अफ़ग़ानिस्तान के रहवासी पठानों को सब जानते ही होंगे, गजनवी,अब्दाली,टीपू सुल्तान जैसे क्रूर आक्रांता भी पठान ही थे । भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद जिन अफरीदी,दुर्रानी,झज्जर,शेरवानी जैसे कबीलों ने कश्मीर में हमला करके हिंदुओ का नरसंहार किया था,हिन्दू औरतों का बलात्कार किया था और बलूचिस्तान को कश्मीर से अलग करके कब्जे में ले लिया था वह काबिले भी पठानों के थें । पठान कुनबा अमूमन मुस्लिमों का लड़ाकू कुनबा है पर क्या आपको पता है इन पठान कुनबों में एक फ़िरक़ा हिन्दू पठानों का है जो #काकरी नाम से जाने जाते हैं ।
अपेक्षाकृत मुस्लिम पठानों की संख्या में यह हिन्दू पठान बहुत कम संख्या में हैं । सातवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य तुर्क आक्रमणकारियों के लगातार आक्रमण ने अफगानिस्तान के पश्तुनों को धर्मांतरित होने में बाधित कर दिया । सातवीं शताब्दी से पूर्व यह पठान बौध्मातावालम्बी हो गए थे और इन तथाकथित अहिंसकों के अनुयायियों ने तुर्क आक्रमणकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था , असंख्य पठानों की हत्या लूटपाट ने पठानों को बौध्मातावालम्बी से मुस्लिम अनुयायी बना दिया पर हिन्दू कुश के पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले काकरी पठान हिन्दू के हिन्दू ही रहें । भारत में धर्मांतरण वहाँ अधिकतर हुआ है जो क्षेत्र #वर्णाश्रम_धर्म से च्युत थे । इंडोनेशिया सबसे बड़ा मुस्लिम देश भी बौध्मातावालम्बीयों का देश था जो मुस्लिम आक्रमण के सामने घुटने टेक दिए थें ,यहाँ के लोग आज भी खुद के पूर्वज हिंदुओ को बताते हैं ।
1893 में अंग्रेजों की विभीषिका से ग्रसित होकर यह हिन्दू पठान पाकिस्तान आ गए फिर लगभग 54 साल बाद भारत पाकिस्तान बँटवारे के बाद यह पुनः पाकिस्तान से विस्थापित होकर हिंदुस्तान आ गए । आज भी यह समाज पश्तो भाषा बोलता है और गीता गाता है । पर प्रश्न उठता है यह संस्कृति कब तक बचेगी क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान के इस अमूल्य धरोहर का संरक्षण न तो भारत सरकार ने किया है और न ही हिन्दू जनमानस ने ।
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