कल मैं आम लोगों के बीच बैठा था। वोट चोरी के विषय पर उनकी बातें सुनकर बहुत कुछ स्पष्ट हो गया। लोग सहज और स्पष्ट शब्दों में कहते थे कि कांग्रेस की जितनी भी पिछली सरकारें आईं, अधिकांश वोट चोरी के आरोपों से घिरी रही हैं। फिर वे पूछते थे, “2014 में तो कांग्रेस की सरकार थी। तब वोट चोरी संभव थी। लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा कराए गए चुनाव में बीजेपी कैसे जीत गई?” लोग इस पर मुस्कुराते हुए कहते थे, “दाल में कुछ काला।”
फिर लोग अपने चुनाव अनुभव साझा करने लगे। उन्होंने बताया कि ईवीएम आने से पहले, जब चुनाव बैलट पेपर से होते थे, तब कांग्रेस समर्थक गुंडे बूथ लूटने और कैप्चर करने में लगे रहते थे। मतदाता को मतदान करने नहीं दिया जाता था। तब वोट चोरी होती थी, लेकिन अब ऐसी घटनाएँ नहीं होतीं। वे आगे कहते थे कि आज वोट चोरी का आरोप संवैधानिक संस्थाओं पर अविश्वास पैदा करने का एक तरीका बन गया है, ताकि अराजकता फैलाकर सत्ता प्राप्त की जा सके।
मेरे विचार में, यह अनुभव बताता है कि भारत की जनता हमेशा हार्डकोर कम्युनिस्ट विचारों के विरुद्ध रही है। जनता के मन में लोकतंत्र गहराई से बसा हुआ है, क्योंकि इस देश में बहुसंख्यक हिन्दू हैं। यही कारण है कि समाज में स्थिरता और संयम दिखाई देता है। जिस समाज को समाजवाद के नाम पर नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी ने दबाने का प्रयास किया, उसे 1991 के बाद थोड़ा अवसर मिला। उसी समय से उस समाज ने आर्थिक प्रगति के माध्यम से भारत को दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में अग्रसर किया।
भारतीय समाज का दिल प्रेम और सहिष्णुता से जीता जाता है। यह समाज जबरदस्ती कभी नहीं बदला जा सकता। एक समय छुआछूत बड़ी समस्या थी, लेकिन आज यह बहुत हद तक समाप्त हो गई है। हिंदू समाज अपनी गलतियों को सुधारता गया है। यह समाज स्वप्रेरणा से कार्य करने वाला समाज है। इसे दबाने के कई प्रयास हुए, लेकिन दबाने वाले समाप्त हो गए, जबकि समाज हिमालय की तरह स्थिर रहा।
इतिहास प्रमाण है कि जब सिकंदर विश्व विजयी अभियान में था, वह भारत में पराजित हुआ। जब इस्लाम दुनिया की बड़ी सभ्यताओं को निगल रहा था, भारत में बप्पा रावल के नेतृत्व में नागभट्ट के साथ मिलकर इस्लाम पराजित किया गया। भारत में इस्लाम हार गया। पिछले 1200 वर्षों से हिंदू समाज सतत् सभ्यता संघर्ष में लगा हुआ है। यही कारण है कि आज दुनिया में 110 करोड़ हिंदू हैं। अंग्रेज भी भारत में हार गए और मजबूर होकर देश छोड़कर भागे।
स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक समाजवाद के नाम पर नेहरू ने समाज को ठगने का प्रयास किया। इंदिरा गांधी ने लोकतांत्रिक व्यवस्था कुचलने की कोशिश की, लेकिन समाज खड़ा रहा। भारत में वामपंथ और नक्सलवाद को समाज ने अस्वीकार कर दिया। इस समाज के मूल में एक मंत्र है—संस्कृति सबकी एक चिरंतन खून रगो में हिंदू विराट सागर समाज अपना हम सबके इसके बिंदु है।
कल की आम लोगों की चर्चा सुनकर यह भी स्पष्ट हुआ कि राहुल गांधी के अराजक विचार लोग बहुत अच्छी तरह समझते हैं। लोग जानते हैं कि उनका उद्देश्य संवैधानिक संस्थाओं पर अविश्वास पैदा करके सत्ता बदलना है, लेकिन भारतीय भूमि में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं। यहाँ बौद्ध, जैन, चार्वाक जैसे नास्तिक दर्शन रहे, हजारों मत, पंथ और संप्रदाय सह-अस्तित्व के साथ जीवित रहे। भारत में विचारों का शास्त्रार्थ होता रहा, तर्क वितर्क होता रहा, लेकिन अब्राहमिक पंथों की तरह नरसंहार नहीं हुआ। खून की नदियां नहीं बहीं। क्योंकि हिंदुओं के रक्त में लोकतंत्र बसा है।
जब तक हिंदू बहुसंख्यक हैं, तब तक लोकतंत्र सुरक्षित है। पर जिस दिन इस्लाम या ईसाई बहुसंख्यक बन गए, लोकतंत्र गंभीर संकट में पड़ जाएगा। भारत की सभ्यता और राष्ट्र का आधार सनातन वैदिक धर्म रहा है और यही हमारी अस्मिता की जड़ है। राहुल गांधी यह सोचते हैं कि वोट चोरी का आरोप लगाकर संवैधानिक संस्थाओं पर अविश्वास फैलाया जाए, लोगों को सड़कों पर उतारा जाए और कम्युनिस्टों के सिद्धांतों के सहारे मोदी को सत्ता से हटाया जाए। पर यह सपना कभी साकार नहीं हो सकता। लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुचलना उनके लिए असंभव है। यह सत्य गांव का आम व्यक्ति भी समझता है। लोग जानते हैं कि राहुल गांधी का दृष्टिकोण अराजकता की ओर जाता है, और वे इसके विरुद्ध दृढ़तापूर्वक खड़े हैं।
Deepak Kumar Dwivedi
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