वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद


वैश्विक चुनौतियों के संदर्भ में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
वक्ता: मा. श्री मिलिंदजी परांदे, अंतरराष्ट्रीय संगठन महामंत्री, विश्व हिन्दू परिषद 

इन दिनों विश्व में एक प्रमुख लड़ाई हैं वर्चस्व स्थापित करने की। एक तरफ माक्र्सवाद व वामपंथी विचार हैं जो श्रम आधारित संघर्ष की बात करता है। दूसरा एक ओर वर्ग हैं जो हिंसा (voilence) में विश्वास रखता है और महजब ही जिसका आधार हैं। वो यह मानता है कि उनका महजब ही श्रेष्ठ हैं; शेष सभी मत-पंथ जीने योग्य नहीं है। तीसरा एक वर्ग ओर हैं; जो पूँजी व शक्ति के माधार पर पूरे विश्व को नियंत्रण करना चाहता है। इस सभी विचारधाराओं के बीच एक बात समान है और वो यह कि ये सभी विचारधारा वाले हिंदुत्व को निष्प्रभावी / समाप्त करना चाहते हैं।

हमने लगभग 1000 वर्षों की गुलामी देखी हैं। गुलामी में हमारे करोड़ों लोग मारे गये। करोडों लोगों को (स्त्री/ पुरुष रोनों), गुलामों के बाज़ारों में बेचें गए। सबसे बड़ा नुकसान हुआ कि हमारी आस्मता (Identity) को चोट पहुंचाई गई। हम कौन हैं? यह मूला देने का प्रयास हुआ। प्लासी की लड़ाई में
बंगाल में स्थानीय शासकों की पराजय हुई और जब अंग्रेजी सेना फ्लेगमार्च करती हुई आगे बढ़ने लगी तो वहाँ की तत्कालीन देशी प्रजाने स्वागत में सड़क के दोनों ओर खड़े होकर तालियाँ बजाई। उन्हें क्या अच्छा- क्या बुरा का अहसाल नहीं था।

यद्यपि गुलामी के कालखंड में हमारी संस्कृति को बहुत नुकसान हुआ तथापि साथ ही साथ इसको बचाने के लिए भी सतत प्रयास हुए। राजनैतिक गुलामी के बावजूद भी हमानी संस्कृति, हमारी आंतरिक चेतना व प्राणशक्ति के कारण बच गई।

इंग्लैण्ड का का स्वभाव व्यापारी हैं। रूस स्वभाव श्रम प्रधान है। अमरीका का स्वभाव पूँजीवाद आधारित हैं। हरेक देश का अपना अलग स्वभाव है। महार्षि अरविंद के अनुसार, भारत का स्वभाव धर्म आधारित हैं। भारत का प्राण धर्म हैं। प्राचीन काल में यह पूर्ण रूप से स्वीकार्य था अतः हम सर्वश्रेष्ठ थे। परंतु आज भ्रम की स्थितियाँ बन रही हैं। यहाँ तक कि न्यायपालिका ने भी समलैंगिक विवाह (Same Sex Maige), और लिव-इन-रिलेशन (Relation without Mamay जैसी चीजों को मान्यता देना शुरू किया है।संस्कारिक विवाह (Secremmial Manige) के विषय में भ्रम का वातावरण बनाया जा रहा है।

आज अनेक लघु समझे जाने वाले व्यवानाय जैसे सलून, कलर-पोलिश, रिपेयर आदि हिंदू समाज के हाथ से निकल गए हैं। हम धर्म से दूर होते जा रहें हैं। हम कण-कण में भगवान है मानते है परंतु जीते-जागते मनुष्य में भगवान को नहीं देखते । परिवारों में बहुओं को उचित सम्मान । महत्व नहीं मिल रहा । स्त्री भ्रूणहत्या को बढ़ावा दिया गया। समुन्द्रपार करना, पाप है, ऐसी मानसिकता से ग्रस्त है। कुलमिलाकर हम हमारे तत्वज्ञान को ही भूल गए हैं।

