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जीवन की यात्रा में शिव ही परम सत्य हैं।
हमारे पिताश्री बचपन में हमें एक घटना सुनाया करते थे, जब मैं लगभग तीन से चार वर्ष का था और कुएँ में गिर गया था। यह घटना इस प्रकार है—
मेरी माताश्री उस समय कुएँ से जल भर रही थीं। मैं वहीं पास में चला गया, जहाँ कुएँ पर लगी पुल्ली (लकड़ी की चरखी) थी। जब मैंने पीपल के वृक्ष की ओर प्रणाम करने के लिए हाथ बढ़ाया, तभी पुल्ली की लकड़ी टूट गई, और मैं कुएँ में गिर पड़ा।
माताजी घबराकर रोते हुए दादीजी के पास गईं और चिल्लाने लगीं— "दीपू कुएँ में गिर गया!" उसी समय हमारे पड़ोसी मुद्रिका मामा भी चिल्लाए— "दीपू कुएँ में गिर गया!" संयोगवश उस दिन ग्राम में निर्वाचन (मतदान) हो रहा था, जिससे समस्त ग्रामवासी कुएँ के पास एकत्रित हो गए।
उस समय कुआँ आधा जलपूर्ण था। जब लोगों ने कुएँ में झाँका तो वे आश्चर्यचकित रह गए— चार वर्ष का एक बालक कुएँ में तैर रहा था और केवल हाथ हिला रहा था! समस्त ग्रामवासी यह दृश्य देखकर स्तंभित हो गए, किंतु किसी में भी कुएँ में उतरने का साहस नहीं हो रहा था।
यह स्थिति लगभग डेढ़ घंटे तक बनी रही। तत्पश्चात हमारे पड़ोसी एमेंक ककू, जो हमारे नाना जी भी थे, बिना किसी भय के कुएँ में कूद पड़े। उन्हें तेज ज्वर था, किंतु जैसे ही उन्होंने सुना कि "दीपू कुएँ में गिर गया," वे तत्काल कूद गए। मुझे जैसे ही उन्होंने पकड़ा, मैं उनकी गोद से चिपक गया। इस संपूर्ण घटना में, लगभग दो घंटे तक जल में रहने के उपरांत भी, भगवान भोलेनाथ की कृपा से कोई अनिष्ट नहीं हुआ।
जब भी मैं अपने पिताश्री से इस घटना को सुनता, तो मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठता। उस समय मेरे पिताश्री की निर्वाचन ड्यूटी लगी हुई थी, अतः वे ग्राम में उपस्थित नहीं थे। उन्हें इस घटना की जानकारी ग्राम के किसी व्यक्ति से प्राप्त हुई थी।
जब हमारे पिताश्री का देहावसान हुआ, उसी रात्रि उनका पार्थिव शरीर गृह लाया गया तथा शिव मंदिर के समक्ष रखा गया। उस समय समस्त परिवार विलाप कर रहा था। उसी क्षण, भगवान भोलेनाथ के समक्ष यह भाव जागृत हुआ—
"हे महादेव! आप ही सर्वस्व हैं, आपके अतिरिक्त इस संसार में हमारा कोई नहीं है। अतः मैं समस्त कुछ आपके चरणों में समर्पित करता हूँ।"
उस दिन के पश्चात भगवान शिव की कृपा से मैंने स्वयं को संभाला। जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आईं, किंतु जब-जब मैं भोलेनाथ का स्मरण करता, मेरा मन प्रसन्न हो जाता।
कभी-कभी जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, जब मन अशांत हो उठता है और ऐसा प्रतीत होता है कि "यह कार्य कैसे संपन्न होगा?" किंतु जैसे ही मैं भोलेनाथ का स्मरण करता हूँ, मेरा अशांत मन भी शांत हो जाता है।
अतः जीवन की यात्रा का परम सत्य केवल "शिव" ही हैं!
ॐ नमः पार्वती पतये, हर-हर महादेव!
दीपक कुमार द्विवेदी
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