आज 14 अगस्त की है। इसी दिन, 1947 में, हमारे देश का विभाजन हुआ—एक ऐसा विभाजन जिसने मज़हबी भीड़ की हिंसा और रक्तपात की अमानवीयता को उजागर किया। इस विभाजन में लगभग 40 लाख लोगों की निर्मम हत्या हुई और करोड़ों लोग अपने घर, गांव और सम्पत्ति छोड़कर पलायन और शरणार्थी बनने को मजबूर हुए। पंजाब, बंगाल और सिंध विशेष रूप से इस हिंसा के केंद्र बने, जहाँ लाखों हिंदू और सिख परिवारों को कत्लेआम, बलात्कार और शोषण झेलना पड़ा। इतिहास गवाह है कि लाखों स्त्रियों के साथ शीलभंग की घटनाएँ हुईं और अनेक परिवार पूर्णतः तबाह हो गए।
इस विभाजन के परिणामस्वरूप भारत ने अपने कई प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण भूभाग खो दिए—पाकिस्तान में पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान, तथा पूर्वी भाग में बांग्लादेश। इन भूभागों में रहने वाले करोड़ों हिंदू और सिख अपने घरों और पुश्तैनी संपत्ति को छोड़कर भारत में पलायन करने को मजबूर हुए। इस तथ्य को याद रखना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इन खोए हुए भूभागों में हमारे समाज और संस्कृति की गहन छाया रही है।
15 अगस्त 1947 को हमें स्वतंत्रता मिली, किंतु यह स्वतंत्रता अधूरी थी। आज हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, पर इस स्वतंत्रता की वास्तविकता को भूल नहीं सकते। हमें यह याद रखना होगा कि उस स्वतंत्रता के साथ हमारा अखंड भारत का संकल्प टूट गया।
हमें गर्व है कि तिरंगा हमारे लिए सम्मान का प्रतीक है। किंतु हमारी सभ्यता और संस्कृति का असली प्रतीक भगवा ध्वज है। यही ध्वज हमारी आस्था, हमारी संस्कृति और हमारे राष्ट्रधर्म का परिचायक है। अतः आवश्यक है कि हम भगवा ध्वज को सर्वोच्च सम्मान दें और उसके समक्ष अखंड भारत के निर्माण का संकल्प लें। यही संकल्प हमें हमारे गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और राष्ट्रधर्म की रक्षा के लिए एकजुट करेगा।
आज की स्थिति चिंताजनक है। स्वतंत्रता प्राप्ति के 78 वर्षों बाद भी, कई राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और जल्द ही अन्य राज्यों में भी ऐसा होना निश्चित है। सरकारी आंकड़े भले ही अभी पूर्णतः अल्पसंख्यक होने का संकेत न दें, पर वास्तविकता यही है कि पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, असम और मिज़ोरम जैसे प्रदेशों में हिंदू पहले ही अल्पसंख्यक बन चुके हैं। 1947 में हुए विभाजन में 40 लाख हिंदुओं की बलिवेदी पर हमें स्वतंत्रता मिली, पर उनके हत्यारों और पीड़ितों को हम अपने स्वतंत्रता उत्सव में भूल गए हैं।
इस दृष्टि से यह स्वतंत्रता दिवस केवल उल्लास का दिन नहीं है, बल्कि शोक और आत्ममंथन का दिन भी है। पूर्ण स्वतंत्रता तभी प्राप्त होगी, जब हम अपने खोए हुए भूभागों को पुनः अपने नियंत्रण में लाकर म्लेच्छों और पराधीन शक्तियों से मुक्त कराएँगे। यही समय है अखंड भारत के संकल्प को पुनः स्मरण करने का, पूर्ण स्वतंत्रता के लिए संकल्प लेने का और भारत माता को उसकी अस्मिता, स्वतंत्रता और गौरव दिलाने का। इतिहास की इस पीड़ा से हमें सीख लेनी होगी और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए चेतावनी और प्रेरणा दोनों के रूप में संजोना होगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें