धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः
तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत्
जो धर्म को नष्ट करता है, वह स्वयं भी नष्ट हो जाता है। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। इसलिए मैं धर्म का त्याग नहीं करता। कहीं ऐसा न हो कि नष्ट हुआ धर्म हमारा नाश कर दे।
हिंदुओं में अपने पूर्वजों से लगाव का अद्भुत गुण है( पितृपक्ष आदि इसके साक्ष्य हैं) प्रत्येक पीढ़ी अपने से पिछली पीढ़ी के उच्च नैतिक व धार्मिक मूल्यों का अनुसरण करना चाहती है। हिन्दू यदि वाम भी हो जाए तब भी वो अपने पिता, पितामह के यश पर गर्व करता है। कुलदेवता इसी परंपरा के मूल हैं। हर गांव, गली-चौराहे और शहर में कोई एक डीहबाबा, बरमबाबा और देवी मंदिर होता है। जो मानो उस स्थान का अधिष्ठाता हो। जिसके अधीनस्थ आस्था का वह वट वृक्ष बरसों से हराभरा है, जिसने जमा देनी परिस्थितियों की शीत हवाएँ और विरोध की ग्रीष्म लू सही है। ये भारत का प्राणरस है।
भारत की कल्पना ही कुछ इस प्रकार की गई है। वैदिक परम्पराओं के ग्राम देवता, स्थान देवता, लोकपाल, क्षेत्रपाल और दिगपाल की पूजा का भी विधान है हर अनुष्ठान से पहले।
यही भारत है। और इसीलिए भारत की आत्मा 'गांव' में बसती है।
भविष्य पुराण का प्रतिसर्ग पर्व भी इस कथन की पुष्टि करता है - ग्रामे-ग्रामे स्थितो देवः। देशे देशे स्थितो मखः ।। गेहे गेहे स्थितं द्रव्यं । धर्मश्चैव जने जने॥
"भारत के प्रत्येक ग्राम में देव-मन्दिर था, प्रत्येक देश में यज्ञ होता था, घर में द्रव्य का अटूट भण्डार भरा रहता था और प्रत्येक मनुष्य में धर्म का अस्तित्व होता था।"
भारत देवों का देश है सो यहाँ ग्रामदेवता हैं, ब्रह्म बाबा हैं और कुलदेवता हैं। अपनी कुलदेवता/देवी का त्याग कभी न करें। उनकी विधिवत पूजा करिए। शिव तथा विष्णु भी यदि आपके पक्ष में हों किन्तु कुलदेवता वाम हों तो आपकी रक्षा सम्भव नहीं। उनका त्याग कभी न करें जिनके कारण आप हैं। कुलदेवता का त्याग मने अपने प्राण का त्याग। आपके जीवन में सारा अनिष्ट इसी एक कारण से हो रहा है। इनकी सेवा करिए ये आपकी रक्षा करेंगे। लोग कई पीढ़ियों से नरक भोग रहे हैं, जीवन में कुछ अच्छा नहीं हो रहा। इसका मूल कारण होता है अपने कुलदेवता से दूर भागना। कुंडली का कोई भी योग, कोई ग्रह, नक्षत्र आपके पक्ष में काम नहीं करेगा जबतक कि आप इनके शरण में नहीं जाते हैं।
कुलदेवी की कृपा से बड़े-बड़े संकट टल जाते हैं। जब हम तंत्र शास्त्र की बात करते हैं, तो अगर कोई व्यक्ति आपको नजर दोष देता है, तंत्र प्रयोग करता है, या उच्चाटन करता है, तो आपके और उस तंत्र प्रयोग के बीच में कुलदेवी एक ढाल बनकर खड़ी हो जाती हैं। अगर कुलदेवी आपसे प्रसन्न हैं, तो वह प्रयोग कभी आप तक नहीं पहुँच पाएगा। कुलदेवी आपके जीवन की रक्षा और संवर्धन के लिए दी गई हैं। कुलदेवी-कुलदेवता दर्शन घर की मूर्ति में ही हैं, उन्हें सजीव मानें। दूर तीर्थों से पहले घर के देवों से जुड़ें। कुलदेवता कुलदेवी या कुलदेव होते हैं, जिन्हें कुल का रक्षक माना जाता है। इसलिए, किसी भी अवसर, जैसे विवाह, जन्म या नामकरण संस्कार, पर उनकी पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
