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समय क्या है, इसका आरंभ क्या है?
भारतीय पुराणों और शास्त्रों में समय की नहीं घटनाओं का महत्व अधिक है तभी "एकदा नैमिशारण्ये,," से बात आरंभ होती है।
समय अनादि और अनंत है चतुर्युग की मान्यता आरंभ और अंत की नहीं सभ्यता की सततता के लिए है, श्रीराम और श्रीकृष्ण का युग भी निरंतरता को बनाए रखता है मान्यता यह भी है कि रामायण और महाभारत एक बार की घटना नहीं बल्कि बार बार अपने युग में घटती रही है, मूल कथा एक होते हुए भी कथा में घटनाएं अलग अलग तरीके से बताई गई हैं।
हमारे लिए घटना का होना महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि घटनाए स्वयं दोहराई जाती रही हैं।
आधुनिक विज्ञान भी उसी राह पर है समय को एक परिकल्पना मानता है भूत भविष्य और वर्तमान जैसी कोई बात नहीं है। क्वांटम भौतिकी इसी बात का अध्ययन करता है।
कण संयुग्मण (particle entanglement) अब प्रायोगिक तौर पर सिद्ध किया जा चुका है।
इसके अनुसार प्रकृति में छोटा से छोटा कण किसी दूसरे कण से जुड़ा हुआ है और एक कण में हुए बदलाव दुसरे कण में भी अवश्य होते है अब यह दूसरा कण कुछ मीटर कुछ किलोमीटर दूसरे ग्रह या दूसरे ब्रह्मांड में भी हो सकता है, ऐसे में समय का कोई औचित्य नही रह जाता और घटनाएं समय से निरपेक्ष घटित होती हैं।
क्वांटम भौतिकी के अनुसार कोई भी वस्तु तभी अस्तित्व में आती है जब उसे देखने वाला हो और उसे देखा जाए अन्यथा वह तरंगों का समूह भर होती हैं। बेहद रोचक और क्लिष्ट विषय है यहां अति सरल करके लिखा है।
उद्देश्य यही है कि समय की परिकल्पना मनुष्य की है घटनाओं को एक सरल रेखा से समझने के लिए है अन्यथा जिसे समय कहते हैं उसकी सरल रेखीय गति नहीं है, इसलिए अक्सर जो विवाद उठते रहते हैं कि रामायण और महाभारत कब हुए इसका कोई मतलब नहीं है बल्कि हुए हैं यह महत्व की बात है।
जिसे हम समय मानते हैं वह एक आभासी वस्तु है, वैसे भी समय को परिभाषित करने के लिए कभी पृथ्वी कभी सूर्य तो कभी चंद्रमा को स्थिर मानकर ही गणनाएं करते हैं जबकि इस ब्रह्मांड में कुछ भी स्थिर नहीं और सूर्य की गति वृत्तीय भी नहीं है कि उसी मार्ग को दुहराता हो।
अत: किसी घटना के समय से अधिक जोर इस बात पर होना चाहिए कि उक्त घटना की परिस्थितियां क्या थीं और उन परिस्थितियों घटनाओं के परिणाम क्या हुए उससे क्या सीखा जा सकता है, क्योंकि इतिहास जीने के लिए नहीं सीखने के लिए ही होता है।
अगर यह समझ जायेंगे तो यह समझना भी सरल हो जाएगा कि प्रगति और विकास का यह रथ भी कहीं जाकर रुकेगा ही उसका भी अन्त होगा ही और फिर बचे हुए लोग पुन : सब कुछ आरंभ से आरंभ करेंगे,,,, जैसे एक कथा के बाद दूसरी कथा,,,
Aapne article ki chauthi line me likha hai ki "समय अनादि और अनंत है चतुर्युग की मान्यता आरंभ और अंत की नहीं सभ्यता की सततता के लिए है" aur aapne aage physics ka bhi reference diya hai but physics ke anusaar samay na toh anadi hai na anant hai samay ki shuruaat hui thi aaj se 13.7 ya 13.8 billion years pehle jab bigbang hua tha wahi se space time curve ki shuruaat hui thi aur jab space ka ya universe ka ant hoga tab samay ka bhi ant hoga toh agar ye poonchh jaaye ki 14 billion saal pehle kya tha toh ye prashn valid hai but iska answer nahi hai ye prashn usi tarah hai jaise andhere me parchhayi ka astitva dhoondhna maine physics ki baat isliye ki kyunki aapne physics ka reference diya tha.
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