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हमारा कार्य अपनी उस प्राचीन संस्कृति का पुनरुज्जीवन करना है, जिसे हमारे पूर्वजों ने प्रस्थापित किया और जो समय पाकर परिपक्व हो चुकी है। सांस्कृतिक पुनरुज्जीवन को अनेक बार लोग प्रतिक्रिया के गलत अर्थ में समझ लेते हैं और इस विषय में सर्वाधिक प्रचलित शब्द को लेकर इस प्रकार के कार्य पर प्रतिक्रियावादी होने का आरोप मढ़ा जाता है मैं समझता हूँ कि अतीत का पुनरुज्जीवन तथा प्रतिक्रियावादी केवल उन्हीं कार्यों को कहा जा सकता है, जिनसे समाज अधोगति की ओर बढ़े और जिनका सूत्रपात कुछ समय पूर्व हो गया हो। यह कार्य प्राचीन है और इसका पुनरुद्धार एवं पुनरुज्जीवन, अर्थात् हिंदू संस्कृति का पुनरुज्जीवन स्थायी महत्त्व रखता है। इसकी चर्चा करनेवालों से लोग बहुधा इसकी परिभाषा पूछते हैं। परंतु यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसकी परिभाषा बताना अत्यत कठिन है। यहाँ पर लोग यदि यह प्रश्न पूछें कि इसकी परिभाषा किए बिना आप अपना कार्य कैसे करेंगे, तो मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि जहाँ तक मनुष्य को आरोग्य प्रदान करने का संबध है, हमारी समस्त प्राचीन वैद्यक औषधियाँ अत्यत उत्तम उपादेय एव प्रभावी हैं, तथापि उनका प्रयोग करनेवाले वैद्य मानव जीवन के रहस्य को नहीं जानते अथवा उसकी परिभाषा बतलाने में असमर्थ हैं मुझे नहीं लगता कि आगामी अनेक शताब्दियों तक भी कोई ऐसा कर सकेगा। यहाँ तक कि जो पदार्थ हमारे शरीर अथवा समस्त प्राणिमात्र के शरीरों को जीवन प्रदान करता है, उसको वैज्ञानिकों ने केवल 'प्रोटोप्लाज्म' कहकर छोड़ दिया है। प्राणिशास्त्र का विद्यार्थी होने के कारण में इस बात को जानता हूँ। फिर भी हमारा कार्य भली-भाँति चलता है। यह इस समस्या का केवल एक पक्ष है और वह भी अभावात्मक है।
*श्री गुरुजी समग्र : खड-6 : पृष्ठ-207*
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