"योगेश्वर श्रीकृष्ण – धर्म, नीति और राष्ट्र जागरण के शाश्वत प्रेरणास्त्रोत"

"योगेश्वर श्रीकृष्ण – धर्म, नीति और राष्ट्र जागरण के शाश्वत प्रेरणास्त्रोत"
योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म केवल एक धार्मिक घटना नहीं बल्कि मानव सभ्यता के इतिहास में धर्म और सत्य की रक्षा का अद्वितीय उद्घोष था द्वापर युग के अंधकारमय समय में जब अधर्म अन्याय और अत्याचार चरम पर थे तब मथुरा की कारागार में जन्म लेकर श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि सत्य को कोई दीवार रोक नहीं सकती और धर्म का प्रकाश किसी भी ताले के भीतर कैद नहीं हो सकता उनका जन्म स्वयं यह प्रमाण है कि जब-जब धर्म पर संकट आता है तब-तब ईश्वर किसी रूप में अवतरित होकर धर्म की रक्षा और अधर्म का विनाश करते हैं

श्रीकृष्ण केवल एक पूजनीय देवता नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मार्गदर्शक हैं चाहे वह राजनीति हो समाज सुधार हो युद्ध नीति हो या व्यक्तिगत चरित्र निर्माण उन्होंने हमें यह सिखाया कि धर्म की रक्षा के लिए शक्ति और नीति दोनों आवश्यक हैं अन्याय के सामने मौन रहना भी अधर्म है और जीवन के हर संघर्ष में मन को स्थिर रखकर कर्म करना ही सच्चा योग है उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अपने कर्तव्य को निभाने के लिए आवश्यक हो तो कठिन से कठिन निर्णय लेने में भी संकोच नहीं करना चाहिए

कंस के अत्याचार से मथुरा को मुक्त कराना गोवर्धन पर्वत उठाकर गाँव के लोगों को प्राकृतिक आपदा से बचाना मित्र सुदामा के साथ समानता और स्नेह का अमर उदाहरण देना अर्जुन को गीता का अमृत उपदेश देकर युद्धभूमि को धर्मसभा में बदल देना ये सब केवल पौराणिक कथाएं नहीं बल्कि राष्ट्र और समाज के लिए अमर प्रेरणाएं हैं गीता में दिया गया उनका संदेश “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” आज भी हमें सिखाता है कि परिणाम की चिंता छोड़कर अपना सर्वोत्तम कर्म करते रहना ही सच्चा धर्म है

श्रीकृष्ण ने हमें सिखाया कि नेतृत्व केवल पद से नहीं बल्कि कर्म और संकल्प से आता है उनका जीवन यह बताता है कि जब समाज में नैतिक पतन भीतरी कलह और बाहरी आक्रमण बढ़ जाएं तब केवल संगठन रणनीति और धर्मनिष्ठ नेतृत्व ही राष्ट्र को बचा सकता है उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि धर्म की रक्षा केवल युद्ध से नहीं बल्कि समाज को जागरूक और संगठित करके ही संभव है यही कारण है कि उन्होंने महाभारत से पहले वर्षों तक कूटनीति संवाद और समाजिक जागरण का कार्य किया ताकि धर्मयुद्ध अंतिम और न्यायपूर्ण विकल्प के रूप में सामने आए

आज के भारत में जब संस्कृति पर प्रहार मूल्यहीन राजनीति और सामाजिक विघटन की चुनौतियां सामने हैं तब श्रीकृष्ण का जीवन हमें पुनः यह आह्वान करता है उठो संगठित हो और धर्म के लिए अडिग रहो क्योंकि जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है समाज को संगठित करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है और यही वह मंत्र है जो श्रीकृष्ण ने अपने कर्म और वाणी दोनों से दिया वे हमें यह भी सिखाते हैं कि केवल मंदिर में पूजन से नहीं बल्कि अपने जीवन को धर्म के मार्ग पर चलाकर और अन्याय के विरुद्ध खड़े होकर ही हम सच्चे कृष्ण भक्त बन सकते हैं

इस जन्माष्टमी पर आइए हम केवल श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव न मनाएं बल्कि उनके द्वारा दिए गए समाज जागरण के मंत्र को भी अपने जीवन में उतारें उनके उपदेशों को अपने परिवार समाज और राष्ट्र की रीढ़ बनाएं ताकि भारत पुनः धर्म और नीति का विश्वगुरु बन सके
"जन्माष्टमी पर संकल्प लें – धर्म जिएंगे नीति निभाएंगे राष्ट्र जगाएंगे"
लेखक
महेन्द्र सिंह भदौरिया 
प्रांत सेवा टोली सदस्य 
सहमंत्री साबरमती 
विश्व हिन्दू परिषद उत्तर गुजरात प्रांत

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