धर्म और संप्रदाय में क्या अंतर होता है विस्तार जानने के लिए पढ़ें पूरा आलेख

धर्म यानी मनुष्य के विचारों की श्रेष्ठ या पवित्र दशा । जो न स्वयं को कलुषित करे न दूसरों को धर्म का सम्बन्ध पूर्ण रूप से आन्तरिक जगत से है । शारीरिक क्रियाएं अन्तर्जगत को पवित्र वृतियों की ओर ले जाने में सहायक हो सकती है , परन्तु शारीरिक क्रियाएं अपने आप में धर्म नहीं हो सकती है । 


धर्म के भेद नहीं किए जा सकते हैं और जिसके भेद किए जा सकते हैं, वह धर्म नहीं हो सकता , वह संप्रदाय हो सकता है । संप्रदाय को धर्म कहने से बड़ी भ्रान्ति उत्पन्न होती है । हम अपने मूल उद्देश्य को भूल रहे हैं । हम अधर्म की ओर बढ़ते जा रहे हैं । हमारे बीच खाइयां बढ़ती जा रही है । हम गुमराह होते जा रहे हैं । 


जब संप्रदाय विशेष में बैठे होते हैं तो हमें बहुत विशेष तरह से प्रेरित किया जाता है । बोलेंगे हमारा धर्म सर्वेश्रेष्ठ है । हमे इसे विकसित करना चाहिए ,हमे इसके लिए प्रयास करने चाहिए हमें सबसे आगे रहना चाहिए । हमारे भीतर प्रतिस्पर्धा के भाव  पैदा करवाएं जाएंगे । वे बाते इस तरह की होती है जो बड़ी ही प्रेरक लगती है। धर्मपरायण लगती है अति आवश्यक लगती है  इस तरह की बातें करने वाले लोग हमें बड़े दायित्ववान लगते हैं । हम उन्हें बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। वे हमे अपने इतने हितैषी व संरक्षक लगते हैं की हम उनकी हर बात को बड़े आदर के साथ मानते हैं । धीरे धीरे हम अपने संप्रदाय के प्रति कट्टर हो जाते हैं । यही से अलगाववाद की शुरुआत हो जाती है ।


यह जहर इतना फैल जाता है कि हम हमारे तथाकथित संरक्षकों के इशारे पर कितना भी घटिया से घटिया काम करने के लिए  तैयार हो जाते हैं । आपस में मारने - मारने तक के लिए उतारू हो जाते हैं । 


आपस में लड़वाने का सबसे आसान उपाय लोगों को मिल गया है । जो लड़वाने के लिए उकसाते हैं , हम उन्हें बड़ा नाम और सम्मान देते हैं। वे नाना प्रकार से हमें उकसाने में सफल हो जाते हैं । और हम अपनी जान की बलि देने तक के लिए तैयार हो जाते हैं । वैसे अपने किसी सम्बन्धी को कभी एक बोतल खून देने की जरूरत पड़ जाए ,तो तैयार नहीं होंगे । लेकिन तथाकथित धर्म के नाम पूरा जीवन कुर्बान करने को तैयार हो जाएंगे । यह सब कुछ पूरी समाजिक व्यवस्था में कोराना महामारी की तरह इस कदर वृहद रूप में फ़ैल चुका है की कोई इतना सोचने की हिम्मत नहीं कर पाता है की यह ग़लत है। लेकिन हम थोड़ा विवेक से सोचें तो यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है की हमसे बहुत बड़ी भूल हो रही है । और यह भूल इसलिए हो रही कि मत पंथ मजहब रिलीजन और संप्रदाय को धर्म समझ रहे हैं । 


दुनिया में बहुत सारे महापुरुष गुरु आदि हुए ,  आगे भी होते रहेंगे  ।  कोई पीले वस्त्र फहनेगा कोई सफेद वस्त्र पहनेगा कोई और कुछ पहनेगा  सबकी शिक्षा देने के अपने अपने निराले अंदाज होंगे उनकी क्रियाएं , मान्यताए भी अलग अलग होंगी । उनका समझाने का तरीका भी अलग - अलग होगा । बहुत सारी भिन्नताएं उनमें हो सकती है। क्या हम गुरू के साथ अपना अलग समूह या संप्रदाय बनाते जाएंगे । इस नाम पर कितने बंटवारे और करेंगे शाय़द हम परमात्मा को भूल गए हैं। या परमात्मा का विश्वास नहीं करते हैं । क्योंकि परमात्मा का जैसे ही स्मरण करेंगे वहीं पर विभाजन की बात खत्म हो जाएगी । वहां पर सारी रेखाएं मिट जाएंगी । विभाजन की बातें ओछी दिखाई देंगी और विभाजन की बातें करने वाले लोग बौने नजर आएंगे । 



