांधो बीरन (भाई) बना,फिर क्या था? अभियान रंग लाया और बहनों के शहीद भाइयों के बदले नए वीरन मिलते गए।
                वे तुर्कों के आतंक और अत्याचारों से मोर्चा लेने लगे । राजपूतानिया फ़ूली नहीं समाई । कवि 'जगनक' ने अपने 'आल्हाखंड' में 'वीरन' शब्द का प्रयोग किया है। ''काला बदरिया बहिन हमारी कन्धों वीरन लगे हमार .....।"
               सिखों में 'वीरन' शब्द 'सिख वीरों' के लिए प्रयुक्त होता है। धीरे-धीरे यह राखी का त्योहार सामाजिक और पारिवारिक पर्व बन गया। यह त्यौहार भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक हुआ। अनेक शासको ने रक्षाबंधन यानी राखी के त्यौहार को जीवित रखा। सिकंदर -पुरु का भी वह मार्मिक प्रसंग इतिहास में आता है। सिकंदर को हारता देख उसकी प्रेमिका ( ईरानी युवती ) ने पुरू के दरबार में आकर राजा पुरू को राखी बांधकर अपना भाई बना लिया और अपने पति की रक्षा का वचन लेकर उसके प्राण बचाएं। 
             राखी के कोमल धागों ने सचमुच इतिहास की दिशा ही मोड़ दी थी। अब समय आ गया है ,हम सभी देश - धर्म की रक्षा के लिए प्रतीक के रूप में राखी का पर्व मनाये। राष्ट्रीय आंदोलन के समय में राखी का त्योहार भारत माता की स्वाधीनता के लिए मनाया जाता था। क्रांतिकारियों की कलाई में रक्षा सूत्र बांधे जाते थे और देश की स्वाधीनता के लिए संकल्प लिया जाता था। सारा बंगाल बड़ी उमंग के साथ कलाइयों में राखी बंधवाता था।
                रक्षाबंधन की तरह महाराष्ट्र में गणपति पूजन उत्सव प्रतिवर्ष भी मनाया जाने लगा था। जिसका शुभारंभकर्ता क्रांतिकारी ,राष्ट्रभक्त बाल गंगाधर तिलक थे। वे क्रांतिकारियों की कलाइयों में रक्षा सूत्र बांधकर उनको राष्ट्र की रक्षा के लिए अभिप्रेरित करते थे। उस समय सामाजिक क्रांति में राखी का त्यौहार बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा था। जिन बहनों के भाई नहीं थे वे भी क्रांतिकारी युवकों को अपना भाई बनाया करती थीं, ऐसे धर्मभाई अपनी बहन के सुख-दुख में रक्षा कवच का काम करते थे व हाथ भी पीले किया करते थे । इस प्रकार राखी- रक्षाबंधन का त्योहार युद्धकाल से गुजरता हुआ सामाजिक क्रांति के युग में आकर अपना सौभाग्य सजाने लगा।
                   आज पुन: राष्ट्र की रक्षा का दायित्व देश के कर्णधारों, भारत माता के वीर सपूतों पर आन पड़ा है। देश पर घनघोर संकट के बादल छाए हुए हैं। शत्रु देश में फैल चुका है एवं अनेक प्रकार के षड्यंत्र देश में चल रहे हैं ,ऐसे समय में हमारा यह धर्म- कर्तव्य बनता है कि हम राष्ट्र रक्षा -धर्म रक्षा हेतु अपना तन- मन- धन सर्वस्व अर्पण कर दें। यही युग की पुकार है ! यही भारत माता का,महाकाल का आह्वान है! जो इसे पूरा करेंगे उनका नाम अगले दिनों इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा, वहीं भारत माता के सच्चे सपूत- वीर बलिदानी कहलायेंगे । शेष जो आलस -प्रमाद ,स्वार्थ मोह में पड़े रहेंगे वह अपयश के भागीदार बनेंगे एवं कराहते हुए इस धरा से विदा होंगे अत: विचार कर लें!! धर्म- कर्तव्य का पालन करके यश -कीर्ति को अमर करना, एक अच्छे व सच्चे भारतीय बनना है ;अथवा इस मानव जीवन को यूं ही व्यर्थ गवाना है!, कायर कहलाना है ! आज रक्षाबंधन का पर्व राष्ट्र की रक्षा का संकल्प लेने का पर्व है।
 रास्ट्र रक्षा सम्ं पुण्यं, रास्ट्र रक्षा सम्ं वृत्ं ।
रास्ट्र रक्षा सम्ं याज्ञो , द्रष्टो नैव च नैव च।।

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