आजकल भौतिकवाद की आड़ में, सब प्रकार की भ्रष्टता आ गई हैं। भारत विश्व का सर्वाधिक प्राचीन राष्ट्र है। साथ ही साथ सबसे बड़ा युवाशक्ति का देश भी हैं। आज 0 से 10 वर्ष के बच्चों की जन्मदर में हिंदुओं का प्रतिशत लगातार घटता जा रहा है। अतः युवा देश तो हैं पर, कौनसे युवा ? यह सोचने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। मुस्लिमों की जन्मदर हिंदुओं से कई गुना ज्यादा है। इमेस ध्यान में रखना होगा । आज हिंदू बालक-बालिकाओं के विवाह की उम्र 29-30 वर्षों में हो रही हो रही हैं। इसके कारण, हिंदूओं की जन्मदर लगातार घट रही है। यह एक सामाजिक अपराध भी है। किसी भी समुदाय की सुरक्षा के लिए जन्मदर 2.1 का होना आवश्यक हैं। आज मुस्लिमों की आबादी करीब 20 करोड हैं। यह उसमें हाई उगुना से अधिक हैं। हिंदु आबादी करीब 80 करोड़ है, यह केवल दुगुनी हुई है। आज हिंदू Dominent Posांक में हैं। सबसे कम जन्मदर जैन समुदाय की है। हिंदुओं में भी केवल जन्म से हिंदू हैं लेकिन क्या वे सभी यह प्रश्न है। केवल संस्कारों से हिंदू भी है? यह प्रतिवर्ष दिल्ली में ही करीब 20,000 केस (छूटाछेडा) के Family Court में आ रहे हैं जिसमें हिंदूओं की संख्या 80% से अधिक है। ओर देश के शेष राज्यों का सनातन हिंदू हाल को बचाना 'का है। यदि समाज हैं तो हमारे पारिवारीक मूल्यों को बचाना रोगा । अपने सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश स्कूल । कालेज । यूनिर्वसिटी में है क्या ? यदि ध्यान नहीं रखा गया तो भ्रम की स्थितियाँ उत्पन्न होणी जिससे बर्बादी आऐगी। हम बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाषा, प्रांत, जाँति से ऊपर उठकर सोचने लगे हैं; यह एक शुभ संकेत भी हैहमारी धर्म संस्कृति के 

मूलभूत तत्व :-कृतज्ञता का भाव (Sense of Gratitute) - मातृ देवो भव, पितृ‌देवो भव, राजूदेवो भव: । समाज का ऋण हम पर हैं। हरेक व्यक्ति परः समाज का कर्ज हैं। मेरे जीवन में समाज सेवा का भाव है। क्या ? प्रकृति का भी करण है। इसलिए हमने वृक्षों-नक्षत्रों को भगवान माना है। हिंदू अकेला है जिसने कृतज्ञता के भाव को सर्वोपार माना है।

 समन्वय का भाव (Sense of Cordination)

सर्वोदय का भाव, परस्पर निर्भरता का माष, देश सेवा का भाव हिंदू चिंतन में हैं। इमेस ओर मज बूत करने की आवश्यकता हैं। जांति-भाषा-मत हिंदूओं को संगठित नहीं कर सकती है। केवल धर्म- संस्कृति - राष्ट्रभक्ति का भाव ही हमें जोड़‌कर रख सकती है। लोगों के बीच
 
अपनापन का भाव (Sense co-Relation)

लोगों के बीच अपनापन के भाव के निर्माण की नितांत आवच्यवता है। हमें एक-दूसरे के प्रति हमारे सामाजिव कतृव्यों कर्तव्यों को समझना आवश्यक हैं। संकुचित (NARROW) भाव को छोड़‌ना होगा। भारत के पास सर्वाधिक कृर्षिरती है। तकनिकी भी है। Angus Melasious के अनुसार माल से ५०० वर्षों पहले हम सब प्रकार से समृद्ध थे।अमरीका के पूर्व राजूपति बराक ओबामा के अनुसार हमारा गणितीय बान सबसे ऊपर है।
. राष्ट्रीय चरित्र का भाव (sense of Nationl Charache): हमारे अंदर भी कक्तिगत चाखि के स्थान पर राष्ट्रीय चारित्र को महत्व देना "आवश्यक हैं। शिवाजी महाराज ने मुगलों के शामन के समय, मिर्जा राजा सवाई जयसिंह का चि‌ट्ठी लिखा और मुगलों की गुलामी छोड़कर स्वयं राजा । शामक बनने का निवेदन किया लेकिन वो गुलाम मानामिकता से ऊपर नहीं उठ पायें और परिणाम स्वरूप, गुलामी का कालखेड, बढ़ता गया। उन्होंने व्यक्तिगत चारित्र को राष्ट्रीय चारित्र से ऊपर माना। हमारा राष्ट्रीय

"चरित्र कमजोर होता गया। तत्वज्ञान को समझना : शिवोमूत्वा शिवम भवेत : 
रविन्द्रनाथ टागौर का संदर्भ देते हुए कहा कि अंधेरा कभी प्रकाश से जीत नहीं सकता। लेकिन वो प्रयास लगातार करता रहता है। दीपक, ने बुझते - कुमते हुए भी अंधेरे को विजय नहीं होने दिया। अंधेरा जीतने का इंत‌जार करता रहा और सूर्योदय हो गया। तमसो मा ज्योतिमर न्य।

विश्व में कभी भी कमजोर / अपयश अथवा गरीबी की पूजा नहीं होती । सदैवशक्तिशाली की पूजा होती है। अतः विश्व में हिंदुत्व को पुर्नः प्रस्थापित करना है तो सुरुङ, सामर्थ्यवान एवं सपन्न राष्ट्र का निर्माण करना होगा।
 गुजरात यूनिवर्सिटी कर्णावती महानगर में विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल के युवा संवाद में युवाओं को संबोधित करते हुए माननीय श्री मिलिंद परांदे जी का उद्बोधन

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