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हिंदुत्व पर आधुनिक दौर में यानी जब से अंग्रेजों और यूरोपीय ईसाइयों का दबदबा भारत के शिक्षा और विचार जगत में जबरन उनकी शिक्षा ठूँस कर बढ़ाया गया,, उसके बाद से ,
अथवा
विदेश में जाकर जिन हिन्दू लोगों ने उच्च शिक्षा ली ,उनके दौर के बाद से,
हिंदुत्व और हिंदू धर्म या हिंदू राष्ट्र के विषय में गहराई से लिखने वाले मुख्य लोग कौन है ?
श्री अरविंद, स्वामी विवेकानंद और माधव सदाशिव गोलवलकर गुरुजी ।।
इन तीनों में से किसी ने भी जाति के द्वारा सर्वनाश होने की बात नहीं कही है और हिंदू समाज की जाति व्यवस्था को विनाशकारी नहीं कहा है ।
विवेकानंद ने केवल स्पर्श की भावना यानी अस्पृश्यता की भावना पर चोट की थी ।
जाति समाज की एक इकाई है और उस पर चोट का कोई तुक समझ में नहीं आता।
परंतु यूरोपीय विचारों से अत्यधिक प्रभावित और हिंदुत्व के शास्त्रों से अथवा सार से अनजान,
सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट नेताओं ने अवश्य जाति पर चोट की ।
इसमें जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया ,नरेंद्र देव आदि मुख्य हैं।
रोचक तथ्य है कि इस समय हिंदुत्व के पक्ष में लिखने वाले अधिकांश लोग और हिंदुत्व के और हिंदुओं की एकता के लिए काम करने की घोषणा करने वाले सभी प्रमुख संगठन केवल ईसाई मिशनरियों अथवा लोहिया आदि की ही भाषा बोलते हैं ।
लोहिया की भी केवल जाति वाली भाषा।
लोहिया का इतिहास चक्र नहीं।
लोहिया की भारत के तीन बार इतिहास चक्र में शीर्ष स्थान पर पहुंचने की बात नहीं।
भारत की भाषा, लिपि ,ज्ञान की बात नहीं।
अथवा राम कृष्ण और शिव आदि के महत्व की बात नहीं।
इन बातों को वे अपने भाषणों में नहीं करते। केवल जाति को लेकर जो लोहिया ने नीति चलाई और लोहिया के बाद कथित लोहियावादियों ने जो जातिवाद चलाया और मंडल कमीशन के संयोजक बीपी मंडल ने जो दुष्ट जातिवाद चलाया ,उसकी ही बात ये सब लोग कर रहे हैं।
लेकिन इनमें से कोई भी हिंदुत्वनिष्ठ नहीं था ।
ना इसाई मिशनरी हिंदू वादी होते,
ना लोहिया वाले हिंदुवादी होते।
न जयप्रकाश नारायण हिंदूवादी थे।
तो हिंदुत्व की बात करने वाले इन वर्तमान लोगों को अगर ईसाई मिशनरी और लोहिया और जेपी या अन्य इसी प्रकार के लोग प्रामाणिक लगते हैं और कुछ को तो मुलायम सिंह और अखिलेश यादव भी प्रामाणिक लगने लगे । तो उनका हिंदुत्व से क्या लेना देना?
स्वामी विवेकानंद ,गुरू जी गोलवलकर आदि की जो कमाई है ज्ञान और यश के क्षेत्र में ,उसको नोच कर खाना चाहते हैं ये कथित हिंदूवादी।जबकि मन से वह ईसाई या कम्युनिस्ट संगठन की बातें दुहराते हुए हिंदुत्व की बात कर रहे हैं ।अन्यथा वे अरविंद और विवेकानंद की जो मुख्य बातें हैं या लोहिया की भी संस्कृति और धर्म संबंधी व्यापक बातें अथवा राम कृष्ण और शिव वाली बात है ,कभी उसे तो नहीं दोहराते दिखते ।इन्होंने लोहिया से केवल वह जाति को वर्ग बनाने की कोशिश करने की नकल की है और बाकी लोहिया का कुछ भी नहीं लिया है और ईसाई मिशनरी की हर बात ले ली है भारत के विषय में और उसके बाद हिंदुत्व के लिए काम कर रहा अभी स्वयं को बताते हैं ।।
विचित्र वैचारिक अराजकता का परिदृश्य है। रामेश्वर मिश्र जी
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