मैं अक्सर खुद अपनी विचार प्रक्रिया को ऑब्जर्व करने का प्रयास करता हूँ, और मुझे आश्चर्य होता है कि अपने आप जो विचार आते हैं, और सजग प्रयास से अपनी विचार प्रक्रिया को तार्किक और रैशनल बनाने का प्रयास करने से जो विचार और निष्कर्ष आते हैं वे कितने अलग होते हैं. शायद ही हमारे परिवेश की कोई और चीज हमारे जीवन को, हमारी क्षमताओं को और परिणामों को उतना प्रभावित करती है जितना एक रैशनल विचार प्रक्रिया प्रभावित कर सकती है.
लेकिन रैशनल विचार प्रक्रिया एक इन्वॉलंटरी और ऑटोमैटिक प्रोसेस नहीं है. यह सजग प्रयास का परिणाम है. यह सीखी जा सकती है यदि हमें इसका महत्व पता हो.
मैं सोशल मीडिया पर ब्रिटिश और अमेरिकन पेजेस पर जानबूझ कर लोगों को कुरेदता हूँ, यह देखने के लिए कि वहाँ लोगों में मन में क्या चल रहा है और वे किधर जा रहे हैं. हालाँकि यह एक छोटा और संभवतः अनरिप्रेजेंटेटीव डेमोग्राफिक ही है और यह पूरे समाज को रिफ्लेक्ट नहीं करता, लेकिन एक वोकल माइनॉरिटी कैसे सोचती है यह तो पता चल ही जाता है. और यह देखा है कि जो भी पश्चिम के ट्रेंड हैं वे देर सबेर, बल्कि पांच दस वर्षों में हमारे यहाँ भी ट्रेंड करेंगे ही.
उनमें मैने यह अंतर देखा है कि वहां सजग प्रयास द्वारा यह ट्रेंड कराया जा रहा है कि रैशनल विचार प्रक्रिया अनावश्यक या अपूर्ण है और उसके बजाय भावना से संचालित होने पर अधिक जोर दिया जाता है. आपको एक कम्युनिटी आईडेंटिटी से जुड़ने और कम्युनिटी के प्रचलित विचारों के अनुसार संचालित होने को प्रेरित किया जाता है. अमीर गरीब, स्त्री और पुरुष, स्ट्रेट-गे, सिस और ट्रांसजेंडर जैसी विभिन्न आइडेंटिटी कॉन्फ्लिक्ट को उभारा जाता है और इसमें शोषित प्रताड़ित, कमजोर और विक्टिम आईडेंटिटी से जुड़ने और उनका पक्ष लेने को एक मॉरल इश्यू बना कर पेश किया जाता है. उनके बीच अगर आप एक रैशनल और अनबायास्ड व्यू रखने का प्रयास करते हैं तो आपको अनैतिक, और अपने क्लास इंटरेस्ट के विरुद्ध ट्रेटर की उपाधि दी जाती है. आपका सही या गलत होना मैटर नहीं करता, आपको एक पॉलिटिकली करेक्ट स्टैंड लेने की नैतिक जिम्मेदारी है अन्यथा आप एक बुरे व्यक्ति हैं.
ऐसे में हमारे किशोर वय के बच्चे, जिनके लिए अपने पियर ग्रुप द्वारा स्वीकृति पाना बहुत महत्व की बात है, वे किधर जाएंगे यह समझना कठिन नहीं है. यदि व्यक्ति की निष्ठा अपने तार्किक विश्लेषण की विश्वसनीयता के प्रति दृढ़ नहीं हो तो वह उधर अवश्य झुकेगा जिधर भीड़ उसे झुकाएगी.
ऐसे में पेरेंट्स के बच्चों से संवाद में तार्किकता और विवेक (लॉजिक और रेशनलिटी) का महत्व है. उन्हें हमें सिर्फ कन्विंस नहीं करना है, उनके हाथ में ऐसे टूल्स देने हैं जहाँ भीड़ उन्हें भ्रमित न कर सके और वे वामपंथियों के चंगुल से बच कर सहज सरल और स्वस्थ जीवन जी सकें.
पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी हम पेरेंट्स और किशोरों के लिए एक वर्कशॉप आयोजित करने की योजना लेकर आ रहे हैं. स्थान होगा ऋषिकेश, और तिथि होगी अक्टूबर का पहला वीकेंड. यदि आप या आपके कोई परिजन उस बात से स्ट्रगल कर रहे हैं जहां लगता है कि बच्चों से बेहतर संवाद की आवश्यकता है लेकिन एक रैशनल फ्रेमवर्क के अभाव में यह स्थापित नहीं हो पा रहा तो यह वर्कशॉप उपयोगी हो सकता है. हमें पिछले वर्ष के प्रतिभागियों से बहुत ही उत्साहवर्धक फीडबैक मिला है और इस वर्ष हम इसे और प्रभावी बनाने के लिए प्रयासरत हैं.
Trans Generational dialogue for a Resilient India
Rishikesh 03-05 October
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