यदि किसी ने आपको जगाया है कोई सच्ची राह दिखाई है, तो उसके अस्तित्व तक अपनी सोच सीमित मत रखो । उसने जो जाग्रति आपके अन्दर पैदा की है । उसको ध्यान में रखो । उसने आपको जीवन की सच्ची राह दिखाई है, इसलिए आप उसका बहुत आदर सम्मान करते हैं। बस अब सिर्फ उसी को सुनते हैं । वे ही लोग आपको अच्छे लगते हैं , जो आपके साथ उसी की सुनते हैं दुसरो की सुनने वाले आपको नादान लगते हैं । उनसे आप अपना नाता नहीं रखना चाहते हैं । उनको आप हीन समझते हैं । तो यहां फिर कोई भूल हो रही है । या सिखाने वाले ने आपको गलत सिखाया है । या फिर आपके उसकी बात को ठीक से समझा नहीं है  । यह होता सिर्फ इसलिए हैं , क्योंकि आप उससे आगे नहीं देख पाए । आपने उसको ही सब कुछ समझ लिया। इस सोच से तो हम टुकड़े करते जाते हैं । इससे बड़ा अज्ञान कुछ नहीं हो सकता ‌ जितना तथाकथित धर्म का ज्ञान बढ़ाते जाते हैं । उसका इतिहास पढ़ते जातें हैं , उतनी ही कट्टररता हमारे भीतर बढ़ती जाती है । इससे बढ़कर बुरी अवस्था और क्या हो सकती है ?  देखने में आता है किसी संप्रदाय के शास्त्रों के ज्ञाता  , जो आपको बहुत विद्वान पंडित समझते हैं, ऐसे बिंदु ढूंढ़कर लाते हैं, जो आपस में लड़ने के ओर कारण बनते हैं । ये तथाकथित पण्डित ही सबसे ज्यादा लड़वाते है ।  जबकि जो कुछ नहीं जानता है, वह इस लड़ाई को देखकर परेशान होता है । उसे दुःख होता है की ये लोग क्यों आपस में लड़ रहे हैं ? क्योंकि शब्दों के पण्डित होते हैं। वे भावो में समझते नहीं हैं। इन पण्डितो को अपने ज्ञान पर बहुत घंमड होता है । उनकी बात का कोई  विरोध कर दे ,तो वे आग बबूला हो जाते हैं । हम उनकी बातों में सिर्फ इसलिए आ जाते हैं , क्योंकि उन्होंने ज्यादा किताबें रट रखी है ,जो हम नही रट सकते । ऐसे लोगों को अपनी जमात बनाने का ,अपना कट्टर अनुयायी बनाने का बड़ा शौक होता है। इसी चक्कर में ये अपना स्वांग भी बदल लेते हैं , काफी सारे कर्म काण्ड भी बढ़ा लेते हैं , अपना अलग धाम भी बना लेते हैं , एक अलग नाम भी दे देते हैं । यही से अलगाववाद की कहानी शुरू हो जाती है । 


हमारे बिखराव का सबसे बड़ा कारण है बासी चीजों में हमारी बड़ी रूचि या विश्वास का होना । जो बात जितनी पुरानी हो , जो कहानी जितनी पुरानी हो , उतनी ही हमारे लिए सच्ची है , भले ही उसका कोई पुख्ता प्रमाण हमारे पास हो या न हो । जब किसी को यह बताया जाता है है की हमारा धर्म बहुत ही प्राचीन  है, सबसे पुराना है , तो उसके दभ्भ का ठिकाना नहीं रहता । अब तो कोई उसको अपनी मान्यताओं से टस से मस नहीं कर सकता है । जो साहित्य बहुत पुराना हो , वह हमारे लिए शास्त्र बन जाता है । चाहे कुछ समझ  आए या नहीं आए । भले ही किसी ने अच्छा उपन्यास भी उस जमाने में लिखा हो ,तब भी वह हमारे लिए सत्य से बढ़कर है  ,  पुराना होना हमारे लिए महत्वपूर्ण है । हमे वर्तमान पर तो भरोसा ही नहीं है , क्योंकि अपने आप पर भरोसा नहीं है । ये बंटवारे हो रहे हैं ,तब इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है । बहुत बड़ा तर्क हमारे पास रहता है कि आदिकाल से हमारा धर्म चलता आ रहा है । जितना पुराना हो उतन  हीं कट्टरता हमारी बढ़ती जाती है । और हमारे पुरखे पुरखों के लिए कोई ग़लत कह दे तो उसका तो हम सिर कलम कर दें । 

उल्टा जो बात जितनी पुरानी है , वह उतने गलत रूप में हमारे सामने आ रही है । क्योंकि बीच में उस बात को तोड़ मरोड़ने वाले बहुत पैदा हो जाते हैं । जो बात जितनी पुरानी है , उस पर अपनी छूरी चलाने वाले इतने लोग बीच में आ  गए कि असली बात कहा छिप गई पता ही नही चलता है वरना सच्चे गुरु यदि कोई प्राचीन हुए होंगे, तो वे कभी भी परमात्मा के नाम पर बंटवारे की शिक्षा नहीं दे सकते हैं । इन बीच के लोगों ने सारी शिक्षा को बिगाड़ा है । वर्तमान की बात कम से कम अपने मूल रूप में तो हमारे पास  आ रही है । उसकी प्रामाणिकता तो है । केवल प्राचीन होना ही सत्य की कसौटी है , इस बात का ताला दिमाग से हटना चाहिए । सबसे बड़ी समझने की बात यह है कि प्राचीन समय में जो गुरु हुए होंगे । उन्होंने उस समय की आवश्यकता के अनुसार कोई बात कही होगी । हमे उसे आज की आवश्यकता के अनुसार सोचना समझना चाहिए और आज की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि धर्म के आड़ में चल रही सांप्रदायिकता की दीवार को तोड़ दिया जाए , नहीं तो दुनिया में कोहराम मच जाएगा । जहा धर्म के नाम पर सबसे बड़ा पाप हो रहा हो, वहां कुछ तो अपने होश में आकर पुरानी मान्यताओं को छोड़कर एक नया धर्म बनाना चाहिए , जिसका कोई नाम न हो सिर्फ इन्सानियत का वास हो। 



संप्रदाय को धर्म मान लेने और अलगाववाद के पीछे बहुत बड़ा कारण यह भी है कि परमात्मा के बन्दों को परमात्मा का अंश या अवतार मान लेना । इन सब कथाओं के पीछे आस्था विश्वास और श्रद्धा इतनी बढ़ जाती है कि इन अवतारों को सब कुछ मान लेते हैं और उनकी हर गतिविधि के आधार पर अलग अलग कहानियां अलग अलग धर्म ,अलग अलग संस्कृति निर्मित कर लेते  हैं। ये बातें इतनी धार्मिक प्रतीत होती है कि लोग यहां विवेक का इस्तेमाल करना बिल्कुल  उचित नहीं समझते हैं । इस तरह की कहानियों के पीछे इन्सान कुछ भी करवाना बड़ा आसान हो जाता है । , जबकि समझने की बात यह है की जो मनुष्य भौतिक रूप से दिखाई देता है ,वह परमात्मा की कृति ही हो सकता है । परमात्मा को भौतिक रूप में देखने की चेष्टा मत करो । और यह  भी सत्य है कोई भी कितना भी श्रेष्ठ शक्तिशाली इन्सान आपको दिखाई देता है । या जिसके बारे में आपको स्वयं के आलावा और किसी ने आपको रोक नहीं रखा है । दुनिया में यदि कोई श्रेष्ठ इन्सान पैदा हुआ है, यदि उसने कोई श्रेष्ठ कार्य किया है तो कम कम उसके नाम यों अलग धर्म खड़ा करके उसकी श्रेष्ठता का निरादर न करों 

कभी कभी हम सर्वधर्म एकता की बात करते हैं। मंच पर बैठने की कोशिश करते हैं, लेकिन वहां भी हम सब भूल जाते हैं कि सर्वधर्म शब्द गलत है । धर्म सब हो ही नहीं सकते । क्योंकि धर्म एक ही सनातन है बाकी सब मत पंथ संप्रदाय मजहब और रिलीजन है । क्योंकि धर्म कभी एक से ज्यादा हो नहीं सकता है प्रकृति एक से ज्यादा नही हो सकती , परमात्मा  एक से ज्यादा नहीं हो सकता ,तो फिर एक से ज्यादा धर्म कैसे हो सकता है  ? अब धर्म का रास्ता बताने वाले लोग ने अलग अलग शारीरिक क्रियाएं बता दी, तो क्या हुआ ? यह उनका अनुभव रहा होगा आपका भी कोई अलग अनुभव रह सकता है । यह तो प्रकृति की रचना है जिसमें विचित्रता है । इस आधार पर अलग अलग बंटवारे नहीं किए जा सकते हैं ।


जब तक हम इस भूल को नहीं सुधारेंगे नहीं , हमारा कल्याण नहीं हो सकता है । इस भूल को सुधरने का एक तरीका हो सकता है कि जितने भी विभाजन करने वाले कारण है , उन्हें दूर किया जाए आपके लिए पूरी दुनिया में बदलाव लाना संभव नहीं है ,तो बहुत ज्यादा चिंता में मत पड़िए अपने भीतर बदलाव लाने से तो आपको कोई नहीं रोक सकता है । इसके लिए स्वयं की तैयारी , स्वयं का निर्णय होना चाहिए । किसी भी प्रकार के डर से बाहर आना होगा । जिन्हें भी आप गुरू मान रहे हैं वै सच्चे हैं, तो आपके इस निर्णय से बड़े प्रसन्न होंगे और यदि आपके इस निर्णय से वे अप्रसन्न होते हैं ,तो आपको अपने भले के लिए उन्हें नजर अंदाज करना ही हमारी समझदारी  है। इस दुनिया में हर इंसान मुक्त होकर जीने का हक रखता है । किसी भी प्रकार का बन्धन या डर परमात्मा द्वारा बनाई गई चीजें नहीं है । ये इंसान द्वारा पैदा किए हुए हैं । सावधान रहना जहां डर की बात की जाती है वही समझ लेना यह गुमराह करने का तरीका है । 

कुछ लोग ने बहुत अच्छी कहानियां बना रखीं हैं । जब उनको लगता है कि डराशे के लिए जन्म में तो कुछ बताया जा रहा नहीं रहा सकता ,तब वे अगले जन्मो की बातें करने लग जाते हैं  कि ऐसा करोगे तो अगले जन्म में यह सजा मिलेगी यह फल मिलेगा । लेकिन वे हमेशा फल या सजा अगले जन्म में ही मिलना  बताते हैं , क्योंकि इस जन्म की बात करें, तो झूठ पकड़ा जाता है । इन्सान को इतना दिग्भ्रमित कर दिया जाता है कि जिस बात को अगले जन्म के भले के लिए कर रहा है,वही सजा के रूप में इस जन्म में यातना दे रहा है । यहां तक हो रहा है कि मनुष्यों ने अपना सारा ध्यान अगले जन्म में लगा रखा है । उसी को लक्ष्य बना रखा है जो गतिविधि करते अगले जन्म का ही हिसाब रखा है  कि इसका परिणाम अगले जन्म में क्या होगा ?  इस जन्म का जैसे उनकी जिम्मेदारी ही नहीं है । परमात्मा द्वारा दिया गया यह जन्म तो उसके लिए मतलब का नहीं है । कहानियां पर इतना भरोसा मत करो । और कहानियां कहानियों पर भरोसा करोंगे तो कितनी पर करोगे। हर कहानी अलग अलग है । वे तुम्हें कर देगी । इन कहानियों पर हमने इतना अटूट भरोसा कर रखा है की अपने आपसे भी ज्यादा । सामने जो दिख रहा है, उस पर इतना भरोसा नहीं है , जितना इन कहानियों पर है । लोग कहते हैं कि हम आध्यात्मिक है । जब उनके नजदीक जाकर देखते हैं ,तो पता चलता है कि उनकी निजी खोज ,कोई विचार ,कोई समझ ज्ञ,कोई निर्णय कुछ नहीं है । सब कुछ उधार का है । अपने जीवन को किसी को पूरा समर्पित कर रखा है । क्रियाओं में लीन हैं। भावो में समर्पण है , दिखने में बड़े सरल है , बातों में बड़े महान है पर सृजन कुछ नहीं है , जीवन में आनन्द नहीं है, भीतर ही भीतर एक कुण्ठा है । हमने बड़ा गहरा रोग पाल रखा है और ऐसी दशा में चले गए हैं कि हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि हम गलत है लोगो ने इन कहानियों के साथ अपनी गतिविधियो को इस कदर जोड़ लिया है कि अब कोई उनको यह कह दे कि आप ग़लत कर रहे हैं । तो वे आग बबूला हो जाएंगे कैसे हटेगा यह रोग ? जब तक एक एक व्यक्ति स्वयं के इस स्तर प्रयास नहीं करेगा , कुछ नहीं हो सकता है ।

करना चाहो तो बड़ा आसान है ,उस बात को सुनना बन्द करो ,जो अलग होने शिक्षा देती है । उन व्यक्तियों के पास जाना बन्द करो सांप्रदायिक धर्म सिखातें है । उन कहानियों को आदर देना बन्द करो , जिनमें अलगाव की आग छिपी हुई है । सब कुछ कुछ धीरे ठीक हो सकता है । 


हमने तो इन अलग अलग करने वाले को बड़े ऊंचे आसान पर बिठा रखा है। उनकी चरण रज हमारे माथे का तिलक है । उनके पास न जाना हमारे लिए पाप है। उनकी बाते मानना हमारा सबसे बड़ा धर्म है । वे तो हमारे गुरूओ के गुरू महागुरु है। उनके इशारे पर तो हम अपनी जान कुर्बान करके भी धन्य हो जाएंगे । उनके चरणों में स्वर्ग को न मानना पाप का भागीदार बनना है । अभी किसी को यह कह दो ये तुम्हे गलत रास्ते पर ले रहे हैं , इनके पास जाना या सुनना बन्द करो ,तो वे आपके लिए सीधा यही बोलेंगे कि कितना नास्तिक आदमी है । गुरू के लिए ग़लत बात करता है , धर्म भ्रष्ट हो चुका है ! गनीमत है आपके हाथ पांव बच जाए। इसलिए ऐसी जहमत कभी मत उठाना । अभी  मामला बहुत नाज़ुक स्थिति में है । अभी ऐसा जोखिम मत उठाना ।  अभी लोग समझने को तैयार नहीं हैं ।  अभी कुछ और विनाश होना बाकी है ।  जब आधी दुनिया धर्म के नाम पर लड़ कर समाप्त हो जाएगी ,तब शायद किसी को समझ आए तो आए । 



जिस तथाकथित गुरु व्यक्ति  को आप इतना उपर चढ़ा दोगे ,तो वह क्यों  अपने आपको या अपनी बात को बदलेगा? 
उसको तो जिस बात पर सम्मान मिल रहा है ,उसी को और बढ़ावा देगा । सामूहिक बदलाव लाने  का आपके पास कोई चारा नहीं है । इस चक्कर में पड़ो मत । अभी मौका है , चुपचाप स्वयं ही सामूहिक बदलाव आ जाएगा । शायद यह दुनिया पुनः स्वर्ग होओगे लेकिन खुद को बदलना बड़ा आसान है । बस उस डर से बाहर आना है ,उन गलत मान्यताओ के बंधन से अपने आपको मुक्त करना है । जरा सोचो स्वर्ग कहा है? आनन्द कहा है? वही सच्चा धर्म है । उसी रास्ते पर बढ़ने का निर्णय आज ही ले लो । तथाकथित धर्मों में अपना समय व्यर्थ न करो अपने मूल सनातन वैदिक धर्म की ओर पुनः लौटो नहीं तो समाप्त होने से कोई नहीं बचा सकता है । 

कई बार हमारे सांप्रदायिक गुरु इस आपसी लड़ाई से बड़े चिंतित दिखाई देते हैं । वे हमे समझाने का प्रयास करते हैं कि लड़ना ग़लत है धर्म हिंसा नहीं सिखाता है। सभी धर्मावलंबियों को आपस में हिंसक नहीं बनना चाहिए । तब हमें लगता है कि ये गुरू बड़े अच्छे हैं , जो आज की इस आपसी लड़ाई से चिंतित हैं और इसे दूर करने की शिक्षा देते हैं । लेकिन वे भी मान्यताओं से बाहर नहीं आ पा रहे हैं संप्रदायिकता की असली पहचान को नहीं मिटाएंगे नहीं , तब तक उनके प्रयास निरर्थक है । 

संप्रदायिक होकर होने की बात करना थोथी बात है । जब तक इस दीवार को गिराएंगे नहीं, असली धर्म की शुरुआत हो ही नहीं सकती । कुछ ऐसी संस्थाएं , ऐसे गुरू भी है जो बिना किसी सांप्रदायिक पहचान के काम करते हैं लेकिन वहां जाने वाले लोग पूर्ण रूप से अपनी पारंपरिक गतिविधियों को नहीं छोड़ पाते। कम से कम उन लोगों को योग साहस करके अपने आपको पूर्ण स्वतंत्र कर लेना चाहिए । 


हम सभी मजहबी पांथिक आतंकवाद से बहुत व्यथित रहते हैं। आंतकवाद को मिटाने की बात करते हैं । सरकार से उम्मीद रखते हैं कानून से उम्मीद रखते हैं, सुरक्षा बलों से उम्मीद रखते हैं लेकिन किसी को लगता आंतकवाद कम हो रहा है या आगे कम हो पाएगा ? आंतकवाद के पीछे की सबसे बड़ी वजह संप्रदायिकता ! और जिस दिन यह दीवार गिर जाएगी , किसी किसी को आतंकवाद के लिए तैयार करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा । आपकों गर्व  होना चाहिए कि इसको समाप्त करना आपके हाथ में है तो क्यों न दुनिया की फ़िक्र छोड़कर अपने को सच्चा सनातनी हिन्दू धार्मिक बनाओं और अपने आपको एक परमात्मा की सन्तान होने की पहचान दो । 


एक बार इस सोच अपनाकर तो देखो । किन कुरीतियों में जकड़े हो? किन मान्यताओ में उलझे हो ? किन लोगों की ओछी सोच के बन्धन में अपने आपको बांध रखा है? हर किसी , को क्यों डरते हो ? क्या डर कर आज कुछ हासिल हुआ है ? उन सारे रास्तों को छोड़ दो ,जो धर्म की आड़ में किसी से अलग करने की वजह बनते हैं । जरा सी गुंजाइश मत रखो । फिर देखो आपकी सोच कितनी विशालता आ जाती है । जब पूरा जगत आपको प्रिय लगता है, तो आपकी धार्मिकता शुरू होती है और आपको स्वर्ग की अनुभूति होती है । 


आप कहेंगे कि हम कभी किसी का बुरा नहीं सोचते हैं , अहिंसा की बात करते हैं, दया की बात करते हैं हमारा धर्म जीवो पर दया करना सीखाता है । हमारे धर्म में कही कोई गलत बात ही नहीं है कि हमे कुछ बदलाव लाने की जरूरत है हमारा धर्म तो  सबसे  महान है हमारा धर्म सदियों पुराना है । गसकी स्थापना करने वाले साक्षत भगवान का अवतार थे । इसलिए  हम बिल्कुल ठीक है । बदलना उन्हें चाहिए ,जो ठीक नहीं है । यह बात धार्मिकता को गलत ठहराने की नहीं है । धार्मिकता तो ठीक होती ही है जहां धार्मिकता सच्ची है वहां गलत होने का कोई सवाल नही उठता , लेकिन धार्मिकता को अलग अलग पहचान ,अलग अलग उपनाम दे रखे हैं वह  अलगाववाद का कारण बन रहा है । इन अलग अलग उपनामों के चक्कर में हम आपस में लड़ रहे हैं । इसलिए ऐसी बात करो जो केवल शाब्दिक रूप से बड़ी नही लगत  हो बल्कि जिसकी परिणति सुखद हो धर्म के साथ किसी और शब्द को मत जोड़ने का प्रयास करो धर्म को ही रहने दो तब इसके साये में सुख का कमल खिलेगा और तब यह दुनिया स्वर्ग बनेंगी । 


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