हिन्दू समाज और जनसंख्या का संकट : हम दो, हमारे तीन का सांस्कृतिक-राष्ट्रवादी दृष्टिकोण

 हिन्दू समाज और जनसंख्या का संकट : हम दो, हमारे तीन का सांस्कृतिक-राष्ट्रवादी दृष्टिकोण

भारत सदा से ऋषियों, मुनियों और महापुरुषों की तपोभूमि रहा है। यह वह धरती है जिसने विश्व को वेद, उपनिषद, गीता और अहिंसा का संदेश दिया। यहाँ की संस्कृति सहिष्णु रही, यहाँ का समाज उदार रहा। लेकिन इतिहास हमें एक कटु सत्य बार-बार स्मरण कराता है—जब भी हिन्दू समाज ने अपनी संख्या और अस्तित्व की रक्षा के प्रति लापरवाही दिखाई, तब-तब वह अपने ही घर में पराया हो गया।

अफगानिस्तान कभी बौद्ध और हिन्दू संस्कृति का केंद्र था आज वहाँ उनका नाम तक नहीं। ईरान में पारसी सभ्यता थी, अब वहाँ के अग्निकुंड बुझ चुके हैं। लेबनान कभी ईसाई बहुल था, आज वहाँ गृहयुद्ध और हिंसा का मैदान है। कश्मीर की घाटी जहाँ कभी शिव की स्तुति गूंजती थी, आज वहाँ हिन्दू समाज विस्थापित और बेघर है।

यह केवल इतिहास नहीं, वर्तमान भी हमें चेताता है। 1947 में भारत में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 9-10 प्रतिशत थी, आज यह 15-16 प्रतिशत से ऊपर है। कई जिलों में यह संख्या 40 से 70 प्रतिशत तक पहुँच चुकी है।
असम, पश्चिम बंगाल, केरल, मेवात और कैराना इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जहाँ-जहाँ मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक हुई, वहाँ हिन्दू समाज पर मंदिर तोड़ने, पलायन कराने, बहन-बेटियों को फँसाने और राजनीतिक दबाव डालने जैसी स्थितियाँ बनीं।
 यह केवल जनसांख्यिकीय आँकड़ा नहीं, बल्कि हिन्दू समाज की असुरक्षा का जीवंत प्रमाण है।

हम दो, हमारे दो का नारा हिन्दू समाज के लिए आत्मघाती सिद्ध हो रहा है। यह नारा पश्चिमी जीवनशैली और भौतिक सुख-सुविधा के लालच में अपनाया गया, परन्तु इसका सबसे बड़ा शिकार हिन्दू परिवार का ढाँचा हुआ। केवल दो बच्चों वाले परिवार में आगे चलकर न बुआ बचेंगी, न मौसी, न चाचा-ताऊ, न फूफी—समाज का बंधन टूट जाएगा। परिवार सिकुड़कर केवल “चार लोग” रह जाएंगे, और समाज की सामूहिक शक्ति क्षीण हो जाएगी।

इसके विपरीत मुस्लिम समाज अपनी संख्या को शक्ति मानकर बहुपत्नी प्रथा, धर्मांतरण और बाहरी फंडिंग से तेजी से बढ़ा रहा है। उनका उद्देश्य स्पष्ट है—संख्या बढ़ाओ, क्षेत्र पर दबदबा बनाओ, और धीरे-धीरे शरिया मानसिकता थोप दो।

हम दो, हमारे तीन—यह केवल परिवार नियोजन का मुद्दा नहीं है, यह अस्तित्व की रक्षा का संकल्प है। हिन्दू परिवार का तीसरा बच्चा केवल एक संतान नहीं, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा का प्रहरी है।
वह आने वाले समय में मंदिर की घंटियों की ध्वनि, संस्कृत के मंत्रों की गूँज और भगवा ध्वज की ऊँचाई का रक्षक बनेगा।

इतिहास का हर उदाहरण यह बताता है कि जहाँ हिन्दू समाज ने संख्या घटने दी, वहाँ उसका अस्तित्व मिट गया। और जहाँ उसने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए सजगता दिखाई, वहाँ उसकी संस्कृति और राष्ट्र दोनों सुरक्षित रहे।

आज यदि हिन्दू समाज नहीं चेता तो कल बहुत देर हो जाएगी। आने वाली पीढ़ियाँ हमें दोषी ठहराएँगी कि जब समय था, जब चेतावनी स्पष्ट थी, तब हमारे पूर्वज मौन क्यों रहे। लेकिन यदि आज हर हिन्दू परिवार यह संकल्प ले कि वे तीन संतानें अपनाएँगे और उन्हें संस्कारित, शिक्षित और राष्ट्रभक्त बनाएँगे, तो यही संकल्प भारत को सुरक्षित रखेगा और अखंड भारत के स्वप्न को साकार करेगा।

भारत की रक्षा केवल सैनिकों की बंदूक से नहीं होगी, बल्कि हिन्दू माताओं की गोद से होगी। जब हर हिन्दू माँ अपने तीसरे बच्चे को जन्म देगी और हर पिता उसे राष्ट्रभक्ति की शिक्षा देगा, तभी यह देश सनातन मूल्यों से ओतप्रोत रहकर विश्वगुरु बनेगा।

हिन्दू समाज का संकल्प

“मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं और मेरा परिवार धर्म, संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा हेतु अपना योगदान देंगे। मैं अपने परिवार में हम दो, हमारे तीन के संकल्प को अपनाऊँगा और अपनी संतानों को संस्कारित, शिक्षित और राष्ट्रभक्त बनाऊँगा। मैं यह वचन देता हूँ कि मेरी संतानें केवल मेरा वंश आगे नहीं बढ़ाएँगी, बल्कि सनातन धर्म, भारत माता और अखंड हिन्दू समाज की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहेंगी। यह मेरा धर्म, मेरा कर्तव्य और मेरा गौरव है।
लेखक
महेन्द्र सिंह भदौरिया 
प्रांत सेवा टोली सदस्य 
जिला सहमंत्री साबरमती जिला

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