आतंकवाद का इलाज बंदूक नहीं, वैचारिक आघात है

जब हम #पाकिस्तान को देखते हैं, तो वह भारत का घोषित शत्रु प्रतीत होता है — जिसने हमारे देश पर कई बार आक्रमण किया, #आतंकवाद को प्रश्रय दिया, और असंख्य निर्दोषों का रक्त बहाया। पर क्या वह अकेला अपराधी है? या वह केवल एक मजहबी सोच का राजनैतिक विस्तार है, जो उस भूभाग से कहीं अधिक व्यापक और पुराना है?

पाकिस्तान केवल एक राष्ट्र नहीं है, वह एक #मजहबी परियोजना है — एक ऐसी सोच का परिणाम, जो यह मानती है कि सम्पूर्ण मानवता को केवल एक मजहब के अधीन होना चाहिए। इस्लाम का वह संस्करण, जिसने पाकिस्तान को जन्म दिया, किसी आध्यात्मिक खोज की नहीं, बल्कि वैश्विक आधिपत्य की योजना की अभिव्यक्ति है।

इस सोच के अनुसार, दुनिया दो हिस्सों में बाँटी गई है — #दारुल_इस्लाम और #दारुल_हरब। जहाँ #इस्लाम नहीं है, वहाँ युद्ध जायज़ है, जिहाद जायज़ है, और अन्य मजहबों को नष्ट कर देना एक मजहबी कर्तव्य है। इस विचार में न कोई बहुलतावाद है, न संवाद की गुंजाइश — केवल अधिनायकवाद है।

जिहादियों को यह बताया जाता है कि उनकी "सच्ची जिंदगी" मौत के बाद शुरू होती है — जन्नत में, जहाँ उन्हें विलास, बहत्तर हूरें और मजहबी सुख की प्राप्ति होगी। यह मजहबी कल्पना ही उन्हें मौत से भयमुक्त कर देती है और हत्या को पुण्य बना देती है।

ऐसे में, यह संघर्ष केवल पाकिस्तान जैसे राष्ट्र से नहीं है — यह उस मजहबी #विचारधारा से है, जो संकीर्ण, असहिष्णु और हिंसक है। यह विचार शांति से सह-अस्तित्व नहीं चाहता, यह प्रभुत्व चाहता है।

जब तक हम इस मजहबी मानसिकता को स्पष्ट रूप से चिन्हित नहीं करेंगे, और इसके प्रति वैचारिक प्रतिरोध नहीं खड़ा करेंगे — तब तक आतंकवाद की जड़ें सूखेंगी नहीं। यह केवल सीमा की नहीं, विचार की लड़ाई है।

#भारत में जो इस्लामी #जिहादी आतंकवाद फैल रहा है, वह केवल सीमा पार से नहीं आता, बल्कि इस्लामी मजहबी सोच के तहत पनपता है। यह सोच यह दावा करती है कि जो मोमिन इस्लाम के विस्तार के लिए जिहाद करेगा , वह #शहीद" कहलाएगा और उसे "जन्नत" में दाख़िल किया जाएगा। क़यामत के दिन, उसे सातवें आसमान में बैठे हुए "अल्लाह" के पास से 72 "हूरों" का इनाम मिलेगा। यह मिथक इन इस्लामी #जिहादी आतंकवादियों के मन में यह धारणा स्थापित करता है कि उनकी मौत एक पवित्र कार्य है और इस कारण वे हिंसा को एक धर्मिक कर्तव्य मानते हैं।

इसी कारण से जब तक हम इन मजहबी मिथकों पर सीधा प्रहार नहीं करेंगे, यह आतंकवाद समाप्त नहीं हो सकता। यही वह आधार है, जहाँ हमें वैचारिक संघर्ष की आवश्यकता है। जब तक हम इस "क़यामत" और #जन्नत" की अवधारणाओं को खंडित नहीं करते, तब तक जिहादी आतंकवाद का उन्मूलन असंभव है। इन इस्लामी आतंकवादियों की मानसिकता है कि "मौत के बाद जन्नत में जीवन शुरू होगा"। यही वो सोच है जो उन्हें आतंकी गतिविधियों में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करती है।

अब सवाल यह उठता है — जब कोई आतंकवादी मारा जाता है, तो उसे दफनाया क्यों जाता है? #दफनाने से उसकी #शहादत" की धारा को मान्यता मिलती है, और यह उसकी "जन्नत" की यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। लेकिन क्या होगा यदि हम उसे दफनाने की बजाय जलाते? "हुक्म अल्लाह" के अनुसार, जो व्यक्ति जलकर भस्म हो जाता है, वह फिर से "क़यामत" के दिन जिंदा नहीं हो सकता। इससे उनकी शहादत की #अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी।

यह वैचारिक प्रहार बहुत प्रभावी होगा। जब हम किसी आतंकी को दफनाने की बजाय उसे #अग्निदाह करते हैं, तो उसका यह मिथक टूट जाएगा कि उसे "हूरों" का इनाम मिलेगा। उसे यह अहसास होगा कि उसकी "जिंदगी" सिर्फ़ इस दुनिया तक सीमित थी, और उसकी मौत के बाद उसे कुछ नहीं मिलेगा। यही वह सबसे गहरी चोट होगी, जो इस्लामी आतंकवाद की मजहबी धारा पर की जा सकती है।

इसके साथ ही, हमें #क़यामत, जन्नत, और हूरों जैसी अवधारणाओं पर भी गहरी विचार-विमर्श की आवश्यकता है। इस्लाम में जो "क़यामत" का सिद्धांत है, जिसमें कहा जाता है कि मृतकों को "अल्लाह" पुनर्जीवित करेगा और उन्हें #जन्नत या #जहन्नुम में भेजेगा, यह एक पूरी तरह से मजहबी और काल्पनिक अवधारणा है। इस अवधारणा का शिकार सिर्फ #आतंकी नहीं, बल्कि हर वह व्यक्ति है जो "शहादत" और "जन्नत" की सोच में डूबा है। यदि इस सोच को सही तरीके से चुनौती नहीं दी जाती, तो यह संकट हमें वर्षों तक सताता रहेगा।

हमारा लक्ष्य केवल आतंकवादियों को मारना नहीं, बल्कि उनकी मजहबी सोच पर वैचारिक आघात करना है। यह आघात न केवल उनकी #मौत के बाद जन्नत जाने की भ्रांति को समाप्त करेगा, बल्कि यह उनके जिहादी कृत्यों के पीछे के कारणों को भी नष्ट कर देगा।

भारत के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह केवल हथियारों से नहीं, बल्कि विचारों से भी इस्लामी आतंकवाद का मुकाबला करे। यही वह समय है, जब मजहबी #जिहाद के खिलाफ सैन्य और वैचारिक दोनों मोर्चों पर एक साथ कार्रवाई करनी चाहिए।

✍️ दीपक कुमार द्विवेदी 

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