सरकार हर बीमारी का इलाज नहीं होती । हम लंबी गुलामी से भी अपनी संस्कृति को बचाकर ले आए क्योंकि हम समाज जनित व्यवस्थाओं पर भरोसा करने वाले लोग थे सत्ताजनित व्यवस्थाओं पर नहीं ।
अब क्या हो रहा है ? हमे अब लगा कि हिंदवी साम्राज्य आ गया और अब हम सारी जिम्मेदारी राजा को सौंप सकते है पर हर हिंदू सम्राट का छावां राज्य संभालने लायक नहीं होता और हर राजा चिरकाल तक जिम्मेदारी नहीं संभाल सकता । राजा की अपनी उम्र होती है जिसके बाद उसके वंशज तक उस सत्ता और व्यवस्था को बर्बाद कर देते है । विपक्ष और दुश्मन तो बर्बाद करने के लक्ष्य के साथ ही आते है युद्ध में ।
आज हमको लग सकता है कि सत्ता जनित व्यवस्था ज्यादा प्रभावी होती है और शीघ्रता से लागू हो जाती पर सत्य ये है कि ये व्यवस्था अल्पायु होती है । अटल सरकार की बनाई व्यवस्थाओं को मनमोहन ने मात्र 2 सालों में ही बर्बाद कर दिया था । अगर यही व्यवस्था समाज ने बनाई होती तो सिस्टम बर्बाद नहीं होते ।
हमारे द्वारा भुला दिया गया यही मंत्र #लक्ष्य_केंद्रित_कौम ने पकड़ लिया है और वो लगातार अपनी व्यवस्थाओं को मजबूत किए जा रहा है । इतना मजबूत कि वो मजहबी, व्यापारिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से बहुत आगे निकल गया । इसी मजबूती के सहारे वो अब आपके किले में सेंध लगा चुका है । ऐसी सेंध जिसके दम पर छांगुर बाबा जैसे सड़कछाप आदमी आपके ही एक अमीर दंपति को कन्वर्ट करता है, स्त्री को अपने पास सेक्स स्लेव की तरह रख लेता है और उसको आपके खिलाफ ही #लव_जिहाद के धंधे में लगा देता है । उसकी पकड़ न्यायालय के कर्मचारियों तक हो जाती है जहां से उसे कानून का संरक्षण भी मिल जाता है ।
समाज जनित व्यवस्थाओं का एक सशक्त रूप हम भोपाल, इंदौर और उज्जैन के ग्रूमिंग गैंग्स के रूप में भी देख चुके है । ये गैंग आपकी 500 लड़कियों को निगल गया ।
समाज जनित व्यवस्थाये हमेशा चिरायु होती है और हम आज भी उन पर कार्य करना शुरू करे तो निसंदेह हमारी संस्कृति भी चिरायु होगी । हिंदू सम्राटों की सरकारे हमारे लिए एनबलिंग फैक्टर हो सकती है पर हमें उन पर आश्रित होकर अपने कार्य बंद नहीं करने है ।
#आओ_मंदिर_चले
अगर #नेटवर्क_समझते_हो तो अपना नेटवर्क भी बनाते है
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