"जो कहते हैं 'दलित हिंदू नहीं है' — वे ना इतिहास जानते हैं, ना हिन्दुस्तान।"

"जो कहते हैं 'दलित हिंदू नहीं है' — वे ना इतिहास जानते हैं, ना हिन्दुस्तान।"
"जिसने शबरी की झोंपड़ी में राम को पाया, वह सनातन से कैसे अलग हो सकता है?"
"हिंदू धर्म त्यागता नहीं, अपनाता है — यही सनातन का स्वभाव है।"
आजकल एक भ्रामक और राष्ट्रविरोधी विमर्श को जानबूझकर फैलाया जा रहा है कि तथाकथित शोषित वर्ग हिंदू नहीं है। यह कथन न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से असत्य है, बल्कि सामाजिक समरसता और सनातन संस्कृति के मूल भाव के भी विपरीत है। यह सोची-समझी साजिश है, जो भारत के समाज को भीतर से खंडित करने के लिए चलाई जा रही है।

भारतीय सभ्यता की आत्मा सदैव समावेशी रही है। यहां भगवान राम शबरी के जूठे बेर खाते हैं, वहीं गंगाजल से अधिक पवित्र मानी जाने वाली कठौती में संत रविदास ईश्वर को अनुभव करते हैं। महर्षि वाल्मीकि, जिनका जन्म तथाकथित पिछड़े समाज में हुआ, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के रचयिता बने। क्या उन्हें कोई सनातन से बाहर मान सकता है? संत कबीर, गोरखनाथ, चोखामेला, ज्ञानेश्वर – इन संतों की वाणी आज भी मंदिरों और संत सम्मेलनों में गूंजती है। वे किस संस्कृति से जुड़े थे? उनके उपदेश किस समाज को दिशा देते हैं?

सनातन धर्म किसी को तिरस्कार नहीं देता। समय-समय पर समाज में व्याप्त विकृतियों से जब-जब कुछ वर्गों को पीड़ा हुई, तब-तब उसी समाज के भीतर से संतों, सुधारकों और महापुरुषों ने आवाज उठाई। इन आवाजों ने धर्म को नहीं छोड़ा, बल्कि धर्म को शुद्ध करने का कार्य किया। जब बाबा साहेब आंबेडकर सामाजिक विषमता से पीड़ित समाज की मुक्ति चाहते थे, तब भी उन्होंने अपने आलोचकों से कहा कि उनकी लड़ाई हिंदू धर्म से नहीं, उसके भीतर घर कर चुकी सामाजिक बुराइयों से है। उन्होंने स्वयं गीता पढ़ी, उपनिषदों का अध्ययन किया, और यह स्वीकार किया कि इन ग्रंथों में जीवन और न्याय का अद्भुत संतुलन है।

जो ताकतें यह कहती हैं कि समाज का पिछड़ा वर्ग हिंदू नहीं है, वे असल में उस गौरवशाली परंपरा को ही झुठलाती हैं जिसने हजारों वर्षों से इन वर्गों के भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया है। भारत का कोई भी पर्व, कोई भी मंदिर, कोई भी धार्मिक यात्रा – क्या वह समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीदारी के बिना पूरी हो सकती है? क्या जगन्नाथ यात्रा में रथ बनाने वालों की परंपरा किसी अन्य मज़हब से है? क्या कांवड़ यात्रा में शिव को जल चढ़ाने वाले लाखों युवाओं में जाति पूछी जाती है?

वास्तव में, आज जो यह झूठ फैला रहे हैं कि कुछ वर्ग हिंदू नहीं हैं, वे उन्हीं का हित नहीं चाहते जिनका नाम लेकर यह विमर्श खड़ा किया गया है। इनका उद्देश्य सिर्फ इतना है कि समाज टूटे, सनातन कमजोर हो, और भारत की आत्मा को चोट पहुंचे। धर्मांतरण की विदेशी नीतियाँ, मज़हबी कट्टरता और राजनीतिक स्वार्थ – सब मिलकर इस झूठ का पोषण कर रहे हैं।

लेकिन सत्य यह है कि सनातन के मूल में समरसता है। यहाँ ‘अहं ब्रह्मास्मि’ का ज्ञान किसी एक जाति तक सीमित नहीं, अपितु प्रत्येक आत्मा के भीतर ईश्वर को देखने की क्षमता है। यही कारण है कि कबीरदास की चौपाइयाँ राजमहलों से लेकर झोपड़ियों तक में गूंजती हैं, और संत रविदास की वाणी को आज भी मीराबाई की तरह पूजा जाता है।

भारत में जन्म लेना एक सांस्कृतिक पहचान है। यहां पूजा की विधि, भक्ति की पद्धति और आध्यात्मिक अनुभूति – किसी जाति विशेष की नहीं, बल्कि पूरे समाज की साझा विरासत है। इसलिए जो यह कहता है कि कुछ वर्ग हिंदू नहीं हैं, वह भारत को नहीं जानता। वह हमारी पीढ़ियों से चली आ रही उस परंपरा को नहीं समझता, जिसने गले लगाने में कभी देर नहीं की, पर अलगाव फैलाने वालों को बार-बार परास्त किया।

आज आवश्यकता है कि इस प्रकार के झूठ को तर्क, प्रमाण और प्रेम के साथ पराजित किया जाए। जो समाज सहस्त्र वर्षों से मंदिरों में दीप जला रहा है, वही आज भी सनातन का दीपक है। उन्हें बाहर नहीं धकेला जा सकता, क्योंकि वे कभी भीतर से अलग हुए ही नहीं।

इसलिए हम गर्व से कहें — हम सब सनातनी हैं, भले हमारे कर्म अलग-अलग हों, पर हमारी आत्मा एक है। और यही एकता, भारत की शक्ति है।
महेंद्र सिंह भदौरिया 
प्रांत सेवा टोली सदस्य 
विश्व हिन्दू परिषद उत्तर गुजरात प्रांत

टिप्पणियाँ

  1. समरसता के भाव को प्रदर्शित का संगठित होने की प्रेरणा देता अद्भुत लेख , जय श्री राम

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