शठे शाठ्यम् समाचरेत

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#खीरा_सिर_ते_काटिए,
#मलियत_लोन_लगाय !!

                         (1)
#एक_गड्ढे_में एक शेर फंँस गया। इसे देखकर एक गाय को दया आ गयी। गाय एक पल के लिए तो ठिठकी लेकिन फिर उसने सोचा कि जब मैं इसे नहीं खाती तब ये मुझे कैसे खा सकता है !
    वह शेर को बचाने के लिए गड्ढे के पास चली गयी। शेर ने बड़ी कातर दृष्टि से गाय को देखा। इससे गाय का हृदय और भी द्रवित हो उठा।उसने अपने सींगों से गड्ढे के किनारे की मिट्टी और पत्थर को खोद-खोद कर शेर के निकलने लायक ढलान बना दी।
   शेर बाहर निकल आया।उसने चैन की सांँस ली लेकिन दूसरे ही पल उसका वास्तविक स्वभाव जाग उठा और उसने लालच भरी दृष्टि से गाय को देखते हुए हिंसक और क्रूर अंगड़ाई ली।
   गाय घबरा गई।उसने शेर की ओर बड़ी कातर दृष्टि से देखा लेकिन शेर को कोई दया नहीं आयी।
#शेर_बोला, " मुझे गड्ढे में गिरा देख द्रवित होना तेरा स्वभाव था और तेरे लिए किसी की सेवा करना और उसकी जान बचाना पुण्य का कर्म था लेकिन गड्ढे से निकल पाना तो मुझ पर ऊपर वाले के रहम का फल था।अब तुझे मारकर खा जाना मेरा स्वभाव है,मेरा स्वाभाविक कर्म और उचित पुरुषार्थ है।"
" तूने अपने स्वभाव के अनुसार काम किया और अब अपने स्वभाव के अनुसार मैं काम करने जा रहा हूँ।"
    "तूने अपने धर्म का पालन किया,अब मैं अपने धर्म का पालन करने जा रहा हूँ!"
    "तेरे लिए जो भलाई थी और मदद थी,मेरे लिए वह अवसर है,मौका है !"
    और शेर ने उस दयालु गाय को मार कर खा लिया क्योंकि बचपन से उसने यही देखा था,उसे यही सिखाया गया था और यही उसकी मूल प्रकृति भी थी, डीएनए ही यही था !!
                        (2)
#वसंत_ऋतु_आ गयी थी।चारों ओर कलियों और मंजरियों से वन-उपवन खिल उठे थे।सुगंध,सुवास और सौंदर्य का साम्राज्य फैलने लगा था।
ऐसे मनमोहक वातावरण में बगीचे के आम की डाली के कोमल पत्तों के बीच बैठी कोयल के मन में विचार आया कि क्यों न मैं अपनी मीठी तान से पूरे वातावरण में रस घोल दूंँ ताकि हर प्राणी इस स्वरमाधुरी के आनंद में डूब जाए !
    उसने कूक लगायी,बार-बार लगायी।कोयल ने सोचा मैं सारे बगीचे में मिठास बांँट रही हूँ और वह भी बिना किसी भेदभाव के।
#सबका_साथ,#सबका_मिठास !
   लेकिन वहीं उस बगीचे में एक दूसरी टहनी पर बैठे एक #बाज के लिए यह मिठास नहीं,मौका था।उसने कोयल को धर दबोचा।
    कोयल तड़पती हुई बोली,"मेरे मिठास और मेरी मीठी तान के बदले तुम मेरी जान ले रहे हो ?"
   बाज क्रूर और व्यंग्यात्मक हंँसी हंँस कर बोला,"मैं यहांँ बांसुरी सुनने नहीं बैठा था।बांसुरी बजाना तेरा काम था और बांसुरी समेत तेरा काम तमाम कर देना मेरा काम !
इस प्रकार सबका भला चाहने और भला करने वाली मीठी कोयल भी मारी गयी !
                        (3)
#रजनीगंधा के फूलों की महक में आसपास के सभी लोग खो से जाते थे और रजनीगंधा की खूब प्रशंसा करते थे।
यह देखकर #अमरबेल ने भी रजनीगंधा के पास जाकर अतिशय विनम्रता और आत्मीयता दिखाते हुए कहा,"बहन,मुझे तो तुम पर इतना प्यार आता है कि जी करता है तुमसे लिपट जाऊंँ और कभी अलग न होऊंँ।"
   रजनीगंधा भी भावुक हो उठी और उसने अमरबेल की पतली-सी दिख रही लता को अपने शरीर से लिपट जाने दिया।कुछ दिनों तक तो रजनीगंधा ने अमरबेल का स्वागत,सत्कार और परिचर्या की लेकिन फिर अमरबेल अपने वास्तविक रंग में आ गयी।उसने मक्खन खिलाने वाले हाथ को ही खाना शुरू कर दिया।
    रजनीगंधा धीरे-धीरे सूखने लगी और अमरबेल हरी-भरी और पुष्ट होने लगी !
  रजनीगंधा बहुत रोयी,गिड़गिड़ायी,छटपटायी लेकिन अमरबेल को तनिक भी न दया आयी और न ही कृतज्ञता का कोई बोध ही हुआ।
   रजनीगंधा बोली,"प्रेम,स्वागत,सत्कार और सहायता करने वाले के साथ क्या यही व्यवहार करना चाहिए था तुम्हें ?"
   अमरबेल ने विजयी मुस्कान के साथ कहा,"तुम जिसे प्रेम कहती हो असल में वह तुम्हारी मूर्खता थी।सज्जन होना अच्छी बात है लेकिन #मूर्ख_सज्जन होना नहीं!"
    अंत में रजनीगंधा अपनी सारी सुगंध के साथ सदा के लिए समाप्त हो गई।
                       (4)
#नारद_जी त्रिलोक भ्रमण करते-करते #क्षीरसागर पहुंचे।भगवान और भगवती को प्रणाम कर कहा,"हे प्रभु,आप तो सर्वज्ञ हैं,अंतर्यामी हैं,फिर भी मैं पूछ रहा हूँ।आप उस बिच्छू और साधु के प्रकरण को तो जानते ही हैं।मेरे मन में बार-बार प्रश्न उठता है कि साधु को हर बार डंक मार रहे उस बिच्छू को आखिर उस साधु ने नदी में डूबने से क्यों बचाया ?
क्या साधु का यह कहना ठीक था कि यदि बिच्छू अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं अपना स्वभाव क्यों छोडूं ?"
    श्रीहरि मुस्कराए और मुस्कराते हुए बोले,"देवर्षि नारद, तुम तो ज्ञानियों के भी ज्ञानी हो।तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर तो मैंने कृष्णावतार में ही दे दिया था!"
    नारद हतप्रभ होते हुए बोले,"कब प्रभु ?"
   जनार्दन बोले,"कालिया नाग के विष के बदले क्या मैंने उसका आलिंगन किया था ? या उसके सभी फणों को कुचला था,उनका मर्दन किया था !?"
     नारद जी ने #संतुष्ट_होकर माता लक्ष्मी समेत लक्ष्मीकांत को साष्टांग प्रणाम किया और नारायण नारायण कहते हुए भ्रमण पर निकल गये !!

--- दिव्य भारत

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