यदि कुलदेवता(/देवी) का ज्ञान नहीं है तो पता करिए। किसी ज्योतिष से मिलकर कुण्डली के नक्षत्र के अनुसार यह जान सकते हैं। वंश परम्परा में जो देवता पूजे जा रहे हैं उनका ध्यान रखना चाहिए। बूढ़े-बुजुर्गों से मिलकर इसे जाना जा सकता है। अपने कुल पुरोहित से जाना जा सकता है। सबसे बढ़िया है अपने गोत्र के अनुसार ढूंढ लें। अगर आप मार्कण्डेय ऋषि की संतान हैं या आपका गोत्र मार्कण्डेय है, तो माँ बिंदवासिनी या महाभागा देवी आपकी कुलदेवी हैं पाराशर गोत्र के लिए प्रभावती देवी, गौतम गोत्र के लिए विशालेषा या विश्लेषा देवी, भारद्वाज गोत्र के लिए सरस्वती का रूप श्री माता, गर्ग गोत्र के लिए देविका देवी, जंदल गोत्र के लिए बाला सुंदरी या त्रिपुरा महासुंदरी का रूप बाला शोडशी, शांडिल्य गोत्र के लिए माँ शारदा का रूप कात्यायनी देवी, याजवल्क्य गोत्र के लिए दुर्गेश्वरी देवी, सौ गोत्र के लिए महासिद्धा या सिद्धेश्वरी देवी मानी गई हैं। वशिष्ठ गोत्र के लिए भट्टारिका या दुर्गा देवी का रूप सत्य देवी, जिसे भट्टारिका भी कहते हैं। अत्रि गोत्र के लिए शिवप्रिया देवी, अंगिरस गोत्र के लिए चंडिका या प्रचंडिका देवी, कौशिक गोत्र के लिए गोत्रपा देवी, कश्यप गोत्र के लिए त्रिपदा देवी, भार्गव गोत्र के लिए तारी देवी, भृगु गोत्र के लिए विश्वेश्वरी देवी और मरीचि गोत्र के लिए भगवती कला देवी मानी गई हैं। पुलस्त्य, पुलह, और कृत् गोत्रों में कुलदेवी का विधान नहीं मिलता। इनमें ब्रह्मा के माध्यम से कुलदेवता का विधान मिलता है। श्री ब्रह्मा, श्री विश्वेश्वर विष्णु जी महाराज, और भगवान शंकर, या इन तीनों का स्वरूप दत्तात्रेय भगवान—ये इनके कुलदेवता माने गए हैं। अलग-अलग गाँव, खेड़ा, पिंड, या क्षेत्र में अलग-अलग क्षेत्रपाल हो सकते हैं। इसका विचार आपको अपनी कुल परंपरा, प्रवर परंपरा, या कुलाचार परंपरा के आधार पर करना होगा।
उदाहरण के लिए, अगर आप गुजरात से हैं, तो आपकी कुलदेवी अंबाजी हो सकती हैं। अगर आप महाराष्ट्र या मुंबई से हैं, तो तुलजा भवानी या मुम्बा देवी आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। अगर आप छत्तीसगढ़ क्षेत्र से हैं, तो मुम्बा देवी ही आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। कश्मीर या पंजाब क्षेत्र के लोग चंडी पूर्ण नैना देवी, ज्वालामुखी, परमेश्वरी, या वृजेश्वरी देवी को अपनी कुलदेवी मान सकते हैं। दक्षिण भारत में माँ प्रत्यंगिरा, त्रिपुरा महासुंदरी, शोडशी, या ललिता आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। असम में माँ कामाख्या, नीलांचल पर्वत वासिनी, या गोड क्षेत्र में माँ तारा आपकी कुलदेवी हो सकती हैं। कुलदेवी की कृपा अगर आपके ऊपर है, तो कोई आपके परिवार या आपके बाल-गोपालों को छू भी नहीं सकता। कुलदेवता की सेवा करें। साथ में शालिग्राम को भी पूज लें कोई क्षति नहीं है।
ज्वालामुखी, नरसिंह, सोखा(वीरभद्र), धर्मराज(कारिक पंजियार) तथा तारा में से कोई भी आपके कुलदेवता हैं तो कृपया आज ही उनके चरण धरें, ये सबसे उग्र में से हैं दया नहीं करते हैं।
राम-कृष्ण को पूजने वाले वैष्णवपंथी हैं क्योंकि ये अपने मूल मत से कन्वर्ट होकर वैष्णव बने हैं। राम या कृष्ण किसी के भी कुलदेवता नही हैं। शिव और विष्णु अपने मूल रूप में कुलदेवता नही हैं किसी के भी। वे कुलदेवता हैं किंतु दूसरे नाम से। शिव अपने मूल रूप में किसी के कुलदेवता नही हैं। वे वीरभद्र(सोखाबाबा) के रूप में कुलदेवता होते हैं। शिव प्रायः अपने रुद्र या ऐसे ही किसी रूप के नाम से कुलदेवता हैं, अपने नाम से नहीं। नरसिंह के रूप में विष्णु कुलदेवता होते हैं। नरसिंह भगवान को बलि पड़ता है। किंतु वे लोकदेवता हैं जो ढेर लोगों के कुलदेवता हैं सो वे वैष्णव की सीमा से दूर हैं।
धर्मराज अपने नाम से कुलदेवता हैं। जबकि जितनी भी देवियाँ हैं वो कट्टर जीवों की कुलदेवी हैं।
कुलदेवताओं में काली सबसे सौम्य मानी गयी हैं। ज्वालामुखी सबसे उग्र मानी जाती हैं, इनके उपासक अन्य किसी देव को पूजा या बलि या भोग नहीं देते, हम दुर्गापूजा में कन्या-भोजन नहीं करवाते, बलि नहीं देते। धर्म को टूरिज्म समझने वाले यह नहीं समझ सकेंगे। ज्वालामुखी की पूजा स्त्रियां भी नहीं कर सकती हैं। मान्यता है कि यदि ज्वालामुखी का सेवक खड़ा है तो अन्य कुलदेवता अपनी पूजा स्वीकार नहीं करते। या तो ज्वालामुखी के सेवक(कुलदेवता/देवी के सेवक होते हैं,भक्त नहीं) को हटाइए या फिर उन्हें पूजा दीजिए जो बहुत ही ज्यादा कठिन है, सब पूजा भी नहीं कर सकते। नियम यह है कि ज्वालामुखी अपूजित युगों तक रह जाएँगी किन्तु कोई स्त्री उनकी पूजा नहीं करेगी, जब वंश में पुरुष होगा तब पूजा होगी।
अच्छा, जिन देवताओं को बलि का विधान है उन्हें वह करना चाहिए। एक सहकर्मी हैं जिनके कुलदेवता धर्मराज हैं। वे बलि देना बन्द कर दिए क्योंकि उन्हें अच्छा नहीं लगता था। उनके यहाँ उपद्रव होने लगा, परिवार अस्थिर हो गया।
दुर्गा किसी की कुलदेवी नही होती हैं इसीलिए सब उनकी पूजा करते हैं। दीवाली के रात में काली-पूजा वे करते हैं जो काली के सेवक होते हैं। कोई किसी दूसरे की कुलदेवी की पूजा नहीं करता, हम तो दूसरों की कुलदेवता के मंदिर भी नहीं जाते। धर्म गहरा विषय है, सूक्ष्म है।
यह धर्म ब्राह्मणों का है, उनके बनाए नियम ही मान्य होंगे। युगों से ब्राह्मणों ने अत्याचार झेला और अपने धर्म को पुनर्गठित किया और ऐसा बनाया कि शासक शिव, शक्ति को राज्य अर्पित करने लगे।
इसे ऐसे समझें- पुष्यमित्र से पूर्व राजा इंद्र का प्रतिनिधि होता था, राज्य उसका था। पुष्यमित्र के बाद से राजा अपने कुलदेवता/देवी का सेवक मात्र था, राज्य कुलदेवता को अर्पित करता था। देवता के प्रतिनिधि के रूप में ब्राह्मण उसके राजकाज को देखते थे। इसी तरह मेवाड़ के महाराणा शासक नहीं थे।
अब यह कि कुलदेवता की पूजा कैसे हो। तो सबसे आसान यह है कि यदि धूप, दीप, फूल व जल हेतु 5 रुपया भी नहीं है तो स्त्रीगण स्नान के पश्चात अपने आँचल के कोर को भिंगा लें व उससे टपकते जल से अपने कुलदेवता को अर्घ्य दे दें। पुरुष अंजुरी भर जल अपने कुलदेवता के नाम पर अर्पित करें। आप इसे नियमित करिए और तब परिवर्तन देखिए। कुलदेवता साक्षात् खड़े हो जाते हैं आपके दुःखों के समक्ष।
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