भारत विदेश नीति में कहां पिछड़ता है, और उपाय

मेरे हिसाब से विदेश नीति में धर्म बहुत मायने रखता है। दुनिया में जितने महत्वपूर्ण और बड़े ओहदे वाले देश हैं या तो वो क्रिश्चियन कंट्रीज हैं या फिर इस्लामिक। इसीलिए जब भी आपका मसाला इस्लामिक कंट्री के साथ होता है तो आपके इस्लामिक मित्र अपने मजहबी बंधुओं के साथ होते हैं। और जब आपका मसाला किसी ईसाई देश के साथ होता है तो आपके ईसाई मित्र आपके अपने ईसाई बंधु बंधुओं के साथ होते हैं। और यही से हमारी विदेश नीति मार खा जाती है।

इन सबसे पार पाने का पहला उपाय है कि उच्च शिक्षा में हमारे पास गिनती में केवल IIT ही न हो। उसके अलावा भी जो टियर ३ के विश्वविद्यालय हैं उनकी शिक्षा भी गुणवत्ता पूर्ण हो। विश्वविद्यालयो के बजट में भेदभाव बंद होना चाहिए। अगर एक IIT को हजार करोड़ मिलता है तो सुदूर स्थिति लखनऊ विश्वविद्यालय या कानपुर विश्वविद्यालय या अन्य को क्यों नहीं। मेरा मानना है कि पोटेंशियल हर बच्चे में है। अगर हम सब पर प्रॉपर इन्वेस्ट करें तो। और IIT में प्रतिवर्ष केवल १२ से १५ हजार बच्चे ही बीटेक करते हैं। जबकि दूसरे विश्वविद्यालयों में छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा है। लेकिन वहां गुणवत्ता के नाम अंडा मिलता है।
ऐसे तो विश्वगुरु बनने का सपना पूरा होने से रहा। १०० १०० वर्ष पुराने ऐतिहासिक विश्वविद्यालय खंडहर हो रखे हैं। प्रोफेसर एकदम दोयम दर्जे के। जो खुद किसी यूट्यूब का ४ घंटे का वीडियो देखकर ३ महीने में पढ़ी जाने वाली सब्जेक्ट के नोट्स बना के छात्रों को भेज देते हैं।
विश्वविद्यालयों की शिक्षा हमको रिसर्च बेस करनी चाहिए।

इसके अलावा जो दूसरा कार्य मेरी नजर में है वो है जैसे बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में जो हमारे बाहुबली हैं इनका नेटवर्क। हमारे सभी बक्चोद बाहुबली इसी देश के लोगो को धमकाते हैं और फिरौती लेते हैं। सरकार को चाहिए कि इनको सख्त हिदायत दी जाए l और इनको बोला जाए कि जितनी दुश्मन देश हैं अपना नेटवर्क वहां स्थापित करें। वहां पर फिरौती, लूट, भ्रष्टाचार का व्यापार करें। सामान्य हिन्दू पब्लिक को उधर हथियार सप्लाई करें। ताकि जमीनी फौज तैयार हो सके बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों में।

और तीसरा काम ये है कि कुछ देशों में जैसे श्री लंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश , मालदीव्स और अफ्रीका के जो छोटे छोटे देश हैं। या और भी जो निर्धन छोटे छोटे मुल्क हैं वहां की जनता को हिंदू बनाने के लिए पुरजोर कोशिश की जाए। जैसे इस्लाम या ईसाई दूसरे देशों में धर्म परिवर्तन का नंगा नाच करते हैं, वही खेल हमको भी खेलना चाहिए। और इसे साम दाम दंड भेद जैसे हो उसके हिसाब से करें। अगर प्यार से माने प्यार से मनाओ, पैसे से माने तो पैसे से मनाओ और अगर जोर से माने तो गुण प्वाइंट पर कन्वर्ट करो। 

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