कुटुंब प्रबोधन : सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना का पवित्र अभियान
कुटुंब अर्थात परिवार। प्रबोधन अर्थात जागृति। यह कोई नया विचार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की जड़ों में रचा-बसा जीवन का मंत्र है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार का यह स्पष्ट मत था कि समाज के संगठन और चरित्र निर्माण की प्रक्रिया घर से प्रारंभ होती है।
विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ पदाधिकारियों और आचार्यों ने भी निरंतर कहा कि हिंदू समाज की एकता, जागरूकता और धर्मशीलता की रक्षा का केंद्र कुटुंब ही है। इसलिए संघ और परिषद दोनों ने कुटुंब प्रबोधन को केवल एक कार्यक्रम या आयोजन न मानकर, इसे संस्कारों का अखंड प्रवाह माना है।
वर्तमान समय में यह विचार और अधिक प्रासंगिक हो गया है। वैश्वीकरण की आंधी में उपभोक्तावाद, दिखावटी जीवन शैली, मानसिक विक्षोभ और सांस्कृतिक जड़विहीनता बढ़ती जा रही है। परिवार विखंडित हो रहे हैं, संयुक्त परिवार का स्वरूप दुर्लभ हो रहा है। माता-पिता और संतानों के बीच आत्मीय संवाद घट रहा है, और पाश्चात्य प्रभावों से हमारे संस्कार, आचार-विचार और उत्सव-परंपराएं भी कमजोर हो रही हैं। ऐसे वातावरण में कुटुंब प्रबोधन, धर्म और संस्कृति के दीप को जलाए रखने का सर्वोच्च साधन बन जाता है।
संघ ने अपने पंचप्रण (पाँच संकल्पों) में कुटुंब प्रबोधन को इसलिए स्थान दिया, क्योंकि यदि परिवार में संवाद, आत्मीयता, परंपरा और नैतिक बल समाप्त हो जाएगा, तो कोई भी संगठन या राष्ट्र लंबे समय तक जीवंत नहीं रह सकता। डॉ. हेडगेवार ने कहा था कि प्रत्येक स्वयंसेवक अपने परिवार में अनुशासन, आदर्श और आत्मगौरव की सजीव प्रतिमा बने। गुरुजी गोलवलकर ने बार-बार चेताया कि राष्ट्र के उत्थान की बुनियाद, केवल राजनैतिक गतिविधियों से नहीं बल्कि कुटुंब के संस्कारों से बनती है। संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री भाऊराव देवरस ने कुटुंब प्रबोधन को ‘राष्ट्ररक्षा की पहली पंक्ति’ कहा। उनका मानना था कि जब घर-घर में संस्कृति का दीपक प्रज्वलित होगा, तभी राष्ट्र में सद्भाव, निर्भयता और आत्मबल स्थायी होगा।
कुटुंब प्रबोधन केवल व्याख्यान या संवाद का विषय नहीं है। यह एक व्यवहारिक साधना है, जिसमें हर दिन माता-पिता और बच्चे एक साथ भोजन करें, वंदेमातरम् या प्रार्थना का अभ्यास करें, पूर्वजों और संतों के प्रसंग सुनें, और घर को पवित्र कार्यशाला बनाएं। संघ के पूर्व सरसंघचालक बालासाहेब देवरस ने कहा था कि कुटुंब प्रबोधन का अर्थ केवल एकता नहीं, बल्कि घर को चरित्र, धैर्य और आत्मबल का केंद्र बनाना है।
आज जबकि भौतिक प्रगति के नाम पर नैतिक संकट गहराता जा रहा है, कुटुंब प्रबोधन से ही यह जागरण होगा कि व्यक्ति अपने कर्तव्यों, समाज की पीड़ा और सनातन धर्म की गरिमा के प्रति सजग हो। यही कारण है कि संघ ने कुटुंब प्रबोधन को अपने मुख्य अभियानों में समाहित किया। विश्व हिंदू परिषद के अधिकारी भी मानते हैं कि यह अभियान हिंदू समाज को संस्कारित, संगठित और जागरूक बनाए रखने की कुंजी है।
कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से यह जागृति भी फैलती है कि परिवार केवल रोटी-पानी की व्यवस्था नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों का महागृह है। इसमें करुणा, त्याग, सहिष्णुता और देशभक्ति के बीज रोपित होते हैं। जब हर घर में यह प्रबोधन होगा, तब समाज में कर्तव्यनिष्ठ नागरिक और संस्कृति-संरक्षक आत्मबलशाली परिवार खड़े होंगे। यही उस विराट हिंदू समाज का आधार बनेगा, जिसकी कल्पना डॉ. हेडगेवार और गुरुजी ने की थी।
आज के समय में जब विघटन और अवसाद का विषाणु फैल रहा है, तब कुटुंब प्रबोधन ही ऐसा अमृत है, जो व्यक्ति, परिवार और समाज के जीवन को पुष्ट करता है। यही कारण है कि संघ और परिषद दोनों ने इसे युगधर्म माना और इसे राष्ट्र जागरण की अनिवार्य आवश्यकता बताया। यह केवल संगठन का अभियान नहीं, बल्कि हर जागरूक हिंदू का पवित्र कर्तव्य है कि वह अपने घर में इसे साधना की तरह स्थापित करे।
यदि यह भावना घर-घर में जागेगी, तभी ‘संपूर्ण राष्ट्र का आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक उत्थान’ संभव होगा। यही विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे बड़ी विरासत और संरक्षण का आधार बनेगा।
भारत माता की जय
लेखक
महेंद्र सिंह भदौरिया (राष्ट्रीय विचारक)
प्रांत सेवा टोली सदस्य
विश्व हिन्दू परिषद उत्तर गुजरात प्रांत
जय जय श्री राम 🙏🚩🚩🚩
जवाब देंहटाएंHar har Mahadev 🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री राम अति सुंदर व्याख्या कुटुंब प्रबोधन की
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सभी सुधी जन पाठकों